सूने पड़े हैं राजघरानों के दरबार, नहीं बिछी इस बार राजकुमारों-राजकुमारियों की बिसात
पयागपुर राजघराने के राजा रुदवेंद्र विक्रम सिंह 1991 में कैसरगंज विधानसभा सीट से सदन में पहुंचे थे। उनसे पहले राजा केदार राज फखरपुर से विधायक चुने गए थे। रुदवेंद्र विक्रम के बाद उनके पुत्र कुंवर जयेंद्र विक्रम सिंह ने भाजपा से टिकट की कोशिश की, लेकिन सफल नहीं रहे।
बहराइच: राजनीतिक इतिहास में यह पहला मौका है जब जिले के राजघरानों में चुनावी सन्नाटा है। इससे पहले हर चुनाव में इन राजघरानों के राजकुमार-राजकुमारियों की दखलंदाजी होती रही है। इस बार चुनाव से अलग रहने के कारण न तो इन राजघरानों में चौपालें लग रही हैं, न बिसात बिछ रही है।
सूने हैं महल
-प्रदेश की 17वीं विधानसभा के लिये चुनाव में बहराइच के राजघरानों का कोई उम्मीदवार नहीं उतरा।
-ऐसा पहली बार हो रहा है जब पयागपुर और बेड़नापुर राजघराने के राजकुमार-राजकुमारियां चुनाव से दूर हैं।
-वरना, आजादी के बाद राजे-रजवाड़ों छिन जाने के बाद इन राजघरानों ने लोकतंत्र के सहारे अपना प्रभाव बनाये रखने का रास्ता ढूंढ लिया था।
-जिले के पयागपुर, बेड़नापुर, नानपारा और चरदा राजघरानों के लोग या तो खुद चुनाव में उतरते थे, या किसी को उतारते थे।
राज से राजनीति तक
-पयागपुर राजघराने के राजा रुदवेंद्र विक्रम सिंह 1991 की राम मंदिर लहर के दौरान कैसरगंज विधानसभा सीट से जनता पार्टी के रामतेज यादव को हराकर सदन में पहुंचे थे।
-उनसे पहले पयागपुर के राजा केदार राज जंगबहादुर फखरपुर सीट से विधायक चुने गए थे।
-राजा रुदवेंद्र के बाद उनके पुत्र कुंवर जयेंद्र विक्रम सिंह राजनीति में सक्रिय हुए। पिछले विधानसभा चुनाव में वह भाजपा से टिकट के दावेदार भी थे, लेकिन टिकट हासिल नहीं कर सके।
-वर्ष 2012 के चुनाव के बाद पयागपुर राजघराने के राजकुमार सर्वेंद्र विक्रम सिंह राजनीति में सक्रिय हुए।
-वह सपा सरकार में ईको टूरिज्म के सलाहकार सदस्य मनोनीत हुए थे और इस बार प्रयास के बाद भी उन्हें टिकट नहीं मिला।
छिन गई विरासत
-बेड़नापुर राजघराने की राजकुमारी देविना सिंह का नाम राजनीति में काफी चर्चित रहा है।
-वर्ष 2012 के चुनाव से पहले तक वह राजनीति में सक्रिय रहीं और 2007 का विधानसभा चुनाव भी लड़ीं।
-लेकिन राजनीतिक गलियारे में देविना सिंह अपनी स्थायी पैठ नहीं बना सकीं।
-राजकुमारी देविना की दादी बसंत कुंवरि स्वतंत्र पार्टी से 1962 में कैसरगंज संसदीय क्षेत्र से सांसद रहीं।
-1971 में बसंत कुंवरि कांग्रेस के टिकट से फिर चुनाव मैदान में उतरीं, लेकिन वह जनसंघ की शकुंतला नैयर से हार गईं।
टूटा सत्ता से मोह
-नानपारा और चरदा रियासतों से संबंध रखने वाले राजघरानों के लोग आज भी हैं, लेकिन उन्होंने राजनीति से पहले ही किनारा कर लिया है।
-इन राजघरानों के लोग राजनीति के बजाय अपने अपने व्यवसायों में व्यस्त हो गये हैं।