नीतीश बार-बार कर रहे PM मोदी की तारीफ, क्या बिहार में फिर बनेगा 'नेचुरल एलायंस'?
लखनऊ: बिहार के दो कद्दावर नेता। एक लालू प्रसाद यादव जिन्होंने 15 साल लगातार शासन किया। चारा घोटाले में जब जेल गए तो अपनी पत्नी राबड़ी देवी को बिहार का सीएम बनवा दिया। दूसरे, नीतीश कुमार जो बीजेपी के सहयोग से लगातार 10 साल सीएम रहे और अब लालू प्रसाद यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के साथ तालमेल के बाद भी सीएम हैं। उनका ये सफर 11वें साल में भी जारी है।
'चन्द्रगुप्त' और 'चाणक्य' में खटास!
दोनों कभी दोस्त हुआ करते थे। जयप्रकाश नारायण के आंदोलन से उपजे दोनों नेता बिहार की राजनीति में 'चन्द्रगुप्त' और 'चाणक्य' के नाम से जाने जाते थे। लेकिन अब एक बार फिर दोनों के बीच पटरी नहीं बैठ रही है। बीते दो महीने से दोनों खुलकर एक-दूसरे के खिलाफ दिखाई दे रहे हैं।
मोदी को नीतीश का समर्थन
नीतीश बड़ी पार्टी के एकमात्र ऐसे नेता थे जिन्होंने पीएम मोदी के नोटबंदी के फैसले का समर्थन किया। ये और बात है कि उनकी पार्टी लोकसभा और राज्यसभा में इसका विरोध कर रही है। अब वो बेनामी संपत्ति पर मोदी से बड़ी कार्रवाई की मांग कर रहे हैं। हालांकि मोदी गोवा में ये इशारा कर चुके हैं कि अगली कार्रवाई बेनामी संपत्ति रखने वालों पर होगी।
नीतीश सरकार में सब कुछ ठीक नहीं
बिहार विधानसभा चुनाव में जनता दल यू के अध्यक्ष नीतीश कुमार ने राजद और कांग्रेस से हाथ मिलाया और सरकार बनाई। लालू पहले ही कह चुके थे कि गठबंधन की सरकार बनी तो नीतीश ही सीएम होंगे। बिहार चुनाव हुए एक साल बीत गए और गंगा में काफी पानी बह गया है। नीतीश कई बार सरकार चलाने में हो रही दिक्कतों को लेकर अपनी नाखुशी जाहिर कर चुके हैं। ताजा मामला नोटबंदी को लेकर है। जिसे लेेकर दोनो एक बार फिर आमने सामने हैं। लेकिन ये पहला मामला नहीं है जिसमें दोनों नेता अलग-अलग राय रखते हैं।
शराबबंदी के फैसले से लालू नाखुश
राजनीतिक प्रेक्षकों के अनुसार लालू, नीतीश कुमार से उनकी शराबबंदी के फैसले से नाराज हुए। नीतीश कुमार पूर्ण शराबबंदी चाहते थे जबकि लालू प्रसाद इसका समर्थन नहीं कर रहे थे। नीतीश ने लालू के कुछ समर्थक जो बलात्कार और अपराध में लगे थे उनपर कड़ी कानूनी कार्रवाई कर दी। 'विकास बाबू' और साफ छवि वाले नीतीश को ये गंवारा नहीं था कि कोई समर्थक पार्टी उनकी छवि को दागदार करे। हालांकि लालू प्रसाद इस मामले में कुछ नहीं बोले लेकिन वो अंदर-अंदर नाराज हो गए ।
नीतीश संभलकर चल रहे चाल
यूपी विधानसभा चुनाव को लेकर भी शुरू में समाजवादी पार्टी (सपा) के महागठबंधन बनाने के प्रयास से नीतीश अलग जाते दिखे। उनका बिहार चुनाव को लेकर ही मुलायम से मनमुटाव चल रहा था। मुलायम सिंह यादव ऐन वक्त पर महागठबंधन से बाहर हो गए थे। लिहाजा नीतीश ने मुलायम से बात न कर राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) के अध्यक्ष अजित सिंह के साथ गठबंधन जरूरी समझा। अजित सिंह का पश्चिमी यूपी के जाट इलाके में अच्छा प्रभाव है। नीतीश, सपा के स्वर्ण जयंती समारोह में भी नहीं आए और राज्य में छठ त्योहार का बहाना बनाया ।
क्या लालू के बेटे परेशानी का सबब?
दूसरी ओर, लालू प्रसाद ने साफ कह दिया कि उनकी पार्टी यूपी विधानसभा का चुनाव नहीं लड़ेगी। उनका कहना था कि वो नहीं चाहते कि वोटों का बंटवारा हो और बीजेपी को इसका फायदा मिले। राजनीतिक प्रेक्षक कहते हैं कि नीतीश को ज्यादा परेशानी लालू प्रसाद के दो 'अशिक्षित' बेटों से है जिनमें एक उपमुख्यमंत्री भी है। दोनों के बयान सरकार के लिए परेशानी खड़ी कर देते हैं। नीतीश अब लालू से धीरे-धीरे दूर जाते दिख रहे हैं।
जेडीयू और बीजेपी का रहा है 'नेचुरल एलायंस'
राजनीतिक प्रेक्षकों का कहना है कि नीतीश कुमार एक बार फिर बीजेपी के नजदीक जा सकते हैं। बिहार में जनतादल यू और बीजेपी का बड़ा ही 'नेचुरल एलायंस' था। कानून व्यवस्था की हालत पूरी तरह सुधर गई थी और बिहार विकास के रास्ते पर आ गया था। बडे उद्योगपति और व्यापारी बिहार में निवेश के लिए उत्सुक दिखाई दे रहे थे लेकिन सरकार बदलने के बाद कानून व्यवस्था की हालत भी खराब हुई और उद्योग व्यापार को भी धक्का लगा।
क्या फिर बीजेपी के साथ आएंगे नीतीश
यदि नीतीश नोटबंदी या कानून व्यवस्था की हालत को लेकर सरकार से अलग होते हैं तो वो फिर से बीजेपी की मदद से सरकार बना सकते हैं। हालांकि संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार गवर्नर पहले लालू की पार्टी को सरकार बनाने के लिए बुला सकते हैं क्योंकि राजद विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी है। लेकिन ये सब ऐसी बातें जिनकी चर्चा अभी बेमानी है। लेकिन ये भी उतना ही सच है कि नीतीश धीरे-धीरे नरेंद्र मोदी के करीब जा रहे हैं।