Hindi Panini की 41वीं पुण्यतिथि पर विशेष, जानें कौन थे हिन्दी के श्रेष्ठ भाषाविद

Acharya Kishoridas Vajpayee Death Anniversary: हिन्दी पाणिनि और हिन्दी साहित्य जगत के दुर्वासा नाम से मशहूर आचार्य किशोरीदास वाजपेयी की आज 41वीं पुण्यतिथि है।

Update: 2023-08-11 09:47 GMT
41st death anniversary of Acharya Kishoridas Vajpayee (Photo: Social Media)

Acharya Kishoridas Vajpayee Death Anniversary: हिन्दी पाणिनि और हिन्दी साहित्य जगत के दुर्वासा नाम से मशहूर आचार्य किशोरीदास वाजपेयी की आज 41वीं पुण्यतिथि है। उनका 11 अगस्त, 1981 को कनखल स्थित रामकृष्ण मिशन अस्पताल में निधन हुआ था। अपने अंतिम समय में उत्तर प्रदेश शासन के बार बार के अनुरोध के बावजूद उन्होंने कनखल छोड़ना स्वीकार नहीं किया था।

आपको बता दें कि कनखल विश्व का ऐसा अकेला स्थल है जिस नाम से पूरी दुनिया में दूसरा स्थान नहीं है। पूरा अखंड भारत घूमकर इसी कनखल को आचार्य वाजपेयी ने अपनी साधना स्थली बनाया था। कनखल के होली मोहल्ला स्थित इंजन वाली हवेली के प्रथम तल पर वह पूरी जिंदगी किराये के घर में रहे।
आचार्य वाजपेयी के समग्र साहित्य की ग्रंथावली वाणी प्रकाशन दिल्ली ने आठ खंडों में प्रकाशित की है। इंस ग्रंथावली के संपादक डा. विष्णुदत्त राकेश हैं और संकलनकर्ता रामकृष्ण वाजपेयी हैं। जो कि आचार्य किशोरीदास वाजपेयी के पौत्र हैं।

कानपुर नगर सीमा में आने वाले मंधना स्टेशन के पास रामनगर गांव में आचार्य वाजपेयी का जन्म हुआ था। उनके माता पिता का बचपन में ही प्लेग महामारी की चपेट में आने से निधन हो गया था। आचार्य जी के पिताजी सतीदीन वाजपेयी बहुत ओजस्वी थे और अपनी सह्रदयता और लोगों की मदद की प्रवृत्ति के चलते गांव में सूरमा भाई के नाम से मशहूर थे।

किशोरी दास वाजपेयी मूलतः क्रांतिकारियों की परंपरा में थे। उनके पितामह पं. कन्हैयालाल वाजपेयी ने झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के साथ 1858 की क्रांति में भाग लिया था। झांसी की रानी के वीरगति प्राप्त करने के बाद अपने परिवार को बचाने के लिए भागकर कानपुर में आकर शरण ली थी। वह मूलतः रीवां के थे।
माता पिता के निधन के बाद आचार्य वाजपेयी अनाथ होकर भटकने लगे। भाग्यवश उन्हें अच्छे साधुओं की संगत मिल गई। इससे पहले उन्होंने कानपुर की एलगिन मिल में मजदूरी भी की। रंगाई पुताई का कार्य भी किया। मंधना स्टेशन पर कचालू भी बेचे।

साधुओं की संगत से जब बाबा ने जुड़ने की इच्छा जताई तो उस अखाड़े के महंत ने कहा कि तुम्हें जोड़ तो लेंगे लेकिन तुम्हें पढ़ना पड़ेगा। आचार्य वाजपेयी के लिए ये अंधे को दो आंखें मिलने जैसा था। उन्होंने तत्काल इसके लिए हामी भर दी और जब पढ़ने गए तो गुरु ने नाम पूछा उस समय उन पर मथुरा वृंदावन की रास और राधा रानी का प्रभाव पड़ चुका था । इसलिए उन्होंने गुरू से अपना असली नाम गोविंद प्रसाद न बताकर किशोरीदास बता दिया। प्रखर बुद्धि के किशोरीदास ने जल्द ही मेधावी बच्चों में अपना स्थान बना लिया और पंजाब विश्वविद्यालय की शास्त्री परीक्षा में टाप किया जबकि राहुल सांकृत्यायन उस परीक्षा में फेल हो गए।
वाजपेयी ने परीक्षा भगवा वस्त्रों में पास की थी। इसके बाद वह संन्यास की दीक्षा लेने पुनः गुरु के पास गए। तब बुजुर्ग महंत जी ने कहा पहले गृहस्थ में जाओ इसके बाद संन्यास का क्रम आएगा। इस तरह किशोरीदास वाजपेयी भगवा वस्त्र उतारकर घर गृहस्थी में प्रवेश कर गए।

वंश परंपरा और जीन्स में आई क्रांति की आग से देश के आजादी मिलने तक वह क्रांतिकारी जीवन में रहे। देश को आजादी मिलने के बाद उन्होंने साहित्य सृजन का काम शुरू किया। आज हम हिन्दी को जिस रूप में लिखते बोलते हैं यह आचार्य किशोरीदास वाजपेयी की देन है। हिन्दी के आचार्य और पाणिनि को नमन।

( लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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