आश्रित की नियुक्ति न कर मुकदमेबाजी में उलझाने पर प्रबंध समिति पर 50 हजार हर्जाना

कोर्ट ने कहा कि जहाँ तत्काल नियुक्ति की जानी चाहिए थी वही प्रबन्ध समिति ने परेशान किया। 29 अक्टूबर 2018 को ज्वाइन कराया गया।

Update: 2019-05-28 14:16 GMT
प्रतीकात्मक फोटो

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि मृतक आश्रित की नियुक्ति में निर्धारित न्यूनतम योग्यता में छूट देने का नियम है। प्राइवेट संस्थाओं की प्रबन्ध समिति आश्रित की नियुक्ति अधिकार के तहत समायोजित करने से इंकार नहीं कर सकती।

कोर्ट ने आश्रित की नियुक्ति न कर मुकदमेबाजी में उलझाकर परेशान करने पर प्रबन्ध समिति पर 50 हजार हर्जाना लगाया है और यह राशि चार हफ्ते में विपक्षी को भुगतान करने का आदेश दिया है। कोर्ट ने इसके साथ ही आश्रित बृजेश गोपाल खलीफा को नियमित वेतन भुगतान करने का भी निर्देश दिया है।

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यह आदेश मुख्य न्यायाधीश गोविन्द माथुर तथा न्यायमूर्ति एस.एस. शमशेरी की खंडपीठ ने रमाकांत सेवा संस्थान कन्या विद्यालय वाराणसी की प्रबन्ध समिति की विशेष अपील को खारिज करते हुए दिया है। कोर्ट ने कहा है कि जब कोर्ट के आदेश से आश्रित की लिपिक पद पर नियुक्ति कर दी गयी तो प्रबन्ध समिति को ऐसी नियुक्ति को याचिका में चुनौती नहीं देनी चाहिए। ऐसी याचिका न्यायिक प्रक्रिया का दुरूपयोग है।

याचिका पर आश्रित की तरफ से अधिवक्ता राजेश कुमार सिंह ने बहस की। अधिवक्ता का कहना था कि आश्रित को 14 जुलाई 2015 को नियुक्ति दी गयी। इसके बावजूद ज्वाइनिंग के लिए भटकना पड़ा और मुकदमेबाजी में उलझना पड़ा। उनका कहना था कि आश्रित की माँ आदर्श विद्या केंद्र बालिका विद्यालय जूनियर हाईस्कूल वाराणसी में प्रधानाचार्य थी। सेवाकाल में उनकी मृत्यु हो गयी।

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बीएसए ने शिवकरन सिंह गौतम उच्चतर माध्यमिक विद्यालय भदैनी में 14 जुलाई 15 को लिपिक पद पर आश्रित की नियुक्ति की। किन्तु ज्वाइन नहीं कराया तो उसे रमाकांत सेवा संस्थान में भेजा गया। वहाँ भी ज्वाइन नहीं कराया। फिर कई दौर की मुकदमेबाजी शुरू हुई। सहायक निदेशक बेसिक शिक्षा के आदेश को भी नहीं माना गया।

कोर्ट ने कहा कि जहाँ तत्काल नियुक्ति की जानी चाहिए थी वही प्रबन्ध समिति ने परेशान किया। 29 अक्टूबर 2018 को ज्वाइन कराया गया। इसके बाद भी प्रबन्धक ने कोर्ट के आदेश के खिलाफ अपील दाखिल की जिसे कोर्ट ने न्यायिक प्रक्रिया का दुरूपयोग मानते हुए 50 हजार रूपये हर्जाना लगाया है।

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