लखनऊ: राज्य सरकार द्वारा सूबे में चालीस हजार सफाई कर्मियों की भर्ती की घोषणा खटाई मे पड़ गयी है। हाईकोर्ट ने संविदा पर की जाने वाली इन भर्तियों की वैधानिकता पर सवाल खड़ा करते हुए राज्य सरकार से 4 अगस्त तक अपना विस्तृत पक्ष रखने को कहा है। जस्टिस देवेंद्र कुमार उपाध्याय की बेंच ने यह आदेश पारित करते हुए सरकारी वकील पर सवालों की झड़ी लगा दी।
भर्तियों पर सवाल
-कोर्ट ने यह आदेश यूपी सफाई कर्मचारी संघ की ओर से दायर एक रिट याचिका की सुनवाई करते हुए दिया।
-याची के वकील जगन्नाथ सिंह का तर्क था कि सरकार ने ये भर्तियां नगर निगम अधिनियम के तहत करने का निर्णय लिया है।
-याची ने चालीस हजार पदों पर भर्ती संबधी 4 जुलाई 2016 के शासनादेश और 6 नवंबर 2010 के शासनादेश की वैधानिकता को चुनौती दी है।
-याची ने कहा कि सरकार ने 6 नवंबर 2010 को एक शासनादेश जारी कर चतुर्थ श्रेणी के तकनीकी पदों को छेाड़कर अन्य पदों पर नियमित भर्तियों पर रेाक लगा रखी है।
अपने ही शासनादेश का उल्लंघन
-आगे कहा गया कि नगर निगम एक्ट में सफाईकर्मी का कोई पद नहीं है। केवल मेहतर का पद है। परंतु सरकार मनमर्जी से सफाई कर्मियों की भर्तियां करने का मन बना रही है जो अवैध है।
-याची की ओर से कहा गया कि 1968 में सरकार द्वारा गठित मलकानी समिति की रिपेार्ट को सरकार ने मान लिया था और आगे से उसी आधार पर मेहतरों की भर्तियां करने का निर्णय हुआ था।
-कहा गया कि सरकार 6 नवंबर 2010 के जिस शासनादेश का बहाना बनाकर संविदा पर भर्तियां करने जा रही है उस शासनादेश को कोर्ट दूसरे विभागों के संबध में पहले भी रद्द कर चुकी है।
-सारे तर्को को सुनने के बाद कोर्ट ने प्रथम दृष्टया याची के तथ्यों को सटीक माना और सरकारी वकील से जवाब तलब कर लिया।