लखनऊ: जो सफ़र को इख्तियार करते हैं, वही मंजिलों को पार करते हैं,
बस एक बार चलने का हौसला तो रखिए, ऐसे मुसाफिरों का रास्ते भी इंतजार करते हैं
शायद उन्हीं मुसाफिरों में से मैं और मेरे दोस्त रहे होंगे, तभी इस उम्र में भी हमारे ग्रुप ने एवरेस्ट की ओर कदम बढ़ाए। दोस्तों इससे पहले आप मेरी यात्रा का रोमांच पढ़ ही चुके हैं चलिए आगे के रोमांच के बारे में बताते हैं।
(राइटर दुनिया के पहले जर्नलिस्ट हैं, जो अंटार्कटिका मिशन में शामिल हुए थे और उन्होंने वहां से रिपोर्टिंग की थी।)
नामचे बाजार के मुख्य प्रवेश मार्ग पर तिब्बती शैली का एक सुंदर प्रवेश द्वार बना है। इससे पहले दो बड़ी जल धाराएं आरोहियों का स्वागत करती हैं। नामचे बाजार के निचले भाग से बहने वाली जल धारा पर अब तिब्बती शैली के छोटे-छोटे स्तूप बना कर उसे भव्यता दी जा रही है। पानी की धारा को टाइल्स के जरिए नहर का सा रूप दिया जा रहा है। यह सब काम आरोहियों व पर्यटकों से लिए जाने वाले शुल्क की रकम से कराया जा रहा है।
हालांकि इसको लेकर शेरपा समुदाय में मिश्रित प्रतिक्रियाएं हैं। बहुत से लोग इसे धन का अपव्यय मानते हैं। उनका कहना है कि इस धन का सबसे अच्छा उपयोग यह हो सकता था कि इसे शेरपा समुदाय के हित में व्यय किया जाता। नामचे की जल धारा को उसके प्राकृतिक रूप में ही थोड़ा साफ करके अधिक बेहतर बनाया जा सकता था।
कुछ देर वहां रूक कर प्रवेश द्वार के निकट बने बड़े से धर्मचक्र को घुमा कर हम फिर ऊपर को चलने लगे। हमारा गंतव्य अभी करीब 300 मीटर और ऊपर था। मगर अब हम एक दम तरोताजा थे। नामचे बाजार में हम होटल स्नो लैण्ड में रूके। यह स्थान नामचे के प्रसिद्ध ताशी दलक बौद्ध मठ के बहुत करीब है और नामचे की बाजार के भी। यहां वाई फाई की भी सुविधा थी और मोबाइल आदि को चार्ज करने की निःशुल्क व्यवस्था भी। इस लिए अरूण सिंघल बहुत व्यस्त हो गए। ताशी का मोबाइल टूटने से बेकार हो गया था और राजेन्द्र का आई फोन सिग्नल नहीं पकड़ पा रहा था। हम सभी ने यहां से अपने-अपने घर बात की।
नामचे बाजार सोलखुम्भू घाटी का सबसे बड़ा व्यापारिक केन्द्र है। मूल गांव अंग्रेजी के ‘सी’ अक्षर के आकार में है अर्ध चन्द्राकार सा। पहाड़ के दो पाख आमने-सामने करीब डेढ़ किलोमीटर की चौड़ाई में फैले हैं। सबसे निचले छोर से करीब पौन किलोमीटर ऊपर तक दोनों पहाड़ों पर एक दूसरे से लगभग जुड़े घर बने हैं। पत्थरों और लकड़ी के मेल से बने ये घर सुन्दर हैं, गर्म हैं और चटख रंगों से रंगे हुए भी। इनमें से ज्यादातर में टी हाऊस या होटल हैं।
कुछ में दुकानें, बैंक, अस्पताल आदि सरकारी दफ्तर भी हैं। बाजार में प्रायः नीचे दुकानें हैं और ऊपरी तल आवास के रूप में काम लाए जाते हैं। घोड़ों, याक और याक तथा गाय के संकर ‘जो’ के लिए ठहरने के स्थान बने भी हुए हैं। भारवाहियों के रूकने की भी पर्याप्त व्यवस्था है। यहां पर स्थानीय लघु जल विद्युत परियोजना से मिलने वाली बिजली भी है और संचार की सुविधाएं भी।
एक चौंकाने वाली चीज हमने देखी कि नामचे बाजार में आग बुझाने के लिए पानी की लाइनें और फायर हाइडेंट आदि की जबर्दस्त व्यवस्था है। संभवतः किसी बड़े हादसे के बाद इसका निर्माण हुआ होगा। नामचे में शनिवार और इतवार को स्थानीय बाजार भी लगता है, जिसमें आसपास के ग्रामीण भी सब्जियां, मांस, शहद, याक पनीर, ऊनी चीजें आदि उत्पाद लेकर आते हैं। नामचे के मूल निवासी अब यहां इक्का दुक्का ही हैं और पूरे नामचे में खेत भी एक दो ही बचे हैं।
कहा जाता है कि नामचे बाजार में जमीन के मूल्य काठमाण्डू से भी ज्यादा हैं, हालांकि यहां बाहरी लोगों के जमीन खरीदने पर प्रतिबंध हैं। नामचे बाजार में बड़े डिपार्टमेंटल स्टोर भी हैं, अच्छी बेकरियां भी और कई तरह के बार भी। यहां हर तरह का चीनी सामान भी मिल जाता है और परम्परागत हस्तशिल्प का भी। पर्वतारोहियों की जरूरत का भी हर सामान यहां मिल जाता है हालांकि उसके दाम बहुत अधिक होते हैं।
नामचे बाजार के उत्तर पूर्वी छोर पर पहाड़ी के ऊपर नेपाली सेना की एक छोटी टुकड़ी रहती है। वहीं एक स्कूल भी है और पर्वतारोहण संग्रहालय भी। वहां एक बड़ा इलाका ऐसा है, जिसे ‘व्यू पाइंट’ कहा जाता है। यह व्यू पाइंट आरोहियों को एवरेस्ट का विहंगम दृश्य दिखाता है। यहां से एवरेस्ट, लोत्से और नूप्त्से के सुन्दर शिखर दिखते हैं और इसी के एक ऊंचे हिस्से से दक्षिण और पश्चिमी इलाके की अनेक सुन्दर चोटियां भी। दोपहर बाद व्यू पॉइंट में हवा तेज हो जाती है और एवरेस्ट पर छा जाते हैं बादल। इस लिए यहां सुबह-सुबह जल्दी पहुंचने ही पर की अच्छा नजारा दिख पाता है।
यहां पर दो स्मारक भी हैं। छोटा स्मारक नेपाल और इसराइल की दोस्ती का प्रतीक है और बड़ा स्मारक एवरेस्ट, तेनजिंग और शेरपा बिरादरी को समर्पित है। छोटे स्मारक में इसराइल के निकट के मृत सागर की एक चट्टान और एवरेस्ट आधार शिविर के पत्थरों को एक साथ रख कर स्मारक का रूप दिया गया है और इसे दोनों देशों की दोस्ती का प्रतीक दिखाया गया है। जबकि बड़े स्मारक में तेनजिंग की एक बड़े आकार की प्रतिमा है। जिसमें उनके एक हाथ में आइसएक्स भी दिखाई गई है। यह स्मारक अभी निर्माणाधीन है।
लगभग 5 हजार आबादी वाले नामचे बाजार से आसपास के कई गावों के लिए पैदल रास्ते हैं। यहां पश्चिमी छोर की पहाड़ियों के पार 3780 मीटर की ऊंचाई में एक हवाई अड्डा भी है। इस स्यांगबोचे एयरपोर्ट का रनवे 400 मीटर का है और यह कच्चा है। इस पर अब व्यावसायिक उड़ानों की अनुमति नहीं है मगर नामचे तक सामान लाने ले जाने के लिए हैलीकाप्टर प्रायः यहां आते रहते हैं। कभी-कभार पास ही बने होटल के यात्रियों को लेकर भी लुकला से हेलीकाप्टर यहां पहुंचते हैं।
लुकला से यहां आने में हेलीकाप्टर को करीब 12 मिनट लगते हैं। नामचे बाजार से घाटी के सबसे ऊंचे गांव थामे व कुमजुंग के लिए भी मार्ग हैं। थामे भोट कोशी घाटी का गांव है और तिब्बत व्यापार के दिनों में इसी के ऊपर के दर्रे से होकर नमक के व्यापार के लिए शेरपा लोग तिब्बत तक जाते थे।
1953 से पहले नामचे सिर्फ एक बड़ा गांव था। 1953 में तेनजिंग और हिलेरी की एवरेस्ट विजय के बाद यह एवरेस्ट अभियानों के प्रमुख केन्द्रों में से एक है। इसके कारण इसकी आर्थिक स्थिति भी बहुत बेहतर हो गई है। और कई बार इसकी प्रति व्यक्ति आय राजधानी काठमाण्डू से भी अधिक हो चुकी है। आज भी एवरेस्ट अभियानों के लिए नामचे बाजार एक अनिवार्य पड़ाव है। हमारा अगला पड़ाव अब थ्यांग बोचे था।
शाम को बाजार में लिक्विड बार नामके कैफे में एवरेस्ट के शेरपाओं पर बनी बेहतरीन वीडियो फिल्म ‘शेरपा’ देखने के बाद अरूण अपनी तैयारियों में लग गए और राजेन्द्र मेरे साथ आगे की यात्रा पर चर्चा में। नवांग और ताशी बाजार में अपने मित्रों के साथ घूम रहे थे। नामचे बाजार में अब सिर्फ घण्टियों की आवाज सुनाई दे रही थी।
गोविन्द पंत राजू