Radha Soami Satsang Agra: क्या है आगरा का राधास्वामी संप्रदाय, 160 साल से भी पुराना है इतिहास

Radha Soami Satsang Agra: रविवार को हुई घटना में पुलिस और सत्संगी दोनों पक्षों के कई लोग घायल हुए। मामले को कवर करने पहुंचे कुछ पत्रकारों को भी चोटें आईं।

Written By :  Krishna Chaudhary
Update:2023-09-25 08:15 IST

Radha Soami Satsang Agra  (photo: social media )

Radha Soami Satsang Agra: आगरा स्थित राधास्वामी संप्रदाय इन दिनों पुलिस के साथ हुई झड़प को लेकर खबरों में है। रविवार को राधास्वामी सत्संग सभा दयालबाग में अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई करने गई पुलिस और सत्संगियों में भीषण हिंसक झड़प हो गई। दोनों के बीच टकराव का आलम ये था कि थोड़ी देर के लिए इलाका युद्धक्षेत्र में तब्दील हो गया। दोनों ओर से जमकर लाठियां चलीं। हालात को नियंत्रित करने के लिए मौके पर अतिरिक्त पुलिसफोर्स तैनात करना पड़ा।

मिली जानकारी के मुताबिक, रविवार को हुई घटना में पुलिस और सत्संगी दोनों पक्षों के कई लोग घायल हुए। मामले को कवर करने पहुंचे कुछ पत्रकारों को भी चोटें आईं। पुलिस की रिपोर्ट के मुताबिक, 10 पुलिसकर्मी, 7 सत्संगी और दो पत्रकार इस भिड़ंत में घायल हो गए। घटना के बाद से इलाके में भारी तनाव है। वहीं, इस पर सियासी बयानबाजी भी शुरू हो गई है। सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव ने राधास्वामी संप्रदाय का समर्थन करते हुए पुलिसिया कार्रवाई की निंदा की है। तो चलिए एक नजर राधास्वामी संप्रदाय पर डालते हैं –

1861 में हुई थी शुरूआत

राधास्वामी मत के संस्थापक परम पुरूष पूरन धनी हुजूर स्वामी शिव दयाल सिंह सेठ थे। उनका जन्म 24 अगस्त 1818 को आगरा स्थित पन्नी गली में हुआ था। कहा जाता है कि वे बचपन से ही शब्द योग के अभ्यास में लीन रहते थे। सालों के अनुभव के आधार पर 15 फरवरी साल 1861 में उन्होंने राधास्वामी सत्संग की शुरूआत की। इस सत्संग का नाम राधास्वामी रखने के पीछे कई मान्यताएं बताई जाती हैं। एक तो राधा स्वामी यानी भगवान श्री कृष्ण और दूसरा यह भी कहा जाता है कि इस शिव दयाल की पत्नी का नाम भी राधा था।

हालांकि, दोनों में से कौन सी बात सही है, इसकी पुष्टि करना मुश्किल है। राधा स्वामी मत के सबसे पहले गुरू बाबा शिव दयाल 15 जून 1878 को अपनी सांसारिक भूमिका पूरी करने के बाद प्रभुचरणों में लीन हो गए। उनकी समाधि आगरा के स्वामीबाग में स्थित है। इसके 11 साल बाद 1889 में सेना से रिटायर उनके शिष्य जयमल सिंह ने पंजाब आकर यहां ब्यास नदी के किनारे कुटिया बनाई और भक्तों को नामदान देना शुरू कर दिया। 1903 तक उन्होंने राधा स्वामी के नाम से सत्संग किया। धीरे-धीरे भक्तों की संख्या बढ़ती चली गई। आज देश – विदेश में इस मत को मानने वाले कई लोग हैं। हर साल वसंत पंचमी के दिन इस मत के अनुनायी आगरा के दयालबाग में एकत्रित होते हैं।

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