Gyanvapi Masjid: वजू खाना बंद होने पर बिफरी मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, कहा- ये नाइंसाफी है...मस्जिद है और रहेगी
Gyanvapi Masjid: ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (All India Muslim Personal Law Board) ने नाइंसाफी बताया। बोर्ड ने इस मामले पर कहा, यह पूरा घटनाक्रम सांप्रदायिक उन्माद पैदा करने की एक साजिश है।
यूपी के वाराणसी स्थित ज्ञानवापी मस्जिद (Gyanvapi Masjid) में कथित शिवलिंग मिलने के बाद सेशन कोर्ट के आदेश के बाद मस्जिद के वजू खाना सहित आसपास के स्थान को सील कर दिया गया है। वजू खाना बंद किए जाने को मुसलमानों के प्रमुख संगठन ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (All India Muslim Personal Law Board) ने नाइंसाफी बताया है। बोर्ड ने इस मामले पर कहा कि, यह पूरा घटनाक्रम सांप्रदायिक उन्माद पैदा करने की एक साजिश है।
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) के महासचिव खालिद सैफुल्लाह रहमानी (Khalid Saifullah Rahmani) ने ज्ञानवापी मस्जिद मामले में सोमवार को हुई कार्यवाही पर सोमवार देर रात एक बयान जारी किया। अपने बयान में रहमानी बोले, 'ज्ञानवापी मस्जिद थी, मस्जिद है और मस्जिद ही रहेगी। इसे मंदिर करार देने की कोशिश सांप्रदायिक उन्माद पैदा करने की साजिश से अधिक कुछ नहीं है। उन्होंने कहा, यह संवैधानिक अधिकारों और कानून के खिलाफ है।'
'यह मुस्लिम वक्फ की मिल्कियत है'
खालिद सैफुल्लाह रहमानी ने अपने बयान में कहा, 'साल 1937 में दीन मोहम्मद बनाम स्टेट सेक्रेटरी केस में कोर्ट ने जुबानी गवाही और दस्तावेजों के आधार पर यह बात तय की थी, कि यह पूरा अहाता यानी ज्ञानवापी मस्जिद का परिसर, मुस्लिम वक्फ की मिल्कियत है। इस आधार पर मुसलमानों को इसमें नमाज पढ़ने का हक है।'
अदालत की भूमिका पर भी उठाए सवाल
इतना ही नहीं, AIMPLB के महासचिव रहमानी ने वाराणसी की सिविल जज (सीनियर डिवीजन) की अदालत की भूमिका पर भी सवाल खड़े किए। उन्होंने कहा, 'कानून का तकाजा ये था कि मस्जिद में मंदिर होने के दावे को अदालत फौरन खारिज कर देती। मगर, अफसोस की बात है कि वाराणसी की सिविल कोर्ट ने इस जगह के सर्वे और वीडियोग्राफी (Survey and Videography) का आदेश जारी कर दिया।
बड़े अदलतों का दरवाजा खटखटाया गया
उन्होंने आगे कहा, 'इस मामले में वक्फ बोर्ड (Waqf Board) इलाहाबाद हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटा चुका है। यह मुकदमा वहां विचाराधीन है। इसी तरह, ज्ञानवापी मस्जिद (Gyanvapi Masjid) की अंजुमन-ए-इंतजामिया मसाजिद कमेटी भी सिविल कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) जा चुकी है। वहां भी यह मामला सुनवाई के दौर में है।'
बोर्ड महासचिव ने दी ये दलील
AIMPLB बोर्ड के महासचिव ने अपनी दलील में कहा कि, कोर्ट ने यह भी तय कर दिया था, कि कितना हिस्सा मस्जिद है और कितना मंदिर। उसी वक्त वजू खाने को मस्जिद की मिल्कियत के रूप में स्वीकार किया गया था।' उन्होंने अपनी बात में आगे कहा, 'फिर 1991 में 'प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट' देश की संसद से पारित हुआ। जिसमें कहा गया है कि 1947 में जो इबादतगाहें जिस तरह थीं उनको उसी हालत पर कायम रखा जाएगा। साल 2019 में बाबरी मस्जिद मुकदमे के फैसले में सर्वोच्च अदालत ने साफ तौर पर कहा था, कि अब तमाम इबादतगाहें इस कानून के मातहत होंगी। यह कानून 'दस्तूर हिंद' की बुनियाद के मुताबिक है।'
'यह आदेश ज्यादती है'
बोर्ड के महासचिव रहमानी ने कहा, 'इन तमाम बातों को नजरअंदाज कर सिविल कोर्ट ने पहले सर्वे का आदेश दिया। फिर, उसकी रिपोर्ट कबूल करते हुए वजू खाने के हिस्से को बंद करने का हुक्म जारी किया।' वो आगे कहते हैं, 'यह आदेश ज्यादती है। साथ ही, कानून का उल्लंघन भी है। एक अदालत से हरगिज उम्मीद नहीं की जा सकती। अदालत के इस अमल ने इंसाफ के तकाजों को घायल कर दिया है। इसलिए सरकार को चाहिए कि फौरी तौर पर इस फैसले पर अमल रोके। इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले का इंतजार करे और 1991 के कानून के अनुसार, तमाम मजहबी स्थलों का संरक्षण करें।