हर दल की सरकार को करना पड़ा है अयोध्या विवाद का सामना

कांग्रेस के कार्यकाल में श्री रामजन्मभूमि परिसर का ताला खुला, मुलायम सरकार में मंदिर निर्माण के लिए गये कारसेवकों को रोकने के लिए गोली चली, कल्याण सरकार के दौरान बाबरी ढांचे का विध्वंस किया गया। मायावती सरकार में 60 साल पुराने का इस विवाद का फैसला आया।

Update:2023-03-27 02:48 IST

श्रीधर अग्निहोत्री

लखनऊ: कांग्रेस के कार्यकाल में श्री रामजन्मभूमि परिसर का ताला खुला, मुलायम सरकार में मंदिर निर्माण के लिए गये कारसेवकों को रोकने के लिए गोली चली, कल्याण सरकार के दौरान बाबरी ढांचे का विध्वंस किया गया। मायावती सरकार में 60 साल पुराने का इस विवाद का फैसला आया। इसके बाद जब अखिलेश यादव की सरकार ने पांच साल काम किया तो वर्ष 2015 में यहां एक बार फिर मंदिर निर्माण को लेकर पत्थर पहुंचने का काम शुरू हुआ जिसके बाद अखिलेश यादव को भी कानून व्यवस्था बनाए रखने की एक चुनौती मिल चुकी है।

यूपी की राजनीति में अयोध्या विवाद ऐसा विवाद रहा है जिससे कोई दल अछूता नही रहा। पिछले तीन दशकों से अयोध्या मुद्दे को लेकर हर दल की सरकार को इसका सामना करना पडा है। इसे संयोग ही कहा जायेगा कि इस विवाद से बचती रही बसपा सरकार को भी 2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला आने के बाद कानून व्यवस्था को बनाए रखने की बड़ी चुनौती मिली थी।

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अयोध्या के वर्षो पुराने विवाद का प्रारम्भ 25 जनवरी 1986 से हुआ। जब वकील उमेश चन्द्र पाण्डे ने फैजाबाद अदालत में दावा दायर किया कि श्री रामजन्मभूमि पर लगा ताला अनाधिकृत है। मुंसिफ ने जब अपने आदेश से ताला खोलने से इंकार कर दिया जिस पर आदेश के खिलाफ जिला न्यायाधीश की अदालत में अपील की गयी तो एक फरवरी को जिला अदालत के मुख्य न्यायधीश कृष्ण मोहन पाण्डे ने सुनवाई के पश्चात ताला खोलने के आदेश दिये। तब मो हासिम ने इस निर्णय के खिलाफ अपील की तथा बाद मुस्लिम समाज ने कांग्रेस के विरूद्व नाराजगी व्यक्त करते हुए काला दिवस मनाया। कई जगह आगजनी व हिंसा हुई। इसका राजनीतिक परिणाम यह रहा मुसलमान कांग्रेंस से नाराज हो गया और 1989 के चुनाव में कांग्रेस प्रदेश की सत्ता से बेदखल हो गयी।

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अयोध्या विवाद का अगला पडाव उस समय आया। जब मंदिर निर्माण के लिए उमड़े हुजूम को रोकने के लिए मुलायम सरकार के आदेश पर पहले 30 अक्टूबर 1990 और बाद में 2 नवम्बर के दिन पुलिस ने लाठिया बरसाकर कारसेवकों को रोकना चाहा, लेकिन जब कारसेवक नहीं रूके तो उन पर गोली चलाने का आदेश दिया गया। इस घटना का परिणाम यह रहा कि केन्द्र में वीपी सिंह की राष्ट्रीय मोर्चा सरकार ने विश्वास मत खो दिया और चन्द्रशेखर ने प्रधानमंत्री का पद संभाला। चंद्रशेखर ने एक दिसम्बर 1990 को मुलायम सरकार की तरफ से की गयी कार्यवाही को उचित बताया। इसके बाद 1991 के विधानसभा चुनाव में मुलायम का सूपड़ा साफ हो गया और 24 जून 1991 को प्रदेश में कल्याण सिंह के नेतृत्व में भाजपा सरकार का गठन हुआ।

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कल्याण सिंह की सरकार के गठन होते ही हिन्दूवादी ताकतें सक्रिय हो गयीं। 29 और 30 नवम्बर 1992 को नई दिल्ली में पंचम धर्म संसद की बैठक में इस विवाद का समाधान न होने पर 6 दिसम्बर को पुन अयोध्या में कारसेवा करने की घोषणा कर दी। परिणाम यह रहा कि इस दिन देश भर से आये अयोध्या पहुचं उन्मादी कारसेवकों ने बाबरी ढांचे का विध्वंस कर दिया। जिसके बाद केन्द्र सरकार ने यूपी के अलावा भाजपा शासित तीन अन्य राज्यों हिमाचंल प्रदेश, राजस्थान और मध्य प्रदेश की सरकारों को बर्खास्त कर दिया।

बाबरी ढांचे के विध्वंस के बाद कई वर्षों तक अयोध्या की राजनीति ठंडी रही, लेकिन हाईकोर्ट के आदेश पर रामजन्मभूमि परिसर के आसपास भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की तरफ से उत्खनन का कार्य 12 मार्च 2003 से शुरू हुआ, जो 7 अगस्त 2003 तक चला। इस दौरान यूपी में बसपा की सरकार थी, लेकिन इस उत्खनन कार्य से सरकार का कोई लेना देना नहीं था।

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इसके 60 वर्षों के लम्बे इंतजार के बाद श्री रामजन्मभूमि बाबरी मस्जिद के मालिकाना हक पर हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच का फैसला आया। कोर्ट ने 30 सितंबर 2010 को जस्टिस सुधीर अग्रवाल, जस्टिस एसयू खान और जस्टिस डीवी शर्मा की बेंच ने अयोध्या विवाद पर अपना फैसला सुनाया। फैसला हुआ कि 2.77 एकड़ विवादित भूमि के तीन बराबर हिस्सा किए जाए।

राम मूर्ति वाला पहला हिस्सा राम लला विराजमान को दिया गया। राम चबूतरा और सीता रसोई वाला दूसरा हिस्सा निर्मोही अखाड़ा को दिया गया और बाकी बचा हुआ तीसरा हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड को दिया गया। इसके बाद यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा जहां लगातार सुनवाई हो रही है। अब एक बार फिर देश की सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई चल रही है। कहा जा रहा है कि नवम्बर महीने तक रामजन्मभूमि विवाद पर फैसला आ जाएगा।

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