वकीलों की हड़ताल पर हाईकोर्ट सख्त, सरकार के लिए कही ये बड़ी बात
शिक्षा सेवा अधिकरण गठन को लेकर वकीलों की हड़ताल पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सख्त रुख अपनाया है और ऐसी स्थिति उत्पन्न करने के लिए राज्य सरकार को जिम्मेदार मानते हुए तल्ख टिप्पणी की है।
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प्रयागराज: शिक्षा सेवा अधिकरण गठन को लेकर वकीलों की हड़ताल पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सख्त रुख अपनाया है और ऐसी स्थिति उत्पन्न करने के लिए राज्य सरकार को जिम्मेदार मानते हुए तल्ख टिप्पणी की है।
कोर्ट ने कहा है त्वरित न्याय की जिसकी जवाबदेही है वहीं सरकार स्वयं कोर्ट के फैसलों की अनदेखी कर ऐसे कार्य किये जिससे न्याय व्यवस्था पंगु हो गयी है।
कोर्ट ने जी एस टी न्यायाधिकरण गठन को लेकर दो खण्डपीठों में मतभिन्नता के मुद्दे सहित शिक्षा सेवा अधिकरण के मुद्दे पर वृहदपीठ गठित कर विवाद का हल निकालने का आदेश दिया है।
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जनहित याचिका का कोर्ट ने लिया संज्ञान
यह आदेश न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल् तथा न्यायमूर्ति राजीव मिश्र की खंडपीठ ने वकीलों की हड़ताल से इलाहाबाद व् लखनऊ में न्यायिक कार्य बाधित होने व् सवा नौ लाख मुकदमों के बोझ से निपटने की जवाबदेही का चलते स्वतः कायम जनहित याचिका पर दिया है।
कोर्ट ने कहा है कि राज्य पुनर्गठन अधिनियम 2000 में स्पष्ट है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट उत्तर प्रदेश का हाई कोर्ट है। इसके बावजूद एक खण्डपीठ ने कहा कि प्रदेश में कोई प्रधान पीठ नहीं है।
दो पीठ इलाहबाद व् लखनऊ में है। हालांकि इस फैसले को दूसरी खण्डपीठ ने कानून के विपरीत करार देते हुए निरर्थक करार दिया है।
सुप्रीम कोर्ट ने कई फैसलो में कहा है कि जहां हाई कोर्ट हो वही पर अधिकरण गठित होने चाहिए।
इससे न्यायिक परिवीक्षा हो सकेगी। इसके बावजूद राज्य सरकार ने शिक्षा सेवा अधिकरण लखनऊ में स्थापित करने का कानून पास कर राष्ट्रपति के समक्ष भेज दिया है।
अभी यह कानून नही बन सका है ऐसे में कोर्ट इसकी वैधता पर विचार नही कर रही।
कोर्ट ने कहा सरकार के इस कदम ने हाई कोर्ट की न्याय व्यवस्था को पंगु कर दिया है।
जब की सरकार पर त्वरित न्याय दिलाने की जवाबदेही है।
कोर्ट ने प्रमुख सचिव शिक्षा से पूछा ये सवाल
कोर्ट ने प्रमुख सचिव माध्यमिक व बेसिक एवं प्रमुख सचिव विधि एवं न्याय को नोटिस जारी कर पूछा है कि वादकारियों को नजदीक या केंद्रीकृत न्याय देने की सरकार की क्या नीति है और कोर्ट के फैसलों के विपरीत निर्णय लेकर उसने न्यायिक कार्य को बाधित क्यों किया है?
हड़ताल कर वकीलो द्वारा न्यायिक कार्य में बाधा डालने के लिए सरकार पर ठीकरा फोड़ते हुए कोर्ट ने अवध बार एसोसिएशन लखनऊ के महासचिव व् इलाहाबाद हाई कोर्ट बार एसोसिएशन के महासचिव को नोटिस जारी की है और 30 अगस्त को मुख्य न्यायाधीश द्वारा गठित होने वाली वृहदपीठ के समक्ष अपना पक्ष रखने का निर्देश दिया है।
कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा वकीलो की हड़ताल को अवैध करार देने के फैसले को दुहराते हुए इसे वादकारी हितों के विपरीत करार दिया है।
कोर्ट ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विपरीत राज्य सरकार ने प्रदेश में एक स्थान पर शिक्षा सेवा अधिकरण के गठन का फैसला लेकर न्यायिक कार्य में अवरोध उतपन्न किया।
जिससे वादकारियों को न्याय देने की कार्यवाही बुरी तरह बाधित हुई है।कोर्ट ने राज्य सरकार से प्रदेश में ऐसी स्थिति पैदा करने की सफाई मांगी है।
कोर्ट ने पूछा है कि सरकार वादकारियों को नजदीक न्याय देने की नीति पर कायम है या केंद्रीकृत न्याय देना चाहती है।जहाँ हाई कोर्ट है वहाँ अधिकरण न बनाकर सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विपरीत फैसला किस कारण से लिया है?
वकीलों को न्यायिक कार्य बहिष्कार का अधिकार नहीं
वकीलों की हड़ताल पर कोर्ट ने कहा कि वादकारी वकालतनामा मुकदमे में बहस के लिए देता है। इसकी शर्तो के विपरीत वकीलों को न्यायिक कार्य बहिष्कार का अधिकार नहीं है।
कोर्ट ने कहा है कि जब तक अधिकरण गठन के मुद्दे पर कोर्ट का फैसला नहीं आ जाता, वकील काम पर लौट आये। कोर्ट ने कहा हड़ताल से जेलों में बंद लोगो को न्याय नही मिल पा रहा है।
वकील कोर्ट के अधिकारी है उन्हें हड़ताल के बजाय न्यायालय के जरिये विवाद निपटाना चाहिए। वकील न्याय दिलाने में सहयोग करे।
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