किस्मत का खेल : एक को मंत्री पद तो दूसरी को अभी गठबंधन की दरकार !

यूपी में चल रहे सियासी उठापटक के बीच लखनऊ में राजनीतिक माहौल गर्म है। अनुप्रिया पटेल जहां अमित शाह से मिलीं तो वहीं उनकी बहन और अपना दल (कृष्णा पटेल गुट) की नेता पल्लवी पटेल अखिलेश यादव से मिलने पहुंचीं।

Written By :  Rahul Singh Rajpoot
Update:2021-06-11 18:13 IST

फाइल फोटो, साभार-सोशल मीडिया

यूपी में चल रहे सियासी उठापटक पर सबकी निगाहें टिकी हुई हैं कि आगे क्या होगा, इस बीच लखनऊ में भी राजनीतिक माहौल गर्म है। गुरुवार को गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah) से अपना दल-एस (Apna Dal S) की अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल ने मुलाकात की थी। आज (शुक्रवार) को उनकी बहन अपना दल (कृष्णा पटेल गुट) (Apna Dal, Krishna Patel Gut) की नेता पल्लवी पटेल समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) से मिलने पहुंचीं। दोनों नेताओं के बीच करीब 45 मिनट तक चर्चा हुई।

इस मुलाकात को लेकर कहा जा रहा है कि पल्लवी पटेल अपनी मां कृष्णा पटेल का संदेश लेकर अखिलेश यादव के पास आई थीं। बताया जा रहा है कि दोनों नेताओं के बीच आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर चर्चा हुई और अखिलेश यादव कुछ सीटें अपना दल (कृष्णा पटेल गुट) को दे सकते हैं। बता दें पल्लवी पटेल अपना दल के संस्थापक सोनेलाल पटेल की छोटी बेटी हैं और वह अपनी मां के साथ रहती हैं। जिनके पास अपना दल (कृष्णा पटेल गुट) है। जबकि उनकी बड़ी बहन अनुप्रिया पटेल अपना दल-एस की अध्यक्ष हैं। अनुप्रिया पटेल बीजेपी के साथ मिलकर 2014, 2017 और 2019 का चुनाव लड़ चुकी हैं। अनुप्रिया पटेल दूसरी बार मिर्जापुर से सांसद हैं। जबकि कृष्णा पटेल की पार्टी का कोई भी विधायक या सांसद नहीं है। 


अमित शाह से मिलीं अनुप्रिया पटेल

गुरुवार को सीएम योगी अचानक दिल्ली पहुंचते हैं और गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात करते हैं। सीएम योगी की मुलाकात के थोड़ी देर पर एनडीए की सहयोगी अपना दल-एस की अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल अमित शाह से मिलने उनके आवास पर पहुंचती हैं। अनुप्रिया पटेल की मुलाकात पर कहा जा रहा है कि उन्होंने यूपी चुनाव, गठबंधन और कैबिनेट विस्तार पर चर्चा की।



बता दें कि अनुप्रिया पटेल पहले ही कह चुकी हैं कि उनकी पार्टी की यूपी कैबिनेट में ज़्यादा हिस्सेदारी बनती है। इसलिए वो चाहती हैं यूपी कैबिनेट विस्तार जल्द से जल्द हो और उनके दो लोगों को मंत्री बनाया जाए। इसके साथ ही वह केंद्र में भी एक पद चाहती हैं। मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में अनुप्रिया पटेल केंद्र में राज्य मंत्री थीं। लेकिन दूसरे कार्यकाल में उन्हें पीएम मोदी ने अपनी कैबिनेट में जगह नहीं दी। इसलिए भी वह नाराज बताई जाती है। फिलहाल यूपी कैबिनेट में उनकी पार्टी से जयकिशन जैकी मंत्री हैं उनके पास जेल राज्यमंत्री की जिम्मेदारी है।

कौन थे सोनेलाल पटेल?

डॉ. सोनेलाल पटेल कभी बीएसपी के संस्थापक कांशीराम के करीबी माने जाते थे, जब बसपा पर मायावती का आधिपत्य हुआ तो सोनेलाल पटेल ने बसपा को टक्कर देने के लिए अपना दल का गठन किया। उनका उद्देश्य था कि वे जमीनी लोगों के लिए राजनीति करें। इसके लिए उन्होंने संघर्ष भी किया। पूर्वांचल में पार्टी को मजबूत करने के लिए वे प्रयासरत रहे। अपने जीवन काल में कभी चुनाव न जीतने वाले सोनेलाल पटेल की पसंदीदा सीट वाराणसी की कोलअसला थी, जो बाद में दो विधानसभा क्षेत्रों रोहनिया और पिण्डरा में बंट गई।

अपना दल के गठन की कहानी भी काफी रोचक है। दरअसल, मायावती को टक्कर देने के लिए अपना दल का गठन हुआ था। अपना दल के गठन के लिए डॉ. सोनेलाल पटेल ने पहले कुर्मी समुदाय के बीच जनसंपर्क किया और फिर नवंबर 1994 में लखनऊ के बेगम हजरत महल पार्क में एक रैली बुलाई थी। तत्कालीन लोगों का मानना है कि इस रैली में कुर्मी समुदाय ने अपनी ताकत का अहसास करा दिया था और रणनीतिकारों को साफ लग गया था कि यूपी में एक और जातीय क्षेत्रीय पार्टी का उदय होने वाला है। इसके 11 महीने बाद 1995 में सरदार पटेल जयंती पर कुर्मी समाज की रथ यात्रा को खीरी में रोका गया। फिर नवंबर में बेगम हजरत महल पार्क में रैली पर रोक लगाई गई। रैली बारादरी पार्क में हुई। इसी रैली में अपना दल के गठन की घोषणा की गई। उसके बाद से सोनेलाल पटेल जब तक जिंदा रहे तब तक पार्टी फलती फूलती रही।

सड़क हादसे में हुई थी सोनेलाल पटेल की मौत

डॉ. सोने लाल पटेल का निधन एक सड़क हादसे में हो गया। इस घटना के बाद उनकी पत्नी कृष्णा पटेल के हाथों पार्टी की बागडोर मिली। उन्होंने पार्टी में संगठन को मजबूत करने का काम किया। 2012 में अपना दल से पहली बार जीता कोई परिवार का सदस्य अपना खाता खोल सका। वैसे 2007 में ही पार्टी का खाता खुल गया था, लेकिन डॉ. सोनेलाल पटेल खुद चुनाव हार गए थे। उनकी मौत के बाद 2012 के विधानसभा चुनाव में उनकी बेटी अनुप्रिया पटेल वाराणसी के रोहनिया विधानसभा की विधायक बनीं। उसके बाद अनुप्रिया ने भाजपा से नजदीकी बढ़ा ली। 2014 में वे मोदी लहर में वह मिर्जापुर की सांसद बनीं और धीरे-धीरे यहीं से पार्टी के टूटने की प्रक्रिया शुरू हो गई। देखते-देखते मां-बेटी में ऐसी दूरियां बढ़ीं कि मामला भारत निर्वाचन आयोग तक पहुंचा और आयोग को बड़ा फैसला लेना पड़ा और अपना दल मां बेटी के गुट में बंट गई।

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