Lucknow News: डेंगू की वैक्सीन में हैं गंभीर रिस्क, भारत में नहीं मिली है मंजूरी
भारत में डेंगू से बचाव का अभी तक सिर्फ एक ही उपाय है– मच्छर आपको न काटने पाए।;
डेंगू मच्छर की डिजाइन तस्वीर (फोटो-मीडिया)
Lucknow News: यूपी समेत देश के कई हिस्सों में डेंगू (dengue) का प्रकोप है। बड़ी संख्या में लोगों, खासकर बच्चों के संक्रमित होने का सिलसिला न सिर्फ जारी है बल्कि बढ़ता ही जा रहा है। डेंगू का मच्छर साफ़ पानी में पनपता है और दिन के वक्त काटता है इसलिए इससे बचना एक बड़ी समस्या है। डेंगू (dengue) से बचाव का सिर्फ एक ही उपाय है– मच्छर आपको न काटने पाए। इस वायरस की कोई वैक्सीन भारत में उपलब्ध नहीं है और बाकी देशों में अगर उपलब्ध है भी तो वह सबके लिए सुरक्षित नहीं है। कोरोना के वायरस के अलग अलग स्ट्रेन जिस तरह वैक्सीन को चकमा दे रहे हैं ठीक वैसे ही डेंगू वायरस (dengue virus) के स्ट्रेन वैक्सीन डेवलपमेंट में मुसीबत बने हुए हैं।
वैक्सीन का मसला
डेंगू से बचाव के लिए वैक्सीन बनाना आसान काम साबित नहीं हो पाया है। क्योंकि डेंगू वायरस के चार तरह के स्ट्रेन हैं। इसके लिए 1920 से कई कोशिशें हुईं हैं। लेकिन पूर्ण सफलता किसी को नहीं मिल पाई। सिर्फ एक कंपनी ने वैक्सीन बनाने में सीमित सफलता हासिल की है। ये वैक्सीन फ़्रांस की सनोफी पास्चर ने डेवलप की है। जो चारों स्ट्रेन पर असरदार है। डेंगवैक्सिया नामक यह वैक्सीन जीवित लेकिन निष्प्रभावी डेंगू वायरस पर आधारित है। इस वैक्सीन के तीन इंजेक्शन दिए जाते हैं, पहली डोज़ के 6 महीने और 12 महीने बाद। लेकिन इस वैक्सीन में एक पेंच यह है कि ये सिर्फ उन लोगों के लिए सुरक्षित है जिनको पहले डेंगू हो चुका है। जिनको पहले कभी डेंगू नहीं हुआ है, उनमें ये वैक्सीन गंभीर डेंगू का जोखिम पैदा कर देती है। इसीलिए सीरो टेस्ट के बाद ही यह वैक्सीन लगाई जाती है।
यही वजह है कि अमेरिका में एफडीए ने सिर्फ उन लोगों को यह वैक्सीन लगाये जाने की इजाजत दी है जिनको पहले कभी डेंगू हो चुका है। सबसे पहले इस वैक्सीन को 2015 में मेक्सिको ने स्वीकृति दी थी। उसके बाद 20 देशों ने इसे मंजूरी दी। लेकिन 2017 में फिलिपीन्स में स्कूली बच्चों को ये वैक्सीन लगाये जाने के अभियान के दौरान कई बच्चों की मौत हो गयी। इसके बाद वैक्सीनेशन प्रोगाम बंद कर दिया गया। तब से इस वैक्सीन की सेफ्टी संदेह के घेरे में आ गयी। फिलिपीन्स की घटना के बाद सनोफी ने जो सफाई दी उससे साफ़ हो गया कि जिनको पहले कभी डेंगू नहीं हुआ है उनमें यह वैक्सीन सेफ नहीं है।
भारत की स्थिति
मई, 2017 में भारत ने ड्रग कंट्रोलर ऑफ़ इंडिया की सब्जेक्ट एक्सपर्ट्स कमेटी की सिराफिश को नामंजूर करते हुए सनोफी को बताया कि भारत के लोगों पर तीसरे चरण के ट्रायल के बगैर वैक्सीन को अनुमति नहीं दी जायेगी। दरअसल, सनोफी ने ट्रायल की अनिवार्यता से छूट मांगी थी। स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा था कि छूट के लिए जो तर्क दिए गए हैं वे पर्याप्त नहीं हैं। हालाँकि ड्रग कंट्रोलर की कमेटी ने सिफारिश की थी कि– ये वैक्सीन क्लिनिकल ट्रायल की अनिवार्यता से छूट के लिए शर्तों को पूरा नहीं करती है। लेकिन डेंगू के खतरे को देखते हुए यह कमेटी 18 से 45 आयु वर्ग के लोगों में वैक्सीन लगाये जाने की अनुमति देती है। शर्त यह होगी कि कंपनी चौथे चरण का क्लिनिकल ट्रायल एक समयबद्ध तरीके से पूरा कर ले।
एक भारतीय कंपनी ने भी डेंगू की वैक्सीन डेवलप करने का दावा किया है। लेकिन अभी तक इसका ह्यूमन ट्रायल नहीं हो सका है। 2015 में इस वैक्सीन को बंदरों पर टेस्ट किया गया था। इसके नतीजे उत्साहजनक पाए गए थे। दिल्ली स्थित इंटरनेशनल सेंटर फॉर जेनेटिक इंजीनियरिंग एंड बायोटेक्नोलॉजी ने ये वैक्सीन डेवलप की। लेकिन इसका कहना है कि किसी बड़ी दवा कंपनी से पार्टनरशिप न होने के कारण ह्यूमन ट्रायल का काम आगे नहीं बढ़ पाया है। इनफ़ोसिस के संस्थापक नारायणमूर्ति ने क्लिनिकल ट्रायल को फंड करने में रुचि दिखाई थी। लेकिन कुछ सरकारी नियमों की वजह से ऐसा नहीं हो पाया। बहरहाल, दुनिया में डेंगू वैक्सीन डेवलप करने के लिए चार कम्पनियाँ और संस्थान लगे हुए हैं। इनको कब सफलता मिलेगी, कुछ कहा नहीं जा सकता।