उम्भा कांड में प्रियंका हठ से हारी थी योगी सरकार, सीतापुर गेस्ट हाउस में कब तक रहेगी अरेस्ट

लखीमपुर कांड के पीड़ित किसान परिवारों से मिलने की जिद पर अड़ी प्रियंका वापस लौटने को तैयार नहीं है। इनकी इस जिद को अब इंदिरा गांधी के जुझारू तेवर से जोड़कर देखा जा रहा है। सोशल मीडिया पर चर्चा हो रही है कि प्रियंका गांधी ने इंदिरा गांधी के बेलछी कांड आंदोलन की याद ताजा कर दी है।

Report :  Akhilesh Tiwari
Published By :  Deepak Kumar
Update: 2021-10-05 06:09 GMT

पीड़ितों के परिवार के साथ प्रियंका गांधी।  

Priyanka Gandhi: प्रियंका गांधी (Priyanka Gandhi) ने लखीमपुर कांड (Lakhimpur Hatyakand) में जिस तरह से पीड़ित परिवारों से मिलने की जिद ठानी है, उसने सोनभद्र के उम्भा कांड की याद ताजा कर दी। उम्भा गांव के पीड़ितों से मिलने से रोकने में नाकाम स्थानीय प्रशासन और योगी सरकार (Yogi Sarkar) को प्रियंका के हठ के सामने झुकना पड़ा था। 24 घंटे से ज्यादा देर तक चुनार गेस्ट हाउस में प्रियंका को हिरासत में रखने के बाद जिला प्रशासन ने उम्भा गांव के पीड़ितों को गेस्ट हाउस बुलाया और प्रियंका से मुलाकात कराई। सीतापुर गेस्ट हाउस में भी प्रियंका के 30 घंटे से अधिक बीत चुके हैं। लखीमपुर कांड (Lakhimpur Kand) के पीड़ित किसान परिवारों से मिलने की जिद पर अड़ी प्रियंका वापस लौटने को तैयार नहीं है।


प्रियंका की जिद को अब इंदिरा गांधी के जुझारू तेवर से जोड़कर देखा जा रहा है। सोशल मीडिया पर चर्चा हो रही है कि प्रियंका गांधी ने इंदिरा गांधी के बेलछी कांड आंदोलन की याद ताजा कर दी है। तब उनकी दादी इंदिरा भी इसी तरह राज्य सरकार के प्रतिबंध और प्राकृतिक बाधाओं को पार कर बेलछी गांव पहुंची थीं। तब बिहार में बाढ़ आई हुई थी। बेलछी गांव पहुंचना आसान नहीं था, लेकिन इंदिरा गांधी ने बाढ़ की अनदेखी करते हुए हाथी पर सवार होकर बेलछी गांव की यात्रा की थी। 1977 में जब देश में मोरारजी देसाई की सरकार थी, इंदिरा गांधी अपनी कुर्सी गवां चुकी थीं तब बिहार के पटना जिले के बेलछी गांव में नरसंहार की वारदात हुई। कुर्मी जाति के ​हथियारबंद लोगों पर आरोप लगा कि उन्होंने आठ पासवान और तीन सुनार जाति के लोगों को जिंदा जला दिया था। एक 14 साल का लड़का आग से बचकर निकल आया तो उसे दोबारा आग में झोंक दिया गया। जनता पार्टी की सरकार और कानून व्यवस्था पर यह नरसंहार भारी पड़ने वाला था, इसे भांपकर इंदिरा गांधी तब वहां पहुंची थीं।


इंदिरा गांधी की तरह ही इस बार प्रियंका गांधी के तेवर भी देखने को मिले हैं। लखीमपुर खीरी में किसानों की कार से कुचलकर हत्या मामले में जब राजधानी लखनऊ में बैठे नेता अपने घरों से निकलने की प्लानिंग कर रहे थे तो दिल्ली से चलकर प्रियंका न केवल लखनऊ आईं बल्कि रात में ही लखीमपुर खीरी के लिए निकल गईं। पूरी रात यूपी पुलिस उन्हें रोकने में जुटी रही। आखिरकार सुबह लगभग 5 बजे उन्हें सीतापुर के हरगांव में पकड़ा गया। अब 2 दिन से पुलिस ने उन्हें सीतापुर पीएसी के गेस्ट हाउस में बंद कर रखा है। वह लखीमपुर खीरी के पीड़ित परिवारों से मिलने पर अडिग हैं।


पुलिस नहीं चाहती है कि वह लखीमपुर जाएं। इस घटना ने एक बार ​फिर उम्भा कांड की याद ताजा कर दी है। सोनभद्र के उम्भा गांव में जमीन पर कब्जे को लेकर हुई फायरिंग में 10 गोंड जाति के लोग मारे गए थे। लोकसभा चुनाव के तुरंत बाद जुलाई 2019 में हुई इस घटना के बाद जब दूसरे राजनीतिक दल आंदोलन के मूड में नहीं थे तो प्रियंका गांधी अगले ही दिन 19 जुलाई को सोनभद्र पहुंच गईं। तब पुलिस ने उन्हें हिरासत में ले लिया और अगले दिन तक चुनार गेस्ट हाउस में बंद रखा। प्रशासनिक अधिकारियों ने उनसे वापस लौटने को कहा । लेकिन उन्होंने कहा कि वह गांव के पीड़ित परिवारजनों से मिलने के लिए निकली हैं। बगैर मुलाकात किए वापस नहीं जाएंगी तब प्रशासन ने उम्भा गांव के पीड़ित परिवार वालों को चुनार गेस्ट हाउस में लाकर उनसे मिलवाया।

इसके बाद वह वापस लौटीं लेकिन 13 अगस्त 2019 को वापस उम्भा गांव पहुंची और पीड़ितों से दोबारा मुलाकात की। इस बीच मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी वहां पहुंचे थे। पीड़ितों को आर्थिक सहायता दी जा चुकी थी। योगी सरकार इस बार भी ऐसा ही करने की कोशिश में दिख रही है। प्रियंका को सीतापुर में रोककर किसानों से समझौता किया गया है। नौकरी और मुआवजा का एलान किया गया है। इसके बावजूद सरकार नहीं चाहती है कि प्रियंका गांधी लखीमपुर खीरी तक जाएं। ऐसे में बड़ा सवाल है कि प्रियंका का राजनीतिक हठ इस बार भी योगी सरकार पर भारी पड़ेगा या प्रियंका गांधी लोगों से मुलाकात किए बगैर वापस लौट जाएंगी।

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