UP Election 2022: देवरिया की विधानसभा सीटों पर CM योगी का क्या होगा राजनीतिक समीकरण, आइए जानें

UP Election 2022: राजनीतिक रूप से जनपद देवरिया बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। यहां कुल 7 विधानसभा सीटें हैं। देवरिया में 2 लोकसभा सीट है - देवरिया सदर और सलेमपुर। लेकिन सातों विधानसभा सीटें तकरीबन तीन लोकसभा क्षेत्र के हिस्से में आतीं हैं- देवरिया, सलेमपुर और बांसगांव।

Written By :  Vikrant Nirmala Singh
Published By :  Deepak Kumar
Update:2022-01-24 15:20 IST

यूपी विधानसभा चुनाव की तस्वीर (फोटो:न्यूज़ट्रैक)

Lucknow News: पूर्वांचल का एक जिला है नाम है गोरखपुर (Gorakhpur)। गोरखनाथ मंदिर और अब राजनीतिक दृष्टिकोण से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (CM Yogi Adityanath) का घर। जब इस जिले से पूरब की तरफ बढ़ेंगे तो एक जिला पड़ता है देवरिया (Deoria District)। देवरिया जिले (Deoria District) की पहचान सुप्रसिद्ध देवरहा बाबा और एक वक्त में यूपी में चीनी के कटोरे के रूप में रही है। कभी यहां 14 चीनी मिल हुआ करती थी। जिले के बंटवारे के बाद 6 चीनी मिल देवरिया को मिली थी और वर्तमान में सभी बिक चुकी हैं। यहां के किसानों ने भी गन्ने की खेती से राम-राम कर लिया है।

राजनीतिक रूप से जनपद देवरिया बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। यहां कुल 7 विधानसभा सीटें हैं। देवरिया में 2 लोकसभा सीट है - देवरिया सदर और सलेमपुर। लेकिन सातों विधानसभा सीटें तकरीबन तीन लोकसभा क्षेत्र के हिस्से में आतीं हैं- देवरिया, सलेमपुर और बांसगांव। 2017 के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने पहली बार देवरिया की 7 में से 6 विधानसभा सीटें जीती थी। भाटपाररानी की सीट समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) के आशुतोष उर्फ बबलू उपाध्याय ने जीती थी। इस बार भी भारतीय जनता पार्टी और विशेषकर योगी आदित्यनाथ के लिए देवरिया जिला लिटमस टेस्ट की तरह होगा। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (CM Yogi Adityanath) का इस इलाके पर मजबूत प्रभाव बताया जाता है। तो आइए समझते हैं देवरिया की सातों विधानसभा सीटों की वर्तमान राजनीतिक परिस्थिति।

देवरिया सदर विधानसभा (Deoria Sadar Assembly)

2017 में भारतीय जनता पार्टी (Bharatiya Janata Party) के टिकट पर यहां से स्वर्गीय जन्मेजय सिंह विधायक बने थे। वर्ष 2021 में उनके देहांत के बाद रिक्त हुई सीट पर हुए उपचुनाव में डॉक्टर सत्यप्रकाश मणि में भाजपा के टिकट पर चुनाव जीता था। वर्ष 2012 से यह सीट भारतीय जनता पार्टी (Bharatiya Janata Party) के पास है। इस सीट का सियासी गणित सवर्ण और ओबीसी के इर्द-गिर्द रहता है। इस विधानसभा सीट पर भाजपा की सपा से ज्यादा अपने नेताओं में लड़ाई जारी है। यह लड़ाई 2021 में हुए उपचुनाव में ही दिखाई पड़ गई थी। जब जन्मेजय सिंह की मृत्यु के बाद उनके सुपुत्र ने भाजपा के खिलाफ पर्चा भर चुनाव लड़ लिया था। लेकिन उसके बाद भी भारतीय जनता पार्टी (Bharatiya Janata Party) के टिकट पर सत्यप्रकाश मणि त्रिपाठी ने देवरिया में मजबूत ब्राह्मण नेता ब्रह्मा शंकर त्रिपाठी को भारी मतों से चुनाव में मात दी थी। उपचुनाव में चारों प्रमुख पार्टियां भाजपा, सपा, कांग्रेस और बसपा ने ब्राह्मण प्रत्याशी को यहां से टिकट दिया था। ऐसा इसलिए क्योंकि देवरिया सदर विधानसभा में जीत और हार का निर्धारण यहां के ब्राह्मण मतदाता करते हैं। यह भी एक आश्चर्यजनक तथ्य ही है कि ब्राह्मण बहुल्य इस सीट पर 32 साल बाद कोई ब्राह्मण नेता चुनाव जीता है।

पथरदेवा विधानसभा (Pathardeva Assembly)

वर्तमान सरकार में कृषि मंत्री और भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सूर्य प्रताप शाही (Former BJP state president Surya Pratap Shahi) यहां से विधायक हैं। 2002 से लगातार चुनाव हारते रहे सूर्य प्रताप शाही (Former BJP state president Surya Pratap Shahi) ने 2017 में यहां समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) के नेता और पूर्व मंत्री शाकिर अली को चुनाव हराया था। इस सीट पर मुस्लिम और ओबीसी मतदाता प्रभाव रखते हैं। सूत्रों की माने तो समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) सूर्य प्रताप शाही के पुराने विरोधी रहे ब्राह्मण नेता ब्रह्मा शंकर त्रिपाठी को यहां से चुनाव लड़ा सकती है। इस सीट पर यादव, मुस्लिम और ब्राम्हण गठजोड़ भाजपा के लिए लड़ाई कठिन बना देगा।

रामपुर कारखाना विधानसभा (Rampur Factory Assembly)

यह विधानसभा सीट 2012 के परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई है। 2012 के विधानसभा चुनाव में यहां से समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) के टिकट पर गजाला लारी ने चुनाव जीता था। गजाला लारी पूर्व में दो बार सलेमपुर विधानसभा सीट (Salempur assembly seat) से चुनाव जीत चुकी है। 2017 में भारतीय जनता पार्टी (Bharatiya Janata Party) के टिकट पर यहां से कमलेश शुक्ला ने गजाला लारी को चुनाव हराया था। इस सीट का जातीय समीकरण भी सवर्ण मतदाताओं के इर्द-गिर्द रहता है। इस सीट की एक और राजनीतिक पहचान यहां के निर्दल प्रत्याशी रहे हैं। 2012 के विधानसभा चुनाव में यहां से गिरिजेश उर्फ गुड्डू शाही ने 44000 से अधिक वोट निर्दल प्रत्याशी के रूप में पाया था। 2017 में भी गुड्डू शाही निर्दल प्रत्याशी के रूप में 41000 से अधिक वोट पा चुके हैं। इसलिए इस सीट पर इस बार के चुनाव में गुड्डू शाही पर भी नजर रहेगी।

रुद्रपुर विधानसभा (Rudrapur Assembly)

बाबा दूग्धेश्वरनाथ के लिए मशहूर रुद्रपुर (Rudrapur Assembly) राजनीतिक दृष्टिकोण से एक अनोखे रिकॉर्ड के लिए जानी जाती है। इस विधानसभा सीट से सन 1957 से आज तक कोई भी प्रत्याशी दो बार लगातार चुनाव नहीं जीत पाया है। 2017 में भारतीय जनता पार्टी (Bharatiya Janata Party) से जयप्रकाश निषाद (Jaiprakash Nishad) ने चुनाव जीता था और वर्तमान में योगी सरकार (Yogi Government) में मंत्री हैं। इस सीट पर निषाद आबादी का प्रभाव बताया जाता है। वर्ष 2012 में कांग्रेस पार्टी के कद्दावर नेता और प्रवक्ता अखिलेश प्रताप सिंह (Akhilesh Pratap Singh) ने चुनाव जीता था। 2017 में भी मुख्य मुकाबले में अखिलेश प्रताप सिंह ही भाजपा के लिए रहे थे। इस बार भी कांग्रेस के टिकट पर अखिलेश प्रताप मैदान में उतर चुके हैं और व्यक्तिगत जनाधार के आधार पर उनको वर्तमान परिस्थितियों में बढ़त बताई जा रही है। जयप्रकाश निषाद (Jaiprakash Nishad) के खिलाफ स्थानी नाराजगी को देखते हुए यह जरूर कहा जा रहा है कि भारतीय जनता पार्टी (Bharatiya Janata Party) उनका टिकट काट सकती है लेकिन बड़े मंत्री का टिकट कटने पर गलत संदेश जाने का डर भी पार्टी को सता रहा है। यह सीट भी सवर्ण बाहुल्य है। इस विधानसभा सीट से भाजपा के दिनेश त्रिपाठी भी दावा ठोक रहे हैं। इस सीट पर मुख्य लड़ाई समाजवादी पार्टी के टिकट घोषणा के बाद ही स्पष्ट हो पाएगी।

भाटपाररानी विधानसभा (Bhatparrani Assembly)

देवरिया जिले की बेहद पिछड़ा इलाका मानी जाने वाली इस विधानसभा सीट से समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) के आशुतोष उपाध्याय (Ashutosh Upadhyay) विधायक हैं। आज भी जिला मुख्यालय से साधन की कमी होना यहां का मुख्य मुद्दा है। यह सीट ओबीसी बाहुल्य है और कामेश्वर उपाध्याय परिवार की गढ़ मानी जाती है। इस सीट पर उपाध्याय परिवार ने 7 बार कब्जा किया है। उन्हीं के सुपुत्र 2017 की मोदी लहर में भी यहां से चुनाव जीत गए थे। इस सीट से भारतीय जनता पार्टी आज तक कभी नहीं जीती है। पिछली बार अश्वनी कुमार सिंह के निर्दल चुनाव लड़ जाने से भी भाजपा का खेल इस सीट पर बिगड़ गया था।

सलेमपुर विधानसभा (Salempur Assembly)

अपने राजनीतिक इतिहास में भारतीय जनता पार्टी (Bharatiya Janata Party) ने देवरिया में जो पहली सीट जीती थी वह सलेमपुर विधानसभा (Salempur Assembly) थी। सन 1980 में बीजेपी के दुर्गा प्रसाद मिश्र ने यहां से चुनाव जीता था। 2017 के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (Bharatiya Janata Party) के टिकट पर काली प्रसाद ने समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) की प्रत्याशी विजय लक्ष्मी गौतम को चुनाव हराया था। विधानसभा में आरक्षित इस सीट पर दलित मतदाता बहुमत में माने जाते हैं। यह सीट कभी कांग्रेस का मजबूत गढ़ रही है। यहां से सबसे अधिक पांच बार कांग्रेस के उम्मीदवार चुनाव जीत चुके हैं।

बरहज विधानसभा (Barhaj Assembly)

बरहज विधानसभा (Barhaj Assembly) व्यापारिक दृष्टिकोण से बहुत महत्वपूर्ण केंद्र है। बताया जाता है कि अंग्रेजों के समय में यहां के घाटों से बंगाल के ढाका तक व्यापार किया जाता था। यह विधानसभा सरयू नदी के किनारे बसती है। 2017 में यहां से भारतीय जनता पार्टी (Bharatiya Janata Party) के टिकट पर सुरेश तिवारी विधायक बने थे। 26 साल बाद इस सीट पर भारतीय जनता पार्टी (Bharatiya Janata Party) चुनाव जीती थी। इस विधानसभा सीट (Barhaj Assembly) पर यादव मतदाता महत्वपूर्ण भूमिका में नजर आते हैं लेकिन ब्राह्मण आबादी भी अपना प्रभुत्व रखती है। वर्तमान समय में स्थानीय विधायक के खिलाफ यहां स्पष्ट नाराजगी दिखाई पड़ती है। यही कारण है कि सुरेश तिवारी यहां से इस बार टिकट भी नहीं मांग रहे हैं। मुख्य दावेदारों में समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) से समाजवादी नेता स्वर्गीय मोहन सिंह (Samajwadi leader Late Mohan Singh) की बेटी कनकलता सिंह, पीडी तिवारी, विजय रावत, गेंदालाल यादव आदि नेता है। वहीं, भारतीय जनता पार्टी (Bharatiya Janata Party) से पिछली बार बसपा से चुनाव लड़े मुरली मनोहर जयसवाल, दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री नीरज शाही, दुर्गा प्रसाद मिश्र के परिवार से दीपक मिश्र आदि नेता दौड़ में शामिल है।

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