Up Election 2022: यूं ही साइकिल नहीं बना समाजवादी पार्टी का चुनाव चिन्ह, पढ़ें नेताजी की दिलचस्प कहानी  

Up Election 2022: क्या आप जानते हैं कि समाजवादी पार्टी का चुनाव चिह्न साइकिल कैसे तय हुआ ?

Written By :  aman
Published By :  Ragini Sinha
Update:2021-09-26 09:27 IST

Up Election 2022: यूं ही साइकिल नहीं बना समाजवादी पार्टी का चुनाव चिन्ह (social media)

Up Election 2022: समाजवादी पार्टी (सपा) बीते तीन दशकों से उत्तर प्रदेश की सत्ता का अहम किरदार रही है। सपा की स्थापना 4 अक्टूबर, 1992 को यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री और पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह यादव ने की थी। वर्तमान में इस पार्टी की पैठ बड़े पैमाने पर मुसलमान तथा कुछ पिछड़ी जातियों में विशेष तौर पर है। सपा के कर्ताधर्ता रहते हुए मुलायम सिंह यादव खुद तीन बार यूपी के मुख्यमंत्री रहे, जबकि एक बार उनके पुत्र अखिलेश यादव ने पूर्ण बहुत के साथ सरकार बनाने में सफलता पाई। 

लेकिन आज हम समाजवादी पार्टी और उससे जुड़ी कोई गंभीर बातें करने नहीं जा रहे। आज newstrack.com बता रहा है समाजवादी पार्टी के चुनाव चिह्न के बारे में। क्या आप जानते हैं कि समाजवादी पार्टी का चुनाव चिह्न साइकिल कैसे तय हुआ ? नहीं, तो आज हम आपको बताएंगे। इसके पीछे भी एक रोचक कहानी है.... 

 ..तब मुलायम सिंह साइकिल नहीं खरीद पाए 

दरअसल, यह बात है साल 1960 की। तब समाजवादी पार्टी का गठन भी नहीं हुआ था और न ही तब मुलायम सिंह यादव ने सोचा होगा कि आगे चलकर वो इस नाम से कोई पार्टी बनाएंगे। खैर, मुद्दे पर आते हैं। 60 के दशक में जब मुलायम सिंह यादव अपने गृह जिला इटावा में कॉलेज की पढ़ाई कर रहे थे, तब उन्हें हर रोज तक़रीबन 20 किलोमीटर का सफर तय करना होता था। मुलायम सिंह के घर की आर्थिक स्थिति बहुत मजबूत नहीं हुआ करती थी। हालात ऐसे नहीं थे कि वह कॉलेज जाने के लिए एक साइकिल खरीद पाएं। पैसों की किल्लत के चलते वह हर दिन मन मसोस कर रह जाते और कॉलेज जाने के लिए संघर्ष करते। एक फिल्म का मशहूर डायलॉग है, "अगर किसी चीज को पूरी शिद्द्त से चाहो, तो पूरी कायनात उसे तुमसे मिलाने में जुट जाती है।"मुलायम सिंह के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ, जब वो अपने बचपन के दोस्त के साथ उजयानी गांव पहुंचे।

शर्त में जीती साइकिल 

मुलायम सिंह की आत्मकथा पर आधारित फ्रैंक हुजूर की किताब 'द सोशलिस्ट' में इस वाकये को विस्तार से बताया गया है। किताब के मुताबिक, मुलायम अपने बचपन के साथी रामरूप के साथ किसी काम से एक दिन उजयानी गांव गए। तब दोपहर का वक्त था। गांव की चौपाल पर कुछ लोग बैठे ताश खेल रहे थे। मुलायम सिंह और उनके मित्र रामरूप भी ताश के खेल में शामिल हो लिए। वहीं, एक आलू कारोबारी लाला राम प्रकाश गुप्ता भी बैठे थे। वो भी ताश खेल रहे थे। खेल परवान चढ़ा और गुप्ता जी ने खेल में एक शर्त रख दी। शर्त यह थी कि जो भी जीतेगा उसे रॉबिनहुड साइकिल दी जाएगी। 

...तब से हैं साइकिल पर सवार 

'द सोशलिस्ट' में बताया गया है कि मुलायम सिंह के लिए तब गुप्ता की शर्त उनके सपना पूरा करने का माध्यम बना। मुलायम सिंह जोर लगाई और बाजी जीत ली। इसी के साथ रॉबिनहुड साइकिल भी उनकी हुई। कहते हैं कि मुलायम सिंह तब से साइकिल पर ऐसे सवार हुए कि आज तक उसकी सवारी कर रहे हैं। राजनीतिक घटनाक्रम के बाद जब 4 अक्टूबर, 1992 को मुलायम सिंह ने समाजवादी पार्टी की स्थापना की, तो साइकिल को उन्होंने पार्टी का चुनाव चिन्ह घोषित किया। 

नेताजी का साइकिल के लिए शिद्दत आज भी  

बात 2016 के आखिरी महीने की है जब समाजवादी पार्टी में अंतर्कलह चरम पर थी। तब अखिलेश यादव गुट ने साइकिल चुनाव चिन्ह पर अपना दावा ठोका था। लेकिन ये मुलायम सिंह यादव की उस साइकिल से प्रेम या सालों की शिद्द्त कहिए जो उन्हें चुनाव आयोग के दरवाजे तक खींच लाया। हालांकि, बुजुर्ग नेताजी का स्वास्थ्य साथ नहीं दे रहा था, मगर 'साइकिल' के लिए वो एक बार फिर खड़े हुए और आज भी उनकी पार्टी उसी चुनाव चिन्ह के साथ एक बार फिर 2022 उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए मैदान में उतरने को तैयार है।

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