Narendra Giri Death Case: नरेंद्र गिरि हत्या या आत्महत्या , जाँच में हैं कई पेंच
Narendra Giri Death Case : महंत नरेंद्र गिरी की हत्या को लेकर कई तरह के पेंच सामने आ रहे हैं। इनकी मौत की कहानी में बहुत मोड़ हैं।
Narendra Giri Death Case : हत्या या आत्महत्या । इसके बीच झूलती नरेंद्र गिरि (Narendra Giri) के मृत्यु की कहानी में बहुत मोड़ हैं। जिसमें सियासत भी है। मर्डर भी हैं। जातीय वर्चस्व की पेचीदगी भी। तीनों डब्ल्यू के रिश्ते इस कहानी के किसी न किसी किरदार से जुड़ते ज़रूर हैं। नरेंद्र गिरि को क़रीब से जानने वाले दावा करते हैं कि वह लिखत पढ़त में न तो इतने दक्ष थे कि आठ पेज का सुसाइड नोट लिखते और न ही इतने कायर कि आत्महत्या करते। उनके राजनीतिक रसूख़ को उसी से समझा जा सकता है कि पहली बार कहीं मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ (Yogi Aditya Nath) व पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) एक साथ दिखे हैं।
अखिलेश यादव की सरकार के दौरान जब कुंभ हुआ था तो आज का प्रयागराज अखिलेश यादव व नरेंद्र गिरि के एक साथ फ़ोटो वाले पोस्टरों से फटा पड़ा था। योगी आदित्य नाथ के कार्यकाल में जो कुंभ हुआ उसके बारे में योगी ने नरेंद्र गिरि को श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि इनके सहयोग के बिना कुंभ को वैश्विक आकार नहीं मिलता।
इनके निधन को लेकर अटकलों का बाज़ार गर्म है। उसकी सच्चाई तक पहुँचने के लिए कोई सीबीआई जाँच की माँग कर रहा है। कोई कह रहा है कि हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश से जाँच कराई जाये। सरकार ने भारी भरकम एसआईटी टीम गठित कर दी है। पर इसमें भी पुलिसिया खेल जारी है। नरेंद्र गिरि के सुसाइड नोट में तीन लोगों के नाम हैं। पर प्राथमिकी केवल एक ही आदमी के नाम है।
नरेंद्र गिरि जी; आशीष गौतम जी, चिन्मययानंद जी व कैलाशानंद जी के बेहद क़रीब रहे। ये लोग नरेंद्र गिरि के सुख दुख के साथी रहे। शायद इनसे कुछ क्लू हाथ लग सकें।
इस पूरी कहानी में इतने पेंच हैं कि कोई न कोई पेंच किसी न किसी रसूखदार तक जाकर खुलेगा ही। सपा व भाजपा के नेता व खुद पुलिस की संलिप्तता इस कदर है कि इस तरह के केसों के अनसुलझे रह जाने की रवायत है। यदि एसआईटी इस केस को खोलने में कामयाब होती है तो यह भी एक नई कहानी होगी।.
बहरहाल, निरंजनी अखाड़े के महंत और अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष नरेंद्र गिरि की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत के बाद मामला लगातार उलझता ही जा रहा है। पुलिस ने महंत को आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में उनके शिष्य आनंद गिरि, प्रयागराज स्थित लेटे हुए हनुमान मंदिर के पुजारी आद्या तिवारी और उनके बेटे संदीप तिवारी को गिरफ्तार कर लिया है। इन तीनों को नरेन्द्र गिरि के कमरे से बरामद एक कथित सुसाइड नोट में लिखी बातों के आधार पर हिरासत में लिया गया है।
वैसे तो नरेन्द्र गिरि का शव उनके कमरे में लटकता मिला था। कमरे में ही एक सुसाइड नोट बरामद किया गया । जिसके बाद ये कयास लगाये गए कि महंत ने आत्महत्या की है । लेकिन तेजी से बदलते घटनाक्रम में अब हत्या की आशंका भी प्रकट की जा रही है। बहरहाल, मामले की जांच अब स्पेशल इन्वेस्टीगेशन टीम यानी एसआईटी से कराने की घोषणा की गयी है । लेकिन सीबीआई जांच की भी बात चल रही है।
कई नाम सामने आये
नरेन्द्र गिरि की मौत के बाद न सिर्फ उनके मठ-मंदिर के लोगों बल्कि पुलिसवालों, नेताओं और बिल्डर के नाम भी सामने आ रहे हैं , जिनका कोई न कोई रिश्ता महंत की मौत से है। महंत की मौत से जो लोग संदेह के घेरे में हैं उनमें नरेन्द्र गिरि का करीबी शिष्य आनंद गिरि (Anand Giri latest news), मंदिर का पुजारी आद्या तिवारी और उसका पुत्र संदीप तिवारी, मुरादाबाद में तैनात एएसपी ओपी पाण्डेय, सपा नेता इन्दुप्रकाश मिश्र और भाजपा नेता सुशील मिश्रा शामिल हैं। आनंद गिरि ने तो इसे हत्या करार देते हुए इसके पीछे सिपाही अजय सिंह (गनर) के अलावा बिल्डर मनीष शुक्ल, विवेक और अभिषेक मिश्र पर आरोप लगाया है।
सम्भावित कारण
नरेन्द्र गिरि की रहस्यमय मौत के पीछे जो संभावित कारण हैं उनमें बाघम्बरी मठ पर नियंत्रण, मठ की अरबों की संपत्तियों का लेनदेन, एक आपत्तिजनक सीडी और नरेन्द्र गिरि का उत्तराधिकार शामिल है। बताया जाता है की नरेन्द्र गिरि को ब्लैकमेल करने के लिए किसी सीडी का इस्तेमाल किया जा रहा था।
जांच का दायरा
महंत नरेंद्र गिरि की मौत मामले में सबसे पहले तो प्रयागराज पुलिस ने शुरूआती जांच की है। अब एसआईटी जांच की घोषणा हुई है जबकि सीबीआई जाँच की मांग करते हुए किसी व्यक्ति ने इलाहबाद हाई कोर्ट में अर्जी लगाई है। यूपी सरकार ने भी कहा है कि अगर संत समाज कहेगा तो सीबीआई को जाँच सौंप दी जायेगी। बहरहाल, बताया जा रहा है कि 8 लोगों का लाई डिटेक्टर टेस्ट किया जा सकता है जिसमें एक बिल्डर भी शामिल है।
जहर, रस्सी, मोबाइल विडियो और चिट्ठी
नरेन्द्र गिरि की मौत से जहर, रस्सी, मोबाइल से शूट किया गया विडियो और एक चिट्ठी का भी रिश्ता है। बताया जाता है की महंत नरेंद्र गिरि ने कुछ दिनों पहले सल्फास मंगवाया था। फिर मौत के एक दिन पहले उन्होंने एक रस्सी मंगवा कर अपने कमरे में रखवाई थी। इसके अलावा, पुलिस का कहना है कि, नरेंद्र गिरि ने मौत से ठीक पहले 4 मिनट का वीडियो बनाया था। उनके मोबाइल को फोरेंसिक जांच के लिए भेजा गया है। पुलिस ने महंत के कमरे से आठ पेज का एक सुसाइड नोट बरामद किया है। पुलिस के मुताबिक नरेंद्र गिरि ने सुसाइड नोट में आत्महत्या की बात लिखी है और वसीयतनामा भी लिखा है। सुसाइड नोट में उनके शिष्य आनंद गिरि, पुजारी आद्या तिवारी और उसके बेटे संदीप तिवारी का भी जिक्र है। लोगों का कहना है कि नरेन्द्र गिरि ज्यादा पढ़ लिख नहीं पाते थे, ऐसे में 8 पन्नों के सुसाइड नोट पर सवाल खड़े हो रहे हैं। अखिल भारतीय संत समिति और गंगा महासभा के महासचिव जीतेंद्रानंद सरस्वती का कहना है कि वह इतना बड़ा सुसाइड नोट लिख ही नहीं सकते।
क्राइम सीन से छेड़छाड़
पुलिस ने नरेन्द्र गिरि का मोबाइल, कथित सुसाइड नोट, रस्सी और मोबाइल फोन जब्त किये हैं। लेकिन एक सवाल क्राइम सीन से छेड़छाड़ का भी है। महंत के शिष्यों ने पुलिस के आने से पहले ही दरवाजा तोड़ कर उनके कमरे में प्रवेश किया था और फंदे से लटकते शव को उतार लिया था। पुलिस के आने से पहले नरेन्द्र गिरि के कमरे में बहुत से लोग जमा हो चुके थे और इस दौरान सुसाइड नोट और कमरे में मौजूद अन्य चीजों को भी हाथ लगाया गया। ऐसे में फरेंसिक जांच भी सवालों के घेरे में रहेगी। मौके पर तरह तरह के फिंगर प्रिंट्स मिले होंगे। पुलिस के आने से पहले कौन सी चीज हटाई गयी और क्या बाहर से लाकर रख दिया गया, कुछ कहा नहीं जा सकता।
कौन है एएसपी ओपी पाण्डेय
ओपी पाण्डेय पुलिस महकमे में एडिशनल एसपी हैं और मुरादाबाद में तैनात हैं। वे नरेन्द्र गिरि और आनंद गिरी, दोनों के बेहद करीबियों में गिने जाते रहे हैं। इनका मठ में बहुत आना-जाना रहा है।
सुशील मिश्रा
यह भाजपा का एक नेता है जो पहले बहुजन समाज पार्टी में था। 2016 में सुशील मिश्रा ने भाजपा ज्वाइन की थी। सुशील मिश्रा ने नरेन्द्र गिरि और आनंद गिरि में समझौता करवाया था। अपनी सफाई में सुशील मिश्रा ने कहा है कि नरेंद्र गिरि ने मुझसे कहा था कि आनंद गिरि मीडिया में मेरे बारे में उल्टी सीधी बात कर रहे हैं, उसके बाद हम लोगों ने मध्यस्थता करवाने के लिए आनंद गिरि और महराज की मुलाकात करवाई थी। हम लोग आनंद गिरि को पहले नहीं जानते थे।
इंदु प्रकाश मिश्र
इंदु प्रकाश मिश्रा हाई कोर्ट के वकील हैं। सुल्तानपुर के रहने वाले हैं। प्रयागराज में ये गोविंदपुर में रहते हैं। इंदु प्रकाश समाजवादी पार्टी के नेता भी हैं। अखिलेश यादव के शासनकाल में इनको मनोरंजन कर विभाग का सलाहकार बना कर राज्यमंत्री का दर्जा दिया गया था। 2014 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी की करारी हार के बाद जिन लोगों से मंत्री का दर्जा छीन लिया गया था उनमें इन्दु प्रकाश भी शामिल थे। वे अक्सर बाघंबरी मठ में नरेंद्र गिरि से मिलने आते थे।कहा तो यहाँ तक जाता है कि भाजपा के कई उच्च पदस्थ लोगों से भी उनके करीबी रिश्ते हैं।
क्या कहा मुख्यमंत्री ने
यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने कहा - अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि जी महाराज के निधन से बहुत दुखी हैं। हम सब इससे व्यथित हैं। संत समाज और यूपी सरकार की ओर से उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए स्वयं उपस्थि हुआ हूं। साल 2019 में कुंभ के आयोजन में नरेंद्र गिरि जी का पूरा सहयोग मिला था। यह धार्मिक और अध्यात्मिक समाज की अपूरणीय क्षति है। एक-एक घटना का पर्दाफाश किया जाएगा।जो भी दोषी होगा उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई होगी।
अखिलेश यादव ने जताया दुख
समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने ट्वीट कर कहा - अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष पूज्य नरेंद्र गिरि जी का निधन, अपूरणीय क्षति! ईश्वर पुण्य आत्मा को अपने श्री चरणों में स्थान व उनके अनुयायियों को यह दुख सहने की शक्ति प्रदान करें। भावभीनी श्रद्धांजलि।
नरेन्द्र गिरि का इतिहास (Narendra Giri History)
नरेंद्र गिरि प्रयागराज में ही गंगापार इलाके में सराय ममरेज के छतौना गांव के मूल निवासी थे। उनका असली नाम नरेंद्र सिंह था। उनके पिता भानु प्रताप सिंह राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सदस्य रहे हैं। नरेंद्र ने स्थानीय बाबू सरजू प्रसाद सिंह इंटर कालेज से हाई स्कूल की पढ़ाई की थी। महंत नरेंद्र गिरि चार भाइयों में दूसरे नंबर पर थे। बाकी तीन भाई अशोक कुमार सिंह, अरविंद कुमार सिंह और आनंद सिंह हैं। उनके दो भाई शिक्षक हैं । जबकि तीसरा भाई होमगार्ड विभाग में हैं। उनकी दो बहन प्रतापगढ़ में ब्याही हैं। संन्यासी जीवन में आने के बाद से नरेन्द्र गिरि का गांव में आना जाना तो नहीं रहा । लेकिन इलाके में होने वाले प्रमुख कार्य़क्रम में वह शिरकत करने जाते थे। प्रतापपुर के स्कूल में हुए शैक्षिक आयोजन में वह 2006 और 2010 में बतौर मुख्य अतिथि शरीक हुए थे।
नरेंद्र गिरि का बीस वर्ष की उम्र में एक साधु के तौर पर पंचायती अखाड़ा श्री निरंजनी से नाता जुड़ा था। वह हरिद्वार के कुंभ मेले में ही पहली बार महात्मा और फिर अखाड़े की परंपरा के अनुसार नागा संन्यासी बने। इसके बाद वह बतौर सेवादार राजस्थान के खीरम स्थित अखाड़े के आश्रम में रहे। वर्ष 1998 में हरिद्वार में ही वह अखाड़े के अष्टकौशल में कारबारी यानी उप महंत के रूप चुने गए। फिर वर्ष 2001 में वह अष्टकौशल के श्रीमहंत बने। मठ बाघंबरी गद्दी के महंत भगवान गिरि के नहीं रहने पर उन्हें उनका उत्तराधिकारी घोषित करते हुए वर्ष 2004 में मठ का महंत बनाया गया। 2015 में उज्जैन कुंभ के दौरान अखाड़े की ओर से पहले उन्हें सचिव बनाया गया और फिर उज्जैन कुंभ में ही वह अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष बने। महंत नरेंद्र गिरि 2004 में मुलायम सिंह के मुख्यमंत्री बनने के बाद धीरे-धीरे प्रभावशाली होने लगे थे। उनके मुलायम सिंह से करीबी सम्बन्ध थे।
किसी को मकान तो किसी को दूकान दिलवाने के आरोप
नरेंद्र गिरि अपने करीबी सेवादारों के अलावा एक अंगरक्षक के नाम जमीन और मकान खरीदवाने के मामले को लेकर भी सुर्खियों में रहे हैं। मठ और अखाड़े से निष्कासन के बाद उनके शिष्य आनंद गिरि ने सीएम योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखकर उन पर ऐसे कई गंभीर आरोप लगाए थे और जांच के लिए आवाज उठाई थी। सीएम को तब उन्होंने जो पत्र भेजा था, उसमें सिपाही अजय सिंह के नाम का उल्लेख चर्चा में रहा है। इसमें सिपाही के नाम पर कहीं बेनामी संपत्ति खरीदने की भी शिकायत का जिक्र किया गया था। इसके अलावा विपिन सिंह नामक ड्राइवर को बड़ा मकान बनाकर दिलवाने, रामकृष्ण पांडेय नामक विद्यार्थी को बड़ा मकान और बड़े हनुमान मंदिर में दुकान दिलवाने के अलावा विवेक मिश्रा नामक विद्यार्थी के नाम जमीन खरीदने के साथ ही उसका मकान बनवाने, मठ में रहने वाले विद्यार्थी मनीष शुक्ला को करोड़ों रुपये का मकान बनवाकर देने, आनंद गिरि के नाम की फार्च्यूनर गाड़ी भी उसके नाम करवाने के आरोप रहे हैं। इसके अलावा मठ में रह रहे अभिषेक मिश्रा और मिथिलेश पांडेय को भी मकान बनवाकर देने का मामला भी विवाद का हिस्सा रहा है। इसके अलावा आनंद गिरि ने आदित्य नाथ मिश्रा नामक व्यक्ति से महंत के विवाद को लेकर भी शिकायत की थी।
महंत से जुड़े विवाद (Narendra Giri Vivad)
शिष्य आनंद गिरि का निष्कासन (Anand Giri latest news)
महंत नरेंद्र गिरि और उनके सबसे खास शिष्य आनंद गिरि के बीच हरिद्वार कुंभ से दूरियां बढ़ गईं थीं। स्वामी आनंद गिरि पर परिवार से संबंध रखने और मठ-मंदिर के धन के दुरुपयोग का आरोप लगाते हुए नरेंद्र गिरि ने उनके बाघम्बरी गद्दी मठ और बड़े हनुमान मंदिर में प्रवेश पर रोक लगा दी थी। इसके बाद कई दिनों तक दोनों तरफ से आरोप-प्रत्यारोप लगते रहे। आखिरकार 26 मई को लखनऊ में आनंद गिरि ने गुरु का पैर पकड़कर माफी मांग ली थी।
आशीष गिरि की आत्महत्या (Ashish Giri Atmhatya)
पंचायती अखाड़ा श्री निरंजनी के सचिव महंत आशीष गिरि की 17 नवंबर, 2019 को संदिग्ध स्थिति में मौत पर भी सवाल उठे थे। मूल रूप से पिथौरागढ़ के रहने वाले आशीष गिरि दारागंज स्थित पंचायती अखाड़ा श्री निरंजनी के आश्रम में रहते थे। मौत के बाद कुछ लोगों ने महंत नरेंद्र गिरि पर भी सवाल उठाए थे। हालांकि बाद में पुलिस जांच में कुछ नहीं निकला।
सपा विधायक से विवाद
नरेंद्र गिरि का विवाद 2012 में सपा नेता और हंडिया से विधायक रहे महेश नारायण सिंह से जमीन की खरीद फरोख्त को लेकर भी हुआ था। फरवरी 2012 में महंत ने सपा नेता महेश नारायण सिंह, शैलेंद्र सिंह, हरिनारायण सिंह व 50 अज्ञात के खिलाफ जार्ज टाउन में मुकदमा दर्ज कराया था। दूसरे पक्ष ने भी नरेंद्र गिरि, आनंद गिरि व दो अन्य के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराई थी।
बार बालायें और मंदिर के रुपये
आनंद गिरि ने मई में दो वीडियो जारी कर मंदिर के रुपयों के दुरुपयोग के आरोप लगाए थे। एक वीडियो में बार-बालाएं थिरक रही थीं और उनके साथ बड़े हनुमान मंदिर व मठ से जुड़े लोग डांस कर रहे थे। बार-बालाओं पर नोटों की बारिश भी की जा रही थी। दूसरे वीडियो में मंत्रोच्चार के बीच नोटों की बारिश हो रही थी। इसमें महंत नरेंद्र गिरि दूल्हा-दुल्हन को आशीर्वाद दे रहे थे।
बीयर बार संचालक बना महामंडलेश्वर
नोएडा में दिल्ली-एनसीआर के सबसे बड़े डिस्को के साथ ही साथ बीयर बार के संचालक सचिन दत्ता उर्फ सच्चिदानंद गिरि को 31 जुलाई , 2015 को महामंडलेश्वर बनाने के विवाद में भी नरेंद्र गिरि का नाम आया था। बाघंबरी गद्दी में तत्कालीन कैबिनेट मंत्री शिवपाल यादव और पर्यटन मंत्री ओमप्रकाश सिंह की मौजूदगी में नरेंद्र गिरि ने सचिन का पट्टाभिषेक कर निरंजनी अखाड़े का महामंडलेश्वर बनाया था।
गनर की संपत्ति
महंत स्वामी नरेंद्र गिरि के गनर रह चुके सिपाही अजय सिंह के ऊपर आय से अधिक संपत्ति के आरोप लगे थे। इस सिपाही के रहन-सहन और ठाठ-बाट पर सवाल खड़ा करते हुए लखनऊ की आरटीआई एक्टिविस्ट डॉ. नूतन ठाकुर ने डीजीपी समेत अन्य अधिकारियों को पत्र भेजकर जांच कराने की मांग की थी। इस सिपाही पर 61 लाख की कीमत का फ्लैट पत्नी के नाम खरीदने का दावा किया गया था।
योगी सत्यम के खिलाफ एफआईआर
नरेंद्र गिरि ने 8 अगस्त, 2018 को क्रियायोग आश्रम के योगी सत्यम के खिलाफ धमकी देने के मामले में दारागंज थाने में मुकदमा दर्ज कराया था। अखाड़ा परिषद ने योगी सत्यम को फर्जी संतों की सूची में डाल दिया था। जिस वजह से विवाद बढ़ता चला गया। इन्हीं योगी सत्यम ने प्रयागराज में तैनात एक बड़े पुलिस अफसर और महंत नरेंद्र गिरि के बीच बड़े पैमाने पर वित्तीय लेनदेन को लेकर सवाल खड़ा किया है। स्वामी योगी सत्यम का मानना है कि अगर किसी हाईकोर्ट के पूर्व जज से न्यायिक जांच कराई जाए इससे दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा।
डीआईजी से विवाद (DIG Vivad)
2004 में मठ बाघंबरी गद्दी के महंत बनने के बाद नरेंद्र गिरि का सबसे पहला विवाद तत्कालीन डीआईजी आरएन सिंह से हुआ था। आरएन सिंह से जमीन बेचने को लेकर कुछ विवाद हुआ, जिसके बाद डीआईजी ने मंदिर के सामने कई दिनों तक धरना दिया। तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने आरएन सिंह को सस्पेंड कर दिया तब कहीं जाकर मामला शांत हुआ।
माउंट आबू से संगम आये थे
एक रिपोर्ट के मुताबिक नरेंद्र गिरी के परिवार से परिचित एक शख्स विकास त्रिपाठी का कहना है कि नरेंद्र गिरी 2000 में पहली बार कुंभ मेले के समय साधु के रूप में संगम नगरी पहुंचे थे। उसके पहले वह माउंट आबू में निरंजनी अखाड़े के मंदिर के प्रमुख हुआ करते थे। विकास के अनुसार नरेंद्र गिरी अपने बचपन की कहानी बताते हुए कहते थे कि वह प्रयागराज में ही पैदा हुए थे। लेकिन 7-8 साल की उम्र में उन्होंने घर-बार छोड़ दिया था और साधु बन गए थे। नरेंद्र गिरी की जो थोड़ी बहुत पढ़ाई हुई थी, वह साधु बनने के बाद ही हुई थी। आनंद गिरी का पालन-पोषण बचपन से नरेंद्र गिरी ने किया था। नरेंद्र गिरी ने माउंट आबू में आनंद गिरी की पढ़ाई-लिखाई कराई और बाद में प्रयागराज बुला लिया।
नेताओं से सम्बन्ध
विकास के अनुसार नरेंद्र गिरी के राजनीतिक नेताओं और सरकारी कर्मचारियों से गहरे संबंध थे। उनके मुलायम सिंह यादव के परिवार से बेहद घनिष्ठ संबंध थे। उसमें भी शिवपाल सिंह यादव तो अक्सर उनसे मिला करते थे। इसके अलावा उत्तर प्रदेश के मौजूदा उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य से भी उनके अच्छे संबंध रहे हैं। इसके बावजूद उन्होंने राजनीति से दूरी रखी। कभी किसी चुनाव में किसी दल या नेता का सार्वजनिक तौर पर समर्थन करने का ऐलान नहीं किया।
बाघम्बरी मठ और अकबर
बाघम्बरी मठ की स्थापना अकबर की हुकूमत के समय में बाबा बालकेसर गिरि महाराज ने की थी। अकबर ने बाघम्बरी मठ के साथ प्रयागराज जिले में अन्य स्थानों पर भी जमीन दान थी। बाबा बाल केसर गिरि महाराज के बाद अनेक संत इस गद्दी पर विराजमान हुए। वर्ष 1978 में विचारानंद गिरि महाराज इस गद्दी के महंत थे। रेल यात्रा के दौरान दिल का दौरा पड़ने से वह ब्रह्मलीन हो गए थे। उनसे पूर्व पुरुषोत्तमानंद इस गद्दी पर विराजमान थे। स्वामी विचारानंद महाराज की मृत्यु के बाद श्रीमहंत बलदेव गिरि महाराज इस गद्दी पर विराजमान हुए। 2004 में अखाड़े के संतों ने स्वामी बलदेव गिरि महाराज पर गद्दी छोड़ने का दवाब बनाया। बलदेव गिरि महाराज फक्कड़ संत थे। उन्होंने बिना किसी विरोध के गद्दी छोड़ दी। इसके बाद भगवान गिरि को महंत बनाया गया। गले में कैंसर का रोग हो जाने से दो वर्ष बाद उनकी भी मृत्यु को गई। भगवान गिरि महाराज की मृत्यु के बाद श्रीमहंत नरेन्द्र गिरि ने अपना दावा पेश किया। और 2006 में नरेन्द्र गिरि महंत बन गए। उस समय नरेन्द्र गिरि के गुरु के गुरु भाई मुलतानी मढ़ी के बालकिशन पुरी ने नरेन्द्र गिरि को गद्दी का महंत बनाए जाने का विरोध किया था। कहा जाता है कि इस पर नरेन्द्र गिरि ने उनके साथ अभद्रता की। अपमान होने के बाद वे अपना सामान उठाकर तत्काल खिरम (राजस्थान) चले गए। नरेन्द्र गिरि के महंत बनने के बाद बाघम्बरी मठ की हजारों वर्ष पुरानी जमीनों को खुदबुर्द करने का सिलसिला शुरू हो गया। श्री पंचायती अखाड़ा निरंजनी के पूर्व आम मुख्यतयार स्वामी मदन मोहन गिरि महाराज का कहना है कि नरेन्द्र गिरि वास्तव में नरेन्द्र पुरी हैं। स्वामी मदन मोहन के अनुसार, नरेन्द्र गिरि ने बाघम्बरी गद्दी की सम्पत्ति को बेचकर अपने परिवार वालों को दे दी। उन्होंने कहाकि नरेन्द्र गिरि वैश्य ठाकुर हैं।
नरेन्द्र गिरि की ख़ास बातें
- अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष थे।
- राम मंदिर आंदोलन से जुड़े हुए थे।
- संगम तट पर लेटे हनुमान मंदिर के भी महंत थे।
- बाघंबरी गद्दी की 300 साल पुरानी वसीयत को संभाल रहे थे।
- शिष्य आनंद गिरि के बीच पिछले दिनों विवाद सुर्खियों में रहा था।
- अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के नाम से बने फर्जी अकाउंट से कई विवादित ट्विट होने पर अज्ञात लोगों के खिलाफ मुकदमा पंजीकृत कराया था।
कौन कौन है एसआईटी टीम में
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