स्मारक घोटाला: 3 दर्जन से अधिक लोगों के खिलाफ बड़ा एक्शन, दर्ज होने जा रही है चार्जशीट
Smarak Ghotala: स्मारक घोटाले की जांच में 3 दर्जन से अधिक आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल होने जा रही है।
Smarak Ghotala: उत्तर प्रदेश में मायावती सरकार के कार्यकाल के दौरान हुए स्मारक घोटाले की जांच में 3 दर्जन से अधिक आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल होने जा रही है। सतर्कता अधिष्ठान जल्द ही इन तीन दर्जन से अधिक लोगों के खिलाफ अपनी चार से दाखिल कर देगा। इन आरोपियों में कई बड़े अधिकारी और राजनेता शामिल बताए जा रहे हैं।
आपको बता दें कि मायावती सरकार में हुए स्मारक घोटाले की जांच विजिलेंस के द्वारा कराई जा रही है। विजिलेंस के एक अधिकारी ने बताया था कि पहले चरण में 12 आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की जा चुकी है, जिसमें स्मारक घोटाले से जुड़े कई बड़े इंजीनियर शामिल थे।
विजिलेंस के अधिकारी ने यह भी बताया कि रिपोर्ट में दर्ज इंजीनियरों के अलावा इनको संरक्षण देने वाले ठेकेदार और कई बड़े अधिकारियों की भूमिका सामने आने लगी है। ऐसे सबूत भी मिले हैं कि पत्थरों के अलावा स्मारक में लगाई गई कई सामग्रियों को बाजार भाव से अधिक कीमत पर खरीद कर स्मारक में लगाने का काम किया गया है और यह पूरा गोलमाल एक बनाकर सिंडिकेट किया गया है। इस सिंडिकेट के खुलासे के बाद कई अफसरों और राजनेताओं पर शिकंजा कसने जा रहा है।
चार्जशीट दाखिल करने की योजना पर काम
अधिकारी से मिली जानकारी के अनुसार अगले चरण में करीब 30 से 40 आरोपियों के खिलाफ अदालत में चार्जशीट दाखिल करने की योजना पर काम किया जा रहा है। सभी के खिलाफ पर्याप्त सबूत मिल गए हैं।
वहीं यह बात भी निकल कर सामने आई है कि तत्कालीन खनन मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा से भी पूछताछ करके उनके खिलाफ आरोप तय किए जाएंगे। कुछ ऐसे अधिकारी भी उसमें शामिल हैं जो उस समय बाबू सिंह कुशवाहा के काफी करीबी बताए जाते रहे हैं।
यह है पूरा घटनाक्रम
मायावती ने साल 2007 से 2012 तक के अपने कार्यकाल में लखनऊ-नोएडा में अम्बेडकर स्मारक परिवर्तन स्थल, मान्यवर कांशीराम स्मारक स्थल के साथ साथ गौतमबुद्ध उपवन, ईको पार्क, नोएडा का अम्बेडकर पार्क, रमाबाई अम्बेडकर मैदान और स्मृति उपवन समेत पत्थरों के कई स्मारक तैयार कराया था।
इन स्मारकों को बनाने में सरकारी खजाने से 41 अरब 48 करोड़ रुपये खर्च किए गए थे, जिसके बाद आरोप लगा था कि इन स्मारकों के निर्माण में बड़े पैमाने पर घोटाला कर सरकारी धन की हेराफेरी की गयी है।
प्रदेश में सत्ता परिवर्तन के बाद इस मामले की जांच यूपी के तत्कालीन उपायुक्त एनके मेहरोत्रा को सौंपी गई थी, जिसमें लोकायुक्त ने 20 मई 2013 को सौंपी गई अपनी रिपोर्ट में 14 अरब, 10 करोड़, 83 लाख, 43 हजार का घोटाला होने की बात बतायी थी।
लोकायुक्त की रिपोर्ट में कहा गया था स्मारक घोटाले के अंदर सबसे अधिक हेराफेरी पत्थरों को ढोने और उन्हें तराशने के नाम पर की गयी है। जांच में यह भी पता चला कि पत्थरों को ढोने के नाम पर दिए गए कई ट्रकों के नंबर फर्जी थे और उस नंबर पर दो पहिया वाहन दर्ज थे।
बड़े अफसरों के नाम शामिल
लोकायुक्त ने अपनी जांच पूरी करने के बाद मामले में 14 अरब 10 करोड़ रूपये से ज़्यादा की सरकारी रकम के घोटाले की बात कहते हुए मामले की जांच सीबीआई या एसआईटी से कराए जाने की सिफारिश कर दी थी।
आपको याद होगा कि लोकायुक्त की जांच रिपोर्ट में कुल 199 लोगों को आरोपी बताया गया था। इनमें मायावती सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे नसीमुद्दीन सिद्दीकी और बाबू सिंह कुशवाहा समेत कई सत्ताधारी दल के विधायक और तमाम विभागों के बड़े अफसरों के नामों का भी जिक्र किया गया था।
राज्य में समाजवादी पार्टी की सरकार बनने के बाद अखिलेश यादव ने मामले में लोकायुक्त द्वारा इस मामले में सीबीआई या एसआईटी जांच कराए जाने की सिफारिश को नजरअंदाज करते हुए जांच सूबे के विजिलेंस डिपार्टमेंट को सौंपते हुए कार्रवाई करने की बात कही थी।
इस आदेश के बाद विजिलेंस ने एक जनवरी साल 2014 को गोमती नगर थाने में नसीमुद्दीन सिद्दीकी और बाबू सिंह कुशवाहा समेत 19 नामजद व अन्य अज्ञात के खिलाफ FIR दर्ज कराने के बाद अपनी कार्रवाई शुरू कर दी। थाने में दर्ज क्राइम नंबर 1/2014 पर दर्ज हुई FIR में आईपीसी की धारा 120 B और 409 के तहत मामला दर्ज करके जांच जारी है।