UP Election 2022: हर दल की सरकार में ब्राह्मणों को मिली भागीदारी, किसी में कम, किसी में ज्यादा, जानें यहां

UP Election 2022: मोदी युग की शुरुआत के बाद जातिवादी राजनीति पर कुछ अंकुश लगा पर इस बार के विधानसभा चुनाव में जातिवादी राजनीति पुनर्जीवित होती दिख रही है। इसलिए शुरुआत कानपुर के बिकरू कांड से हुई।

Written By :  Shreedhar Agnihotri
Published By :  Deepak Kumar
Update: 2022-01-24 16:07 GMT

हर दल की सरकार में ब्राह्मणों को मिली भागीदारी। 

UP Election 2022 News: कई सालों बाद यूपी की राजनीति में जातिवादी राजनीति का जिन्न फिर चुनाव मैदान में है। हर दल क्षेत्र और जाति के आधार पर टिकट वितरण करने के बाद उस वोट बैंक को अपने पाले में करने की जुगत में है। इन सबके बीच राजनीतिक दल 2007 की तर्ज पर इस ब्राह्मण वोट बैंक को अपनी तरफ करने की जुगत में है। इसके लिए वह तरह तरह के दावे कर रहे हैं।

उल्लेखनीय है कि 2007 में में बसपा सुप्रीमो मायावती (BSP supremo Mayawati) ने ब्राह्मण राजनीति की नई इबारत लिखी जिसके बाद यह ट्रेंड चल पड़ा। पर मोदी युग की शुरुआत के बाद जातिवादी राजनीति पर कुछ अंकुश लगा पर इस बार के विधानसभा चुनाव में जातिवादी राजनीति पुनर्जीवित होती दिख रही है। इसलिए शुरुआत कानपुर के बिकरू कांड (Kanpur Bikru scandal) से हुई। उसके बाद से सत्ताधारी भाजपा समेत विपक्षी दल सपा बसपा और कांग्रेस खुद को बडा हितैषी साबित करने के प्रयास में है। इसके लिए ब्राह्मण सम्मेलनों का भी आयोजन किया जा चुका है। कई जगहों पर परशुराम की मूर्तिया लगाने के भी वादे हो चुके हेै। समाजवादी पार्टी तो यह काम कर भी चुकी है पर सवाल इस बात का है कि राजनीतिक दलों ने अपनी सरकारों में ब्राम्हणों को कितना प्रतिनिधित्व दिया है ? राजनीतिक गलियारों में इस पर कई तरह के सवाल उठाये जा रहे है।

उत्तर प्रदेश में यदि पिछली चार सरकारों की बात करें तो हर दल की सरकारों में ब्राम्हणों का प्रतिनिधित्व मिलता रहा है। ये बात अलग है कि किसी दल में कम तो किसी में अधिक रहा है। मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) के नेतृत्व में जब 2003 में समाजवादी पार्टी की सरकार (Samajwadi Party Government) बनी तो इसमें कैबिनेट मंत्री के तौर पर डॉ. अशोक वाजपेयी, राजाराम पाण्डेय, हरिशंकर तिवारी, ब्रम्हशंकर तिवारी, राजपाल त्यागी और दुर्गा प्रसाद मिश्र शामिल हुए जबकि राज्य मंत्री स्वतंत्र प्रभार के रूप में कामेष्वर उपाध्याय को शामिल किया गया।

इसके बाद जब 2007 में जब यूपी में विधानसभा के चुनाव (Assembly elections in UP) हुए तो इसमें पहली बार बसपा अध्यक्ष मायावती (BSP supremo Mayawati) ने एक नया प्रयोग कर 86 सवर्णाे को टिकट दिए। इनमें 56 ब्राम्हण प्रत्याशी थें, जिनमें से 41 चुनाव जीतकर विधायक बने। इसके बाद जब 13 मई 2007 को 206 विधायकों वाली बसपा सरकार (bsp government) का गठन हुआ तो इसमें कैबिनेट मंत्री (मुख्यमंत्री से सम्बद्व) सतीष चन्द्र मिश्र, रामवीर उपाध्याय, राकेशधर त्रिपाठी और नकुल दुबे का शामिल किया गया। जबकि राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) के रूप में रंगनाथ मिश्र, लखीराम नागर और अनन्त कुमार मिश्र शामिल हुए। मायावती के नेतृत्व वाली इस सरकार में राज्यमंत्री के तौर पर राजेश त्रिपाठी और दद्दन मिश्र भी शामिल थें।

5 साल पूरा करने के बाद जब 2012 में यूपी विधानसभा (UP Assembly in 2012) के आम चुनाव हुए तो पिछडों और मुस्लिमों की पार्टी कही जाने वाली समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) सत्ता में लौटी। 21 ब्राम्हण समेत 224 विधायकों वाली समाजवादी पार्टी जब सत्तासीन हुई तो मुख्यमंत्री अखिलेश यादव (CM Akhilesh Yadav) ने अपने मंत्रिमंडल में केवल दो कैबिनेट मंत्री ब्रम्हशंकर त्रिपाठी (cabinet minister brahmashankar tripathi) और राजाराम पाण्डेय (Rajaram Pandey) को ही शामिल किया। जबकि राज्मंत्री (स्वतंर्त्र प्रभार) के तौर पर विजय कुमार मिश्र और राज्यमंत्री के रूप में अभिषेक मिश्र, कैलाश चौरसिया, मनोज कुमार पाण्डेय और तेज नारायण पाण्डेय को शामिल किया। हालांकि बाद में कुछ का प्रमोशन भी किया गया।

उत्तर प्रदेश में मुस्लिम तुष्टीकरण नीति (Muslim Appeasement Policy in Uttar Pradesh) के खिलाफ भाजपा के जारी अभियान के तहत 2017 के विधानसभा चुनाव (UP Assembly in 2017) के बाद जब योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में भाजपा की सरकार (BJP Government) बनी तो ब्राम्हण समुदाय के जबरदस्त समर्थन के चलते इस चुनाव में रिकार्ड तोड 58 ब्राम्हण प्रत्याशी चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे। 19 मार्च 2017 को गठित भाजपा सरकार (BJP Government) में जहां डॉ. दिनेश शर्मा को डिप्टी सीएम बनाया गया। वहीं, इस समय अन्य कैबिनेट मंत्रियों में ब्रजेश पाठक, श्रीकांत शर्मा, और रामनरेश अग्निहोत्री शामिल है। जबकि राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) उपेन्द्र तिवारी,नीलकंठ तिवारी और सतीश त्रिवेदी शामिल हैं जबकि राज्यमंत्रियों में आनन्द स्वरूप शुक्ल, चंद्रिका प्रसाद उपाध्याय ओर अनिल शर्मा शामिल हैं।

अब यदि आंकडों पर गौर करे तो 1993 में भाजपा के 17, 1996 में 14, 2002 में 08, 2007 में 03 और 2012 में 06 ब्राह्मण विधायक थे। जबकि 2017 की विधानसभा में भाजपा के 306 में से 58 ब्राम्हण विधायक है। वहीं, बसपा के 1993 में कोई नहीं, 1996 में 02, 2002 में 04, 2007 में 41 और 2012 में 10 ब्राह्मण विधायक थे। जबकि इस समय बसपा के…

दोस्तों देश और दुनिया की खबरों को तेजी से जानने के लिए बने रहें न्यूजट्रैक के साथ। हमें फेसबुक पर फॉलो करने के लिए @newstrack और ट्विटर पर फॉलो करने के लिए @newstrackmedia पर क्लिक करें।

Tags:    

Similar News