UP Politics: UP चुनाव से पहले मायावती का पिछड़ा कार्ड, बोलीं- OBC जातियों की अलग जनगणना का BSP करेगी समर्थन
बीएसपी सुप्रीमो मायावती एक तरफ अपने सबसे खास रणनीतिकार सतीश चंद्र मिश्रा को जहां ब्राम्हाणों को रिझाने के लिए मैदान में उतारा है तो वहीं खुद ओबीसी कार्ड खेल रही हैं।
UP Politics: बीएसपी सुप्रीमो मायावती विधानसभा चुनाव से पहले अपनी पार्टी को मजबूत करने की हर कोशिशों में लगी हुई हैं। मायावती एक तरफ अपने सबसे खास रणनीतिकार सतीश चंद्र मिश्रा को जहां ब्राम्हाणों को रिझाने के लिए मैदान में उतारा है तो वहीं खुद ओबीसी कार्ड खेल रही हैं। मायावती यह भालीभांति जान गई हैं कि बिना सबके समर्थन से वह यूपी की सत्ता को हासिल नहीं कर सकती हैं। मायावती अब ओबीसी कार्ड खेला है आज (शुक्रवार) उन्होंने सबसे पहला ट्वीट ओबीसी समाज की अलग जनणना की मांग को लेकर किया है। मायावती ने कहा कि अगर केंद्र सरकार ओबीसी समाज की अगल से जनगणना कराती है तो वह उसका सदन से लेकर बाहर तक उसका समर्थन करेंगी।
मायावती का ओबीसी कार्ड
मायावती ने आज अपने ट्वीटर पर लिखा... 'देश में ओ.बी.सी. समाज की अलग से जनगणना कराने की माँग बीएसपी शुरू से ही लगातार करती रही है तथा अभी भी बीएसपी की यही मांग है और इस मामले में केन्द्र की सरकार अगर कोई सकारात्मक कदम उठाती है तो फिर बीएसपी इसका संसद के अन्दर व बाहर भी जरूर समर्थन करेगी।
सपा की साइकिल रैली के बाद मायावती ने किया ट्वीट
बता दें 5 अगस्त को जनेश्वर मिश्रा (छोटे लोहिया) के जन्मदिवस पर पर समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने जहां राजधानी लखनऊ में साइकिल रैली निकाली तो वहीं उनकी पार्टी के दूसरे नेता पूरे प्रदेश में साइकिल यात्रा निकाल कर अपनी ताकत दिखाई और मिशन 2022 का शंखनाद भी कर दिया।
लखनऊ में अखिलेश यादव ने साइकिल रैली के दौरान दावा किया कि उत्तर प्रदेश की जनता की सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी से नाराजगी को देखकर लगता है कि सपा राज्य के आगामी विधानसभा चुनाव में 400 सीटें जीत लेगी। अखिलेश यादव ने कहा था कि अभी तक तो हम 350 बोलते थे, लेकिन जिस तरह से भारतीय जनता पार्टी से लोगों की नाराजगी बढ़ रही है हो सकता है हम 400 सीटें जीत जाएं।
अखिलेश भी कर चुके हैं अलग जनगणना की मांग
बता दें इससे पहले 2020 में समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव भी जातीय जनगणना की मांग कर चुके हैं। अखिलेश यादव ने सैफई में कहा था कि विकास प्रक्रिया को गति देने के लिए सामाजिक न्याय का लाभ मिले इसके लिए जातीय जनगणना होनी चाहिए। समाज के सभी वर्ग के लोगों की उनकी संख्या के अनुकूल तब हिस्सेदारी तय हो सकेगी। इसमें हिंदू-मुस्लिम की कोई समस्या नहीं होगी।
क्यों हो रही हैं जाति आधारित जनगणना की मांग
भारत के सभी बड़े राज्यों में जाति आधारित राजनीति होती रही है, 1951 में भी तत्कालीन गृहमंत्री सरदार पटेल के पास जाति आधार पर जनगणना कराने का प्रस्ताव आया था। सरदार पटेल ने इस प्रस्ताव को इस तर्क के साथ खारिज कर दिया था कि ऐसी जनगणना से देश का सामाजिक ताना-बाना बिगड़ सकता है। हिंदी पट्टी खासकर उत्तर प्रदेश और बिहार में जाति किसी भी चुनाव का सबसे बड़ा फैक्टर होता है।