Ram Mandir: सरयू ने रास्ता बदला तब भी सुरक्षित रहेगा मंदिर, हैं पुख्ता इंतजाम
Ram Mandir: पावन अयोध्या नगरी सरयू नदी के किनारे बसी हुई है और इतिहास में दर्ज है कि सरयू ने पहले भी करीब पांच बार अपना रास्ता बदला है।
Ram Mandir: अयोध्या में भगवान श्री राम मंदिर के निर्माण में सभी पहलुओं का ध्यान रखा गया है। मिसाल के लिए यदि सरयू नदी ने रास्ता बदला तब भी मंदिर को कोई नुकसान नहीं पहुंचेगा। भविष्य में कभी भी नदी की धारा बदली तो भी कोई फर्क नहीं पड़ेगा।
बदलता रास्ता
लगभग सभी नदियां समय समय पर अपना रास्ता बदलती रहती हैं। इसकी वजह किनारों पर या बीच में मौजूद बड़े पत्थर या किसी भी तरह का भारी जमाव होता है। कई बार रुकावट के चलते नदी कई धाराओं में बंट जाती है। भारत में कोसी नदी को सबसे ज्यादा बार अपना रास्ता बदलने के लिए जाना जाता है। अब तक ये 33 बार अपनी धारा बदल चुकी है।
अयोध्या की स्थिति
पावन अयोध्या नगरी सरयू नदी के किनारे बसी हुई है और इतिहास में दर्ज है कि सरयू ने पहले भी करीब पांच बार अपना रास्ता बदला है। धारा में किसी भी संभावित बदलाव को ध्यान में रखते हुए मंदिर के चारों ओर एक रिटेनिंग वॉल तैयार की गई। इस दीवार को कंक्रीट से बनाया गया है, जो मंदिर के ऊपर और जमीन के नीचे भी उसे सुरक्षित रखेगी। रिटेनिंग वॉल जमीन के भीतर करीब 12 मीटर और साथ से ऊपर की ओर 11 मीटर की है। इसमें ग्रेनाइट के पत्थर लगे हुए हैं क्योंकि वो पानी को बेहतर तरीके से सोखते हैं।
भुरभुरी मिट्टी
श्री राम मंदिर बनाने की तैयारी के दौरान कई फीट नीचे तक भुरभुरी मिट्टी मिलती रही। इससे नींव ही कमजोर हो सकती थी। नीचे रेतीली मिट्टी की वजह से पहले मंदिर परिसर की खुदाई करके 15 मीटर तक की मिट्टी हटा दी गई। इसके बाद वहां खास तरह की मिट्टी पाटी गई और उसके ऊपर लगभग डेढ़ मीटर तक मेटल-फ्री कंक्रीट राफ्ट रखा गया, जिसपर कर्नाटक से आया 6 मीटर मोटा ग्रेनाइट पत्थर रखा गया। इन उपायों से ये सुनिश्चित किया गया कि नींव एकदम मजबूत रहेगी।
मेटल का इस्तेमाल
चूंकि किसी भी निर्माण में लोहे के नष्ट होने की संभावना रहती है और बढ़िया से बढ़िया लोहा खराब होता ही है। सो तीन मंजिल के इस भवन खासकर नींव में लोहे का कोई इस्तेमाल नहीं हुआ है। इसके अलवा निर्माण किसी जॉइंट में सीमेंट और चूना गारा का उपयोग नहीं हो रहा है। सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट का कहना है कि मंदिर का तिमंजिला निर्माण इस तरह का है कि वो 2,500 सालों तक भूकंपरोधी रहेगा।