Ramayana: प्रभु श्री राम ने क्यों ली थी जल समाधि?

पौराणिक कथाओं के अनुसार, प्रभु श्रीराम ने मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में धरती पर जन्म लिया था, इसीलिए उनकी मृत्यु भी निश्चित थी।

Written By :  Aakanksha Dixit
Update:2024-01-08 19:43 IST

Ramayana : भगवान श्रीराम ने त्रेता युग में अयोध्या के चक्रवाती चक्रवर्ती राजा दशरथ के घर जन्म लिया था। अब अयोध्या में भगवान श्रीराम के प्रति भक्ति और श्रद्धापूर्वक मंदिर का निर्माण कार्य जोर शोर से चल रहा है। 22 जनवरी को, राम मंदिर में मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा का एक विशेष कार्यक्रम भी होगा। पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान विष्णु ने धरती पर प्रभु श्री राम के रूप में अवतार लंकापति रावण के अत्याचार को समाप्त करने के लिए हुआ था। प्रभु श्रीराम ने मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में धरती पर जन्म लिया था, इसीलिए उनकी मृत्यु भी निश्चित थी। प्रभु श्रीराम की मृत्यु को लेकर कई कथाएं प्रचलित है। परन्तु पद्म पुराण के अनुसार भगवान श्रीराम ने सरयू नदी में स्वयं की इच्छा से समाधि ली थी। कुछ मान्यताओं के अनुसार लक्ष्मण के वियोग में प्रभु श्री राम ने जल समाधि ली थी।

प्रभु श्री राम ने ली थी सरयू में समाधि

पहली कथा के अनुसार, जब श्री राम ने माता सीता को अपनी पवित्रता सिद्ध करने के बाद भी उनका त्याग कर दिया था और फिर उसके बाद माता सीता अपने दोनों पुत्रों लव और कुश को भगवान श्री राम के पास सौंप कर खुद धरती मैया की गोद में समा गईं थीं। कहते हैं सीता माता के दूर जाने से भगवान श्री राम दुखी हो गए और यमराज की सहमति से उन्होंने सरयू नदी के गुप्तार घाट में जल समाधि ले ली थी।

लक्ष्मण के वियोग में प्रभु श्री राम ने ली जल समाधि

एक अन्य कथा के अनुसार, एक बार यमदेव ने संत का रूप धारण कर अयोध्या में प्रवेश किया था। संत का रूप धारण किए यमदेव ने भगवान श्री राम से कहा कि हमारे बीच एक गुप्त वार्ता होगी। यमराज ने प्रभु श्री राम के सामने शर्त रखी कि अगर हमारी वार्ता के दौरान कोई अन्य कक्ष में आता है तो उसे भी मृत्यु दंड मिलेगा। भगवान राम ने यमराज को वचन दे दिया और लक्ष्मण को द्वारपाल बनाकर खड़ा कर दिया।

इतने में ऋषि दुर्वासा वहां पहुंचते हैं और श्री राम से मिलने की जिद्द करते हैं लेकिन लक्ष्मण वचनबद्ध होने के कारण उन्हें अंदर जाने से मना करते हैं। इस पर ऋषि दुर्वासा क्रोधित हो उठते हैं और भगवान राम को श्राप देने की बात कहते हैं। ऐसे में लक्ष्मण ने अपने प्राणों की चिंता किए बिना ऋषि दुर्वासा को कक्ष में जाने की अनुमति दे देते है।

भगवान श्री राम और यमराज की वार्ता भंग हो जाती है। वचन तोड़ने के कारण श्री राम ने लक्ष्मण को राज्य से निष्कासित कर दिया। लक्ष्मण ने अपने भाई प्रभु श्री राम का वचन पूरा न कर पाने के कारण सरयू नदी में जल समाधि ले ली। लक्ष्मण के जल समाधि लेने पर भगवान श्री राम बहुत दुखी हो जाते हैं और स्वयं भी अपने अनुज के वियोग में जल समाधि ले लेते हैं। कहा जाता है जिस समय भगवान राम ने जल समाधि ली, उस समय हनुमान जी, जामवंत, सुग्रीव, भरत, शत्रुघ्न आदि भी वहां उपस्थित थे।

प्रभु श्री राम जी के चरित्र की तुलना किसी से भी नहीं की जा सकती है। भगवान श्री राम ने सदैव अपने जीवन में धर्म का पालन किया है। उन्होंने सदैव अपने पिता के आदेशों का पालन किया। भगवान श्रीराम का अपनी पतिव्रता पत्नी सीता के प्रति उनका प्रेम और समर्पण अद्वितीय है। प्रभु श्री राम सत्य, निष्ठा, और दयालुता जैसे गुणों का साक्षात उदहारण है।

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