Ayodhya Ram Mandir: नागर शैली में बना है प्रभु राम का मंदिर, क्यों चुना गया इस शैली को और किस तरह अलग होते हैं ये मंदिर

Ayodhya Ram Mandir: अयोध्या के जिस मंदिर में 22 जनवरी 2024 यानी सोमवार को रामलला की प्राण प्रतिष्ठा हुई वो नागर शैली में बना हुआ है। नागर शैली में यह मंदिर क्यों बना है। प्राचीन भारत में मंदिर निर्माण की खास 3 शैलियां होती हैं जिनमें से नागर स्थापत्य में मंदिर काफी खुला हुआ होता है, जबकि मुख्य भवन चबूतरे पर बना होता है। जानिए, क्या है नागर शैली और क्यों इसे राम मंदिर के लिए चुना गया।

Update: 2024-01-22 10:08 GMT

नागर शैली में बना है प्रभु राम का मंदिर, क्यों चुना गया इस शैली को और किस तरह अलग होते हैं ये मंदिर: Photo- Social Media

Ayodhya Ram Mandir: 22 जनवरी 2024 को अयोध्या में राम लला की प्राण प्रतिष्ठा हो गई है। इसको लेकर पूरे देश में जश्न का माहौल है। इस मंदिर की भव्यता देखते ही बनती है। राम मंदिर बेहद भव्य हो, इसकी सारी कोशिशें की गईं, चाहे इसमें मकराना का संगमरमर हो या फिर नक्काशी के लिए इस्तेमाल किया खास कर्नाटकी बलुआ। मंदिर को खूबसुरत बनाने के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ा गया। लेकिन इन सारी चीजों के बीच ये यह जानने की बात है कि अयोध्या में बना राम मंदिर नागर स्थापत्य की स्टाइल में बना है। राम मंदिर के लिए नागर शैली को लिया गया है क्योंकि उत्तर भारत और नदियों से सटे हुए इलाकों में यही शैली प्रचलित है। नागर शैली वास्तुकला की अपनी अलग ही खासियतें हैं। यह अपनी खासियत के लिए खासे प्रसिद्ध माने जाते हैं।

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मंदिर के लिए ये हैं शैलियां

हमारे देश में मंदिर बनाने की तीन शैलियां प्रमुख थीं, इसमें नागर, द्रविड़ और वेसर हैं। 5वीं सदी के उत्तर भारत में ये प्रयोग मंदिरों पर होने लगा और इसी दौरान दक्षिण में द्रविड़ शैली विकसित हो चुकी थी।

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कुछ खासबातों का ध्यान रखा जाता है-

नागर शैली में मंदिर बनाते हुए कुछ खास बातों का ध्यान रखा जाता है।

-जैसे इसमें मुख्य इमारत ऊंची जगह पर बनी होती है, जैसे कोई चबूतरानुमा स्थान। इसपर ही गर्भगृह होता है, जहां मंदिर के मुख्य देवी या देवता की पूजा होती है।

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गर्भगृह सबसे पवित्र स्थान होता है

अयोध्या में राम मंदिर में राम लला की प्राण प्रतिष्ठा गर्भगृह में ही हुई है। इसी के ऊपर शिखर होता है और ये दोनों ही जगहें काफी पवित्र और मुख्य मानी जाती हैं। शिखर के ऊपर आमलक भी होता है। बता दें कि मंदिर की वास्तु में ये खास आकृति है, जो शिखर पर फल के आकार की होती है।

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गर्भगृह के चारों ओर प्रदक्षिणा पथ होता है। साथ में कई और मंडप होते हैं, जिन पर देवी-देवताओं या उनके वाहनों, फूलों की नक्काशी बनी होती है। इसके साथ एक कलश और मंदिर की पताका यानी ध्वज भी रहता है।

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नागर में ये चीजें भी हैं शामिल

नागर वास्तु अपने आप में काफी विस्तृत शैली है। इसके तहत पांच तरीकों से मंदिर बनाया जा सकता है।

-वलभी शैली- इस शैली के मंदिर में लकड़ी की छत होती है जो कि नीचे की ओर घुमाए लिए दिखेगी।

-लैतिना शैली- इस शैली में एक ही घुमावदार टावर होता है, जिसमें चार कोने होते हैं।

-फमसाना शैली- इस शैली के मंदिर में एक के ऊपर एक कई छतों वाले टावर होते हैं। ऊपर वाली छत सबसे चैड़ी होती है।

-शेखरी और भूमिजा शैली- 10वीं सदी में शेखरी और भूमिजा शैली विकसित हुईं। भूमिजा में हॉरिजॉन्टल और वर्टिकल कतारों में कई छोटे शिखर होते हैं, जबकि मेन शिखर, पिरामिड के आकार का दिखेगा।

लैतिना शैली- इसमें कई उप-शिखर होते हैं। लैतिना को रेखा प्रसाद भी कहते हैं। उड़ीसा के पूरी में बना श्री जगन्नाथ मंदिर इसी शैली में बना हुआ है।


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और इस तरह बनती गई होंगी नई शैलियां

नागर मंदिर जहां खुले में बनाए जाते हैं, लंबा-चौड़ा परिसर होता है तो वहीं द्रविड़ शैली में मंदिर निर्माण एक बाउंड्री के अंदर होता है, जिसमें अंदर जाने के लिए भव्य प्रवेश द्वार रहता है। आगे चलकर ये सभी शैलियां एक-दूसरे से मिलती-जुलती चली गईं। उस दौर के कलाकारों ने मौजूदा विधा में ही अपनी सोच के आधार पर भी थोड़े बदलाव किए। इस तरह से डिजाइन तो बदलता चला गया, लेकिन मूल वही रहा। मध्यप्रदेश का कंदरिया महादेव टेंपल नागर शैली का बढ़िया उदाहरण है। कोणार्क और मोढेरा के सूर्य मंदिर प्राचीन नागर स्टाइल में बने हैं।

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हर राज्य से कुछ न कुछ

अयोध्या में बने राम मंदिर के लिए देश के ज्यादातर राज्यों की कोई न कोई खास चीज ली गई। मंदिर के निर्माण में राजस्थान के नागौर के मकराना के मार्बल का इस्तेमाल हुआ है। यहीं के मार्बल से ही राम मंदिर के गर्भगृह में सिंहासन बनाया गया है। इस सिंहासन पर भगवान राम विराजे हैं। भगवान श्रीराम के सिंहासन पर सोने की परत चढ़ाई गई है। गर्भगृह और फर्श में मकराना का सफेद मार्बल लगाया गया है। वहीं मंदिर के पिलर को बनाने में भी मकराना मार्बल का ही इस्तेमाल किया गया है।

वहीं देवताओं की नक्काशी कर्नाटक के चर्मोथी बलुआ पत्थर पर की गई है। इसके अलावा प्रवेश द्वार की भव्य आकृतियों में राजस्थान के बंसी पहाड़पुर के गुलाबी बलुआ पत्थर का उपयोग किया गया है। गुजरात की ओर से 2100 किलोग्राम की अस्तधातु घंटी दी गई है। पीतल के बर्तन उत्तर प्रदेश से आए हैं। जबकि पॉलिश की हुई सागौन की लकड़ी महाराष्ट्र से आई है। मंदिर निर्माण के लिए इस्तेमाल ईंट करीब 5 लाख गांवों से आई थीं।

राम मंदिर की शोभा देखते ही बनती है। मंदिर की सुंदरता ऐसी है की देखने वाले देखते ही रह जाएं और हो भी क्यों न ये तो प्रभु राम का मंदिर है जहां स्वयं प्रभु अपने बाल स्वरूप में विराजमान हुए हैं।

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