Ayodhya:कौन है भगवान सिंह? राम मंदिर के लिए दे दी अपने प्राणों की आहुति

माँ मैं जा रहा, शायद अब न लौट पाऊँ’: यही बोल कर निकले थे भगवान् सिंह, धर्म प्रचार के लिए जिन्होंने शादी तक को ठुकराया

Written By :  Aakanksha Dixit
Update: 2024-01-08 08:52 GMT

Ram Mandir 

Ayodhya News: रामजन्मभूमि अयोध्या में भगवान राम की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठता का कार्यक्रम 22 जनवरी को होना प्रस्तावित है। इसका उत्साह तो पूरे देशभर में देखने को मिल रहा है। मूर्ति का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा किया जायेगा जिसमें देश- विदेश की कई हस्तियां भी मौजूद होंगी। कई दशकों की लंबी लड़ाई के बाद यह शुभ अवसर आया है।

अयोध्या में बन रहें भगवान श्री राम के इस मंदिर के लिए कई आंदोलन और संघर्ष हुए। तमाम लोगों ने जान भी गँवाई। उन्ही आंदोलनों और संघर्षगाथाओं में अलीगढ का भी प्रमुख योगदान रहा है। राम मंदिर में होने वाले इस पवित्र कार्य के चलते आज हिन्दू समाज उन बलिदानियों को याद कर रहा है, जिन्होंने मुगल काल से मुलायम काल तक रामजन्मभूमि मुक्ति आंदोलन में अपने प्राण न्योछावर कर दिए।

कौन है भगवान सिंह

अलीगढ़ की मिट्टी से पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह तो निकले ही थे वहीँ दूसरी ओर उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ निवासी भगवान सिंह जाट जैसे वीर कारसेवक ने भी जन्म लिया। अयोध्या पहुँचकर कारसेवा करने के दौरान मात्र 24 साल की उम्र में पुलिस की गोलियों द्वारा मौत के घाट उतार दिया गया।उनका शव तक उनके परिवारजनों को नहीं मिला। भगवान सिंह जी बचपन से ही संघ (RSS) की शाखाओं में जाते थे। अपनी प्रारंभिक पढ़ाई अलीगढ़ में करने के बाद उच्च शिक्षा हासिल करने के लिए भगवान सिंह जी मथुरा चले गए थे। यहाँ भी उन्होंने हिंदुत्व का प्रचार-प्रसार जारी रखा। भगवान सिंह ने विवाह भी नहीं किया था। जब भी परिवार उनसे विवाह की बात करते तो वह अपने विवाह की बात को टाल देते थे।

परिंदा भी पर नहीं मार सकेगा

2 नवंबर, 1990 को जब तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने ‘अयोध्या में परिंदा भी पर नहीं मार सकेगा’ का एलान किया था, तभ देश भर से सभी कारसेवकों का जत्था अयोध्या के लिए रवाना हो गया। उसी दौरान भगवान सिंह भी रामजन्मभूमि के पास पहुँच गए थे। यहाँ पर वो तत्कालीन सरकार के आदेश पर जवानों द्वारा चलाई गोली का शिकार हो गए और रामजन्मभूमि के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी। उनके बलिदान होने की जानकारी उनके जत्थे के बाकी कारसेवकों से पता चली थी।

माँ मैं जा रहा हूँ , शायद फिर न लौट पाऊँ

राम जन्मभूमि की रक्षा के लिए देशभर से कारसेवा के लिए रामभक्तों का जमावड़ा शुरू हो रहा था वहीँ भगवान् सिंह भी खुद को नहीं रोक सके। अयोध्या जाने से पहले भगवान सिंह मथुरा से अपने घर अलीगढ़ आए। यहाँ उन्होंने अपनी माँ के चरण छुए और कहा, “माँ मैं जा रहा हूँ। शायद अब न लौट पाऊँ।” तब उनकी माँ शीशकौर देवी यह समझ न पाईं कि उनका बेटा अयोध्या जाने की बात कर रहा है। उन्हें लगा कि भगवान सिंह कहीं आसपास जा रहे हैं।

अपने ही बेटे के शव को ढूंढने के लिए भटकते रहे परिजन

बेटे की मौत की जानकारी मिलते ही उनके माता-पिता अयोध्या के लिए निकल पड़े। पाबन्दी की वजह से उन्हें अयोध्या पहुँचने में ही बहुत सी दिक्कतें आई । लेकिन जैसे-तैसे वो पहुँच गए। जवाहर सिंह जाट कई दिनों तक अपनी बूढ़ी पत्नी के साथ अपने बेटे के शव की तलाश करते रहें । लेकिन अंत में नाकाम रहे। शासन और प्रशासन से जुड़े लोगों ने भी उनकी कोई मदद नहीं की।

गांव में बना भगवान सिंह का स्मृति चिह्न

भगवान सिंह के बलिदान की याद में अलीगढ़ में आज भी उनका एक स्मृति स्थल स्थित है। एक छोटी सी उनके पैतृक गाँव नगला बलराम में लगाई गयी है। उनके भतीजे हरिओम सिंह जी ने उम्मीद जताई कि उनके चाचा की एक स्मृति भगवान राम के नवनिर्मित मंदिर के आसपास भी होगी। हरिओम सिंह यह भी चाहते हैं कि वर्तमान सरकार उनके साथ रामजन्मभूमि आंदोलन में बलिदान हुए अन्य बलिदानियों केपरिवारजनों पर भी ध्यान दे। साथ ही बलिदानियों के परिवारों को रामजन्मभूमि दर्शन में सहूलियत दी जाए।

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