Ayodhya Ram Mandir: 22 जनवरी से पहले कितनी तैयार है अयोध्या और जानें क्या है रामनगरी का माहौल?
Ayodhya Ram Mandir: कोई पैदल आ रहा है तो कोई दंडवत करता हुआ और कोई साइिकल से। जिसको जैसे बनता है वह यहां आ रहा है। लंबे इंतजार के बाद आखिरकार मुझे भी पहली बार रामनगरी अयोध्या जाने का मौका मिल ही गया।
Ayodhya Ram Mandir: रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा की खबर ने रामभक्तों में जान फूंक दी है। मुहूर्त भले ही 22 जनवरी का है, लेकिन भक्तों का जमावड़ा अभी से है। कड़ाके की ठंड में जब आपका मन रजाई से निकलने का न कर रहा होगा तो राम भक्त अयोध्या धाम में पहुंच रहे हैं। कोई पैदल आ रहा है तो कोई दंडवत करता हुआ और कोई साइिकल से। जिसको जैसे बनता है वह यहां आ रहा है। लंबे इंतजार के बाद आखिरकार मुझे भी पहली बार रामनगरी अयोध्या जाने का मौका मिल ही गया।
Newstrack के संपादक जी की सहमति के बाद मुझे रामनगरी में न्यूज कवर करने का अवसर मिला। 13 जनवरी को बात फाइनल हुई। मुझे अगले दिन यानी 14 जनवरी को निकलना था। सुबह जल्दी उठा। नित्य-कर्म से फारिग होकर पौने सात बजे घर से निकल गया। कोहरा इतना पड़ रहा था कि 10 मीटर के बाद कुछ सूझ नहीं रहा था। पर मैंने ठान लिया था कि मुझे जाना है। इलेक्ट्रिक बस से अवध बस स्टैंड पहुंचा। वहां से अयोध्या के लिए बस पकड़ी। शुक्र है कि वह बस वातानुकूलित थी, वरना कड़कड़ाती ठंड यात्रा को और कठिन बना देती।
10:30 बजे मैं अयोध्या पहुंच चुका था, पर बस ने हाईवे पर ही उतार दिया। वजह थी पुलिस की बैरिकेडिंग। रौनाही से यहां तक हर 10 मीटर पर एक पुलिस का एक जवान खड़ा था। उसी मार्ग से मुख्यमंत्री भी आने वाले थे, नतीजन ई-रिक्शा भी नहीं चल रहे थे। पैदल ही 2 किमी का सफर तय करना था। श्रीराम की जन्मभूमि पर यह मेरा आना पहली बार था, लिहाजा मैं पैदल ही चल दिया। रास्ते में वीडियो बनाते-बनाते पता नहीं चला कि कब सफर तय हो गया।
'सावधान कार्य प्रगति पर है'
पैदल आना कई मायनों में फायदेमंद रहा। एक तो सर्दी भाग गई और दूसरा तैयारियों को नजदीक से देखने का मौका मिला। इस आधार पर मैं दावे के कह सकता था कि इस्तकबाल के लिए अयोध्या अभी पूरी तरह से तैयार नहीं है। भले ही तैयारियों को अंतिम रूप दिया जा रहा है लेकिन अभी भी काम बहुत बाकी है। भित्ति चित्रों पर काम चल रहा है। कुछ बने हैं और कुछ अधबने। किसी में साज-सज्जा बाकी है तो किसी दीवार पर उकेरा जा रहा है। इसके अलावा सड़कों को दुरुस्त करने के साथ ही साफ-सफाई भी की जा रही है। 'सावधान कार्य प्रगति पर है' के कहीं बोर्ड लगे हैं तो कहीं जेसीबी चल रही है।
उपेक्षित हैं कई मंदिर
पहले दिन के भ्रमण के दौरान मैंने पाया कि फ्रंट ही नहीं गलियों में भी सड़कें बन रही हैं। इस दौरान कई ऐसे मंदिरों में भी गया जहां कोई नहीं आता है। खुद पुजारी दरवाजे बंद करके बैठे हैं। ऐसा ही एक मंदिर था 'पलटूदास जी का अखाड़ा'। जो अपने जीर्णोद्धार की बाट जोह रहा है। इस मंदिर के पास भी पर्याप्त स्पेस है। इतना ही नहीं यह राम मंदिर से महज 1 किमी की दूरी है लेकिन यहां श्रद्धालु नहीं आते। 20-25 सीढ़ियां चढ़कर मंदिर पहुंचा तो वहां के सेवादार से मिला। शिकायती अंदाज में उन्होंने बताया कि सरकार का ध्यान ही नहीं है इस ओर। हालांकि, वह कहते हैं कि 22 जनवरी को वह मंदिर को जगमग करेंगे। ऐसे ही कई और मंदिर हैं जो उपेक्षित हैं। कुछ स्थानीय लोग भले ही नाखुश थे, पर बाहर से आये श्रद्धालुओं में जोश की कोई कमी नहीं। रह-रहकर वह जय श्रीराम के नारे लगा रहे थे।
गुरुद्वारे में भी जश्न का माहौल
राम मंदिर से एक किलोमीटर के ही दायरे में एक गुरुद्वारा भी है। वहां भी गया। इंतजार कराने के आखिरकार महाराज जी बात करने को तैयार हो गये। राम मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा से वह भी काफी खुश दिखे, लेकिन 1992 के घटनाक्रम पर कुछ भी बोलने से मना कर दिया। इस दौरान कई और मंदिरों में जहां कुछ महंतों ने योगी-मोदी की खूब तारीफ की और राम मंदिर बनवाने के लिए इन्हें साधुवाद दिया। शाम की राम की पैड़ी पर बड़ी चहल-पहल थी। यूट्यूबर, ब्लॉगर्स और न्यूज पोर्टल्स के रिपोर्टर लोगों का फीडबैक ले रहे थे तो एक टीवी चैनल ने वहीं पर लाइव डिबेट शुरू कर दी थी।
दर्शन, घूमने और खाने का शौक
करीब शाम 7 बजे मेरे ठहरने की मुकम्मल व्यवस्था हो सकी। सामान रखा और फिर राम नगरी का हाल लेने निकल लिया। इस दौरान पेट-पूजा भी जरूरी थी। तृप्त होकर कनक भवन मंदिर और दशरथ महल गया जहां भीड़ थी। अयोध्या के प्रमुख चौक-चौराहों पर बड़ी-बड़ी स्क्रीन लगी हैं, रात में जिन पर रामानंद सागर वाली रामायण प्रसारित हो रही थी। लेकिन, इस वक्त लोगों का फोकस सिर्फ दर्शन करने, घूमने और खाने में था। कई लोग कमरों की तलाश में इधर-उधर भटक रहे थे तो कुछ ने गुरुद्वारों आदि में शरण ली। आखिरकार मैं भी रूम पर वापस आ गया और बैठ गया खबर लिखने, क्योंकि इसे आप तक पहुंचाना जो था।
दशरथ महल
रामलला के प्राण-प्रतिष्ठा का मुहूर्त जैसे-जैसे समीप आता जा रहा है, अधोध्या धाम में भक्ति की बयार बह चली है। रामनगरी के मंदिर भक्तों से गुलजार हैं। ऐसे ही एक है दशरथ महल, जहां श्रीराम अपने तीनों भाइयों के साथ खेला करते थे, वह आज फिर से चहक रहा है। रविवार देर रात आठ बजे पूरा महल रंग-बिरंगी लाइटों से जगमगाता नजर आया । वहीं, मेनगेट पर रंग-रोगन का काम अभी भी जारी है। प्रागंण में ढोलक व मंजीरे की धुन पर रामचरित मानस का पाठ चल रहा है। कहीं दंडवत हो रही है तो कोई ध्यानमग्न है। श्रद्धालु भक्ति रस में डूबे हैं। मेनगेट और प्रांगण के बीच में हनुमान जी का स्थान है, भक्त उनसे भी श्रीराम तक अर्जी पहुंचाने की अरदास लगा रहे हैं। वर्तमान समय में दशरथ महल एक पवित्र मंदिर के रूप में जाना जाता है। यहां भगवान राम, माता सीता, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न की सुंदर प्रतिमाएं हैं। मान्यता है कि चक्रवर्ती राजा दशरथ अपने परिजनों के साथ यहां रहते थे।
मेनगेट से थोड़ा बाहर निकलेंगे तो बाईं ओर खाली पड़े मैदान में भंडारा चल रहा है। आयोजक बड़ी श्रद्धा से भक्तों को बुलाकर प्रसाद दे रहे हैं। बीच-बीच में जय श्रीराम के नारों से माहौल और भक्तिमय हो जाता है। बाहर निकलेंगे तो मेनगेट पर ही पुलिस के जवान भी मुस्तैद हैं, जो कड़ाके की ठंड में अलाव के सहारे घेरा लगाकर बैठे हैं। हनुमानगढ़ी की तरफ आगे बढ़िये तो भक्ति मार्ग में दुकानें सजी हैं। इनमें मूर्तियों की, पूजा के बर्तनों की, मिठाई की व बिसात खाने की दुकानें हैं, जहां खरीददार मनपसंद सामान खरीद रहे हैं।
कनक भवन
दशरथ महल से थोड़ी ही दूर पर कनक भवन है। माना जाता है कि यह भवन भगवान श्रीराम से विवाह के तुरंत बाद महारानी कैकेयी ने देवी सीता को मुंह दिखाई पर उपहार में दिया था। यह देवी सीता और भगवान राम का निजी महल है जो बहुत ही विशाल है। कालांतर में जब यह जीर्ण-शीर्ण हुआ तो श्रीराम के पुत्र कुश ने इसका पुनर्निर्माण करवाया था। द्वापर युग में स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने इसे फिर से बनवाया था। मध्यकाल में विक्रमादित्य ने इसका जोर्णोद्धार करवाया था। बाद में इसे ओरछा की रानी वृषभानु कुंवरि द्वारा पुनर्निर्मित किया गया। गर्भगृह में स्थापित मुख्य मूर्तियां भगवान राम और माता सीता की हैं।
प्राण-प्रतिष्ठा के उपलक्ष्य में कनक भवन को ऐसा सजाया गया है कि रात में रंग-बिरंगी लाइटों से यह जगमग हो रहा है। संगमरमर की फर्श पर लाल मैट बिछी है जिस पर भक्तों ने आसन जमाया है। घड़ी की सुई 9 के अंक को छूने वाली है। बावजूद भक्त बेपरवाह मंदिर में जमे हैं। ऐसा लगता है कि वह दीन-दुनिया से तल्ला तोड़ अब सियाराम के रंग ही रंग जाना चाहते हैं। वहीं, कुछ लोग वीडियो कॉल पर परिजनों को मंदिर की भव्यता व दिव्यता का दर्शन करा रहे हैं और अपने अंदाज में उन्हें आंखों देखा हाल बता रहे हैं। पास ही कनक भवनेश्वर महादेव का मंदिर है, जहां दर्शन-पूजन चल रहा है। पास ही दरबार श्रीलाल साहब है जो अपनी सुंदरता से लोगों का ध्यान आकर्षित कर रहा है।