Bahraich News: बांग्लादेश में हिंदुओं पर हमला गैर इस्लामिक: मौलाना सिराज मदनी

Bahraich News: मौलाना सिराज मदनी ने कहा कि किसी भी देश में रहने वाले किसी भी अल्पसंख्यक के पूजा स्थलों पर हमला करना, हत्या करना, तोड़ना या नुकसान पहुंचाना गलत है, चाहे वे किसी भी धर्म के हों।

Update: 2024-08-09 08:59 GMT

मौलाना सिराज मदनी (Pic: Newstrack) 

Bahraich News: बांग्लादेश में तख्तापलट के बाद वहां हिंदुओं, बौद्धों आदि पर हमले बढ़ गए हैं। इसको लेकर बहराइच जिले की प्रसिद्ध शिक्षण संस्था, धार्मिक एवं दुनियावी अध्ययन का केंद्र के संस्थापक एवं प्रबंधक मौलाना सिराज अहमद मदनी ने इसे गैर-इस्लामी बताते हुए कड़े शब्दों में निंदा की है। उन्होंने कहा कि बांग्लादेश में तख्तापलट के बाद वहां के हिंदुओं की हत्या करने, उनके घरों में तोड़फोड़ और उनकी दुकानों को लूटने और उनके पूजा स्थलों को तोड़े जाने को गैर-इस्लामी है और इसकी वह कड़े शब्दों में निंदा की है।

पूजा स्थलों पर हमला करना, हत्या करना गलत है: मौलाना

मौलाना सिराज मदनी ने कहा कि किसी भी देश में रहने वाले किसी भी अल्पसंख्यक के पूजा स्थलों पर हमला करना, हत्या करना, तोड़ना या नुकसान पहुंचाना गलत है, चाहे वे किसी भी धर्म के हों। उन्होंने जो किया है वह किसी भी हाल में सही नहीं है और उनके के कार्यों से उचित नहीं ठहराया जा सकता है। मौलाना सिराज मदनी ने कहा कि जुल्म तो जुल्म है, चाहे वह किसी भी देश में हो, किसी भी व्यक्ति के धार्मिक इबादतगाह को नुकसान पहुंचाना हो वह गलत है।

मौलाना सिराज मदनी ने कहा है कि पवित्र कुरान में अल्लाह ताला ने कहा है कि "तुम्हारे लिए तुम्हारा धर्म है और मेरे लिए मेरा धर्म है" इसलिए किसी भी मुसलमान के लिए जायज़ नहीं है कि किसी के धर्म को नुकसान पहुंचाए या उनके साथ गलत व्यवहार करे, यदि कोई ऐसा करता है तो यह इस्लाम धर्म के विरुद्ध है।

उल्लेखनीय है कि बंगलादेश के अल्पसंख्यकों पर अत्याचार नए नहीं हैं। कट्टरपंथियों के अत्याचार से नमशूद्रों को बचाने के लिए ही हरिचंद ठाकुर ने 19वीं सदी के मध्य में फरीदपुर (तत्कालीन पूर्वी बंगाल) में मतुआ पंथ की स्थापना की थी। मतुआ यानी जो मानवतावादी मतवाले हैं। कट्टरपंथियों के अत्याचार से बचने के लिए गुरुचंद ठाकुर के पौत्र प्रमथ रंजन विश्वास 1948 में बंगाल के बनगांव आ गए थे। उन्होंने बंगाल में मतुआ धर्म महासंघ को संगठित किया। मतुआ धर्म महासंघ बंगाल में अपने डेढ़ करोड़ अनुयायियों के साथ आज भी नमशूद्र शरणार्थियों के लिए संघर्षरत है।

विभाजन के समय कट्टरपंथियों के अत्याचार रोकने के लिए ही जोगेंद्र नाथ मंडल पाकिस्तान सरकार में शामिल हुए। जब पाकिस्तान में कानून एवं श्रम मंत्री बनने के बाद भी वह अत्याचार नहीं रोक पाए तो उन्होंने इस्तीफा दे दिया। नौ अक्टूबर, 1950 को पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री लियाकत अली खान को भेजे त्यागपत्र में मंडल ने लिखा था कि पूर्वी पाकिस्तान में हिंदुओं पर मुस्लिम कट्टरपंथियों के जैसे हमले बढ़ते जा रहे हैं, उससे उनका मंत्री पद पर बने रहना संभव नहीं है। उन्होंने यह भी लिखा था कि देश विभाजन के बाद 50 लाख हिंदू पलायन करने को विवश हुए हैं। हिंदुओं का पलायन उसके बाद भी थमा नहीं। बांग्लादेशी साहित्यकार सलाम आजाद ने अपनी पुस्तक ‘बांग्लादेश से क्यों भाग रहे हैं हिंदू’ में लिखा है कि कट्टरपंथी मुस्लिम संगठनों के अत्याचार से तंग आकर 1974 से 1991 के बीच रोज औसतन 475 लोग यानी हर साल एक लाख 73 हजार 375 हिंदू हमेशा के लिए बांग्लादेश छोड़ने को बाध्य हुए। यदि उनका पलायन नहीं हुआ होता तो आज बांग्लादेश में हिंदू नागरिकों की आबादी साढ़े तीन करोड़ होती।

सांप्रदायिक उत्पीड़न, सांप्रदायिक हमले, नौकरियों में भेदभाव, दमनकारी शत्रु अर्पित संपत्ति कानून और देवोत्तर संपत्ति पर कब्जे ने बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों को कहीं का नहीं छोड़ा है। सलाम आजाद ने लिखा है कि बांग्लादेश के हिंदुओं के पास तीन ही रास्ते हैं-या तो वे आत्महत्या कर लें या मतांतरण कर मुसलमान बन जाएं या पलायन कर जाएं। सलाम आजाद ने अपनी कृति ‘शर्मनाक’ में लिखा है कि अल्पसंख्यक समुदाय के पिता के सामने बेटी के साथ और मां-बेटी को पास-पास रखकर दुष्कर्म किया गया। दुष्कर्मियों की पाशविकता से सात साल की बच्ची से लेकर साठ साल की वृद्धा तक को मुक्ति नहीं मिली। बांग्लादेश से हिंदुओं को नेस्तनाबूद कर वहां उग्र इस्लामी तथा तालिबानी राजसत्ता कायम करने के मकसद से हिंदुओं पर चौतरफा अत्याचार किया गया। 

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