वाराणसी: अब बीएचयू प्रकरण के उलझे तार खुलने लगे हैं। लखनऊ से लेकर दिल्ली तक यह इल्म होने लगा है कि बीएचयू के कुलपति वामपंथ और कथित प्रगतिशील ताकतों के शिकार हो गये। बनारस में कुलपति के कार्यकाल के अंतिम महीने में जो कुछ हुआ वह महज इसलिए था ताकि उन्हें यहां दूसरा कार्यकाल न हासिल हो सके। कुलपति के खिलाफ धरना प्रदर्शन व आन्दोलन का यह पहला मौका नहीं था। बल्कि जिस समय प्रो. गिरीश चंद्र त्रिपाठी कुलपति बनकर गये थे उस समय भी बीएचयू में छात्र आन्दोलन उग्र था। सौ से अधिक बच्चे अस्पताल में भर्ती थे। इनमें सात आईसीयू में थे एक की मृत्यु हो गई थी। विश्वविद्यालय के सात छात्रावासों में पीएसी रुकी थी। पर गिरीश चंद्र त्रिपाठी सीधे सर सुन्दर लाल अस्पताल में भर्ती छात्रों के बीच गये थे। आन्दोलन को उन्होंने खत्म कराया। लेकिन जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बनारस दौरे पर थे तब बीएचयू में एक लडक़ी के साथ हुई छेड़छाड़ मामले में जेएनयू तक के लोग आग जला उसमें हाथ सेंकने चले आये। किसी भी तरह का यह पहला आन्दोलन है जिसमें पीडि़ता की कोई शिकायत नहीं है लेकिन कुनबे की सियासत इस कदर परवान चढ़ी कि गिरीश चंद्र त्रिपाठी के हटने के बाद भी बीएचयू की अशांति कम होने का नाम नहीं ले रही है। इसी पर प्रस्तुत है अपना भारत की विशेष रिपोर्ट
महामना की बगिया यानी काशी हिन्दू विश्वविद्यालय। बहुत दिनों बाद इस बगिया को ऐसा माली मिला जिसमें सलीका, संस्कार, समर्पण व सेवाभाव सबकुछ था, लेकिन दुष्चक्र रचने वालों को यह रास नहीं आया। ऐसे लोगों ने बीएचयू में तमाम अच्छे काम करने के बावजूद प्रो.गिरीश चंद्र त्रिपाठी की छवि बिगाडऩे के लिए कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी। यही कारण है कि अंतिम समारोह में प्रो.त्रिपाठी की आंतरिक पीड़ा झलकी। उन्होंने संक्षेप में अपने अच्छे काम गिनाए और बीएचयू को विश्व के सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालयों की श्रेणी में लाने के लिए प्रयास करने का आह्वान किया।
अपने विदाई समारोह में उन्होंने कहा कि महामना पंडित मदनमोहन मालवीय की विरासत के अनुरूप मैंने बीएचयू की मनोयोगपूर्वक सेवा की है। विश्वविद्यालय के राष्ट्रीय चरित्र को मजबूती दी है। खचाखच भरे के.एन. उडप्पा सभागार में प्रो.गिरीश चन्द्र त्रिपाठी ने कहा कि मैंने विश्वविद्यालय के 84 फीसदी से ज्यादा शैक्षणिक पदों को मेरिट के आधार पर देश के विभिन्न राज्यों के योग्यतम शिक्षकों का चयन करके भरा, केरल, तमिलनाडु, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, मिजोरम से लेकर जम्मू- कश्मीर, पंजाब, गुजरात, महाराष्ट्र तक के शिक्षकों, कर्मचारियों एवं विद्यार्थियों को लेकर विश्वविद्यालय में शैक्षणिक माहौल इतना उन्नत किया कि यह विश्वविद्यालय देश के सर्वोच्च तीन विश्वविद्यालयों की श्रेणी में शामिल हुआ। मैंने अपनी पूरी शक्ति से विश्वविद्यालय को उसकी गरिमा के अनुरूप आगे बढ़ाने का प्रयत्न किया। प्रो.त्रिपाठी ने कहा कि अब यह यहां मौजूद लोगों की जिम्मेदारी है कि वे इस विश्वविद्यालय को संसार के सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालयों की श्रेणी में शामिल कराएं।
मैंने परिसर में सभी के सहयोग से मालवीय कैंसर अस्पताल एवं रिसर्च सेन्टर, मालवीय गंगा, नदी विकास शोध केन्द्र, भारत अध्ययन केन्द्र, पर्यावरण एवं धारणीय विकास संस्थान समेत दर्जनों की संख्या में शोधपरक नवीन केन्द्र स्थापित किए। आने वाले समय में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय परिसर सोलर ऊर्जा आच्छादित देश का पहला विश्वविद्यालय होगा। 12 दिन तक किसी विश्वविद्यालय परिसर में पहली बार सफलतापूर्वक राष्ट्रीय संस्कृति महोत्सव का आयोजन हुआ जिसमें करीब 2000 बड़े कलाकारों ने तथा लाखों दर्शकों ने हिस्सा लिया। वसंत पंचमी के अवसर पर झांकियां निकालने की परंपरा की दोबारा शुरुआत हुई। उन्होंने बीएचयू में समय से प्रवेश तथा सेमेस्टर परीक्षा के साथ-साथ शिक्षण एवं शोध की दिशा में किए गए उत्कृष्ट कार्यों के लिए विश्वविद्यालय के शिक्षकों, कर्मचारियों व छात्र-छात्राओं को बधाई दी।
प्रो.त्रिपाठी ने बीएचयू को नई दिशा दी
विश्वविद्यालय के कई वरिष्ठ शिक्षकों का कहना है कि यदि कोई कुलपति ऐसा हो जिसने दो वर्षों में ही विश्वविद्यालय की काया पलटने का प्रयत्न किया हो तो वह कई लोगों की आंखों में काफी खटकेगा। लोग चाहेंगे कि इसे चुनाव के समय न रहने दिया जाए। दीक्षांत समारोह में परंपरागत भारतीय परिधान का समावेश, वसंत पंचमी स्थापना दिवस के मालवीय जी द्वारा शुरू किये हुए उत्सव को पुनस्र्थापित करना, दो इंस्टीट्यूट बनाना, रिक्त पदों को भरने के लिए योग्यतम अभ्यर्थियों को तरजीह, पूरे कार्यकाल को बेदाग रहते हुए सक्षमता से निभाना, मेडिकल सुविधाओं पर विशेष ध्यान देना और जनसंपर्क का कार्य तो इतना कि लोगों को मालवीय जी के समय के विश्वविद्यालय का स्मरण होने लगा। ये उपलब्धियां किसी एक कुलपति ने इतने कम समय में विश्वविद्यालय को नहीं दिया। इस विश्वविद्यालय की एक और बड़ी समस्या है। एक वर्ग तरह-तरह के भ्रम पैदा करता है। जब एक अच्छे कुलपति का कार्यकाल समापन की ओर आया तो प्रयत्न किया गया कि कहीं इस व्यक्ति को दूसरा कार्यकाल न मिल जाए।
प्रख्यात अर्थशास्त्री प्रो. त्रिपाठी की नियुक्ति नवंबर 2014 में एचआरडी मंत्रालय ने की थी। कुलपति बनने के बाद से ही उन पर संघ की विचारधारा को बीएचयू में थोपने का आरोप लगता रहा है। खासतौर से मैगसेसे पुरस्कार से सम्मानित संदीप पांडेय को हटाने के बाद से इस मामले ने तूल पकड़ लिया था। संदीप पांडेय का आरोप था कि उन्हें संघ की विचारधारा न मानने के कारण पद से हटाया गया। प्रो.त्रिपाठी पर बीएचयू में आरएसएस की यूनिट बनाने का आरोप लगा था। तब उन्होंने कहा था कि यूनिवर्सिटी कैंपस में आरएसएस की शाखा खोलने में कोई हर्ज नहीं है।
समर्थ ग्राम योजना के जरिए ग्रामीणों की मदद
जानकारों के मुताबिक प्रो.त्रिपाठी के कार्यकाल में महिला महाविद्यालय और राजनीति विज्ञान के छात्रों के दल ने समर्थ ग्राम योजना के तहत बनारस के गांवों में जागरूकता अभियान चलाया। यह दल ग्रामीणों तक केंद्र सरकार की योजनाओं को पहुंचाता था और उनकी मदद करता था। काशी हिंदू विश्वविद्यालय के समर्थ ग्राम अभियान में काशी विद्यापीठ ब्लाक के 100 गांवों को विश्वविद्यालय ने गोद लिया। विश्वविद्यालय के शिक्षकों एवं छात्रों ने लगभग 70 गांव में वृक्षारोपण, बीज वितरण, जैविक कृषि, शिक्षा पर कार्य किया। लगभग 20 मेडिकल कैंप गांवों में लगाए गए। बीएचयू में किसानों के लिए दो कार्यशालाएं आयोजित की गयीं।
स्वास्थ्य के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य
प्रो. त्रिपाठी के कार्यकाल में स्वास्थ्य के क्षेत्र मे काफी सराहनीय कार्य हुए। उन्हीं में से एक है 800 करोड़ रुपये के कैंसर संस्थान की नींव। प्रो. त्रिपाठी ने मुंबई के टाटा मेमोरियल के सहयोग से कैंपस में इस अस्पताल की नींव डाली। हालांकि इस परियोजना को लेकर केंद्र सरकार भी काफी गंभीर थी। इसके अलावा नवजात बच्चों के लिए सौ बेड के अलग अस्पताल का खाका भी खींचा गया। सर सुंदरलाल अस्पताल में डिजिटलाइजेशन के क्षेत्र में भी सरहनीय कार्य हुए।
सौर ऊर्जा के क्षेत्र में हुआ काफी काम
प्रो. त्रिपाठी की कोशिशों का ही नतीजा है कि बीएचयू देश का पहला शत प्रतिशत सौर ऊर्जा से संचालित परिसर होगा। इस दिशा में कैंपस में तेजी से काम हो रहा है। इसके अलावा पूरे कैंपस को वाई-फाई बनाने के लिए महत्वूर्ण कार्य किए गए।
महामना का सपना पूरा करने में लगे थे प्रो.त्रिपाठी : प्रो. शुक्ल
गोरखपुर विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति व बीएचयू के रसायन शास्त्र विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो.बेनी माधव शुक्ल का कहना है कि काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में अरसे बाद कोई सही काम हो रहा था। प्रो. जी.सी.त्रिपाठी वह सब कुछ करना चाह रहे थे जिसका सपना महामना ने देखा था। वर्षों से बंद वसंत पंचमी की पूजा का कार्यक्रम भी त्रिपाठी ने शुरू कराया। वह बीएचयू को वास्तव में विश्व पटल पर भारतीय मेघा की पराकाष्ठा के रूप में प्रस्तुत करना चाहते थे। उनका पूरा कार्यकाल बहुत अच्छा चल रहा था, लेकिन केवल दो दिनों की साजिश ने सबकुछ तबाह कर दिया। मैं प्रत्यक्षदर्शी हूं कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के कार्यक्रम के दिन यह साजिश रची गई। साजिश इतनी गहरी थी कि प्रधानमंत्री को अपना रास्ता बदलना पड़ा। यह बहुत दुखद है। बीएचयू जिस गरिमा की ओर बढ़ रहा था उसे बहुत ठेस लगी है।
बीएचयू को बदनाम किया गया : प्रो. पाण्डेय
बीएचयू के समाजशास्त्र विभाग के प्रो.ए.के.पाण्डेय के मुताबिक यह साजिश जितनी प्रो. जी सी त्रिपाठी के खिलाफ थी उससे ज्यादा बीएचयू को बदनाम करने के लिए रची गई। प्रो.त्रिपाठी वह सबकुछ कर रहे थे जो महामना ने सोचा था। वह विश्वविद्यालय को बहुत ऊंचाइयों पर ले जाना चाहते थे,लेकिन सबकुछ बिगाड़ा गया। मैं नहीं जानता कि जिस घटना के कारण यह सब किया गया वह घटना हुई भी या नहीं, लेकिन इसमें जिस तरह से स्टेट यानी जिला प्रशासन का हस्तक्षेप हुआ वह हतप्रभ करने वाला है। यह मामला विशुद्ध आंतरिक विश्विद्यालय का था। इसमें राज्य के हस्तक्षेप ने उन तत्वों को अवसर दे दिया जो छात्रों को बरगलाने में कामयाब हो गए। छात्र तो बहुत सीधा होता है। उसे सही और गलत की जानकारी होने में समय लगता है। बाहरी तत्वों ने इसी का फायदा उठाया और विश्वविद्यालय के बदनाम होने के साथ ही हुआ ही प्रो.त्रिपाठी के लिए भी अपमानजनक स्थिति पैदा हो गई। जो कुलपति स्वयं २४ घंटे परिसर में मौजूद रहता हो और सभी की बातें सुनता हो उसको इस तरह टॉर्चर करना इस साजिश को साफ-साफ दर्शाता है।
बीएचयू के विकास को रोकने की साजिश : प्रो. जैन
बीएचयू में प्राचीन इतिहास विभाग की प्रोफेसर प्रो.सुमन जैन ने कहा कि काशी हिन्दू विश्वविद्यालय भारत की गरिमा से जुड़ा है। महामना के मूल्यों पर स्थापित इस विश्वविद्यालय को बहुत से लोगों ने खराब करने की कोशिश की थी। प्रो. जी सी त्रिपाठी महामना के मूल्यों की स्थापना में लगे थे। विश्वविद्यालय में सांस्कृतिक मूल्यों की स्थापना हो रही थी। पठन-पाठन और शोध के साथ-साथ विश्वविद्यालय विभिन्न आयामों में आगे बढ़ रहा था। साजिशकर्ताओं ने सारी गति रोक दी। फिर से वह रफ्तार पकडऩे में बहुत समय लगेगा।