मंदिर में डकैत ददुआ, कुतिया और घोड़े, लेकिन रामलला अब भी तिरपाल में

Update:2016-02-05 13:35 IST

Sudhir Jha

लखनऊ. अयोध्या में रामलला अब भी तिरपाल के अंदर हैं। मुद्दा दशकों से राजनीति और कोर्ट की शरण में है। कोई नहीं बता सकता कि राममंदिर कब बनेगा। लेकिन इस बीच यूपी में आस्था के कई और रूप दिखे जो हैरान करने वाले हैं। कहीं कुतिया देवी की पूजा हो रही है तो कहीं लोग घोड़े से अपनी मन्नत मांग रहे हैं। अब तो दुर्दांत दस्यु ददुआ भी मंदिर में विराजमान हो चुके हैं। आइए आपको बताते हैं यूपी के कुछ अजीब मंदिरों के बारे में...

कुतिया देवी की मंदिर में हर दिन पूजा करते हैं लोग।

कुतिया देवी का मंदिर

मऊरानीपुर के रेवन गांव में सड़क के किनारे काले रंग की कुतिया की मूर्ति स्थापित करके छोटा सा मंदिर बनाया गया है। ये मंदिर एक चबूतरे पर हैं। आसपास के लोग इस मंदिर में आकर पूजा करते हैं। लोगों का कहना है कि कुतिया का मंदिर यहां के लोगों की आस्था का केंद्र है। कुतिया महारानी उनकी हर मनोकामना पूरी करती हैं। दशहरा और दीवाली पर यहां की पूजा का खास महत्व है।

क्या हैं मंदिर बनने की कहानी?

रेवन गांव के पास ही एक और ककवारा गांव है। दोनों गांवों के बीच में ये मंदिर बना हुआ है। कहा जाता है कि एक कुतिया इन दोनों गांवों में रहती थी। एक बार दोनों गांव में भोज था। कुतिया एक गांव पहुंची तो लोग खाना खा चुके थे। फिर वह दूसरे गांव में जाने लगी। लेकिन बीमार होने की वजह से वह दौड़ते-दौड़ते बहुत थक गई। भूख और बीमारी की वजह से उसने वहीं दम तोड़ दिया. गांव के लोगों ने कुतिया को उसी जगह पर दफना दिया। जिस जगह उसे दफनाया गया, वो स्थान पत्थर में तब्दील हो गया। लोगों ने इस चमत्कार को देखने के बाद वहां छोटा सा मंदिर बना दिया। कुछ साल बाद वहां पर उसकी एक मूर्ति भी स्थापित कर दी।

घोड़े के आगे सिर झुकाकर मन्नत मांगते हैं लोग।

महोबा में घोड़े का मंदिर

बुंदेलखंड के महोबा जिले में धिकवाहा गांव है। यहां लोग मन्नत पूरी कराने या पूरी होने पर घोड़ों के आगे सिर झुका रहे हैं। एक दो नहीं, बल्कि पूरे इलाके में घोड़ों के कई मंदिर हैं। इन मंदिरों में किसी भगवान की प्रतिमा होने के बजाए घोड़ों की बड़ी-बड़ी मूर्तियां हैं।

लोगों का मानना है कि घोड़ों के आगे सिर झुकाने पर भगवान घोड़े के माध्यम से उनकी मनोकामना पूरी करते हैं। यहां 500 से 1000 लोग हर सोमवार को पहुंचते हैं। मनोकामना पूरी होने पर लोग घोड़े की प्रतिमा स्थापित करते हैं।इस मंदिर में एक मोर की भी स्थापना की गई है।

क्यों बना घोड़ों का मंदिर

गांव के रहने वाले रघुराज बताते हैं कि जिस स्थान पर घोड़ों के मंदिर बनाए गए हैं, उस इलाके में एक सिद्ध बाबा रहा करते थे। लगभग 3 दशक पहले उनकी मौत हो गई तो गांव के ही बल्लू कुशवाहा बैठने लगे। माना जाता है कि बल्लू कुशवाहा लोगों की समस्याएं और उनकी मन्नत ईश्वर और सिद्ध बाबा तक हर सोमवार को पहुंचाते हैं। सिद्ध बाबा भविष्यवाणी के बाद एक किसान के बोरवेल में अचानक पानी आ गया था। जबकि कई साल से उसका कुआं सूखा पड़ा था। इसके बाद पता चला कि सिद्ध बाबा घोड़ों की स्थापना करने को कह रहे हैं। उक्‍त किसान के साथ ही अन्य लोगों की भी मनोकामनाएं पूरी हुई हैं। इसके बाद उन्होंने घोड़ों की प्रतिमा की स्थापना शुरू कराई।

मंदिर में लगेगी ददुआ और उसके परिवार की मूर्ति।

डाकू के आगे फिर झुकाएंगे सिर

चंबल घाटी में तीन दशक तक डकैतों की बादशाहत कायम रखने वाले कुख्यात डकैत शिवकुमार पटेल उर्फ ददुआ की मूर्ति 14 फरवरी को मंदिर में स्थापित कर दी गई। धाता में के नरसिंहपुर कबरहा गांव में अब भगवान के साथ-साथ ददुआ के माता-पिता, पत्नी और उसकी पूजा भी की जाएगी। डकैत ददुआ 9 लोगों का नरसंहार करने के बाद चर्चा में आया था। 2008 में पुलिस मुठभेड़ में वो मारा गया था।

ददुआ ने डाली थी मंदिर की नींव

ददुआ ने 2000 में फतेहपुर के धाता थानाक्षेत्र के कबरहा गांव में एक मंदिर की नींव डाली थी और 2016 में उसकी मूर्ति इस मंदिर में विराजमान हो गई। यहां राम-सीता, हनुमान और शिव की मूर्तियों रखी हुई हैं। इस मंदिर का निर्माण 2006 में पूरा होने के बाद भव्य समारोह हुआ था, जिसमें पुलिस की नजरों से बचते हुए ददुआ भी शामिल हुआ था। अब इस मंदिर में भगवान के साथ ददुआ के पिता स्व. रामप्यारे सिंह, मां स्व. कृष्णा देवी और पत्नी स्व. सियादेवी की मूर्ति भी स्थापित कर दी गई है।

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