पुस्तक समीक्षा: समाज के विभिन्न पहलुओं को बखूबी उकेरती है 'हंस के मोती'

बहुमुखी प्रतिभा के धनी कवि अभय परमहंस की कलम से जहां प्रेम परक व श्रृंगार की अनेक कविताएं प्रस्फुटित हुई हैं वहीं समाज के विभिन्न पहलुओं को भी बखूबी उकेरा गया है।

Update: 2020-10-31 17:04 GMT
अभय परमहंस की कलम से जहां प्रेम परक व श्रृंगार की अनेक कविताएं प्रस्फुटित हुई हैं वहीं समाज के विभिन्न पहलुओं को भी बखूबी उकेरा गया है।

मोती बीए, डॉ शम्भुनाथ सिंह, काका हाथरसी, सोम ठाकुर, गोपलदास नीरज, स्नेह लता ‘स्नेह‘, रमई काका, विकल साकेती़ सूंड फ़ैज़ाबादी, माधव मधुकर, बुद्धिनाथ मिश्र, गिरिधर करुण, संत शरण करुणेश आदि नामचीन कवियों के बीच साहित्यिक माहौल में संस्कारित बचपन व रक्त में महाकवि पिता परमहंस शुक्ल की घुली साहित्यिक प्रतिभा और लगभग चार दशक मुख्यधारा की पत्रकारिता की सतत तपस्या के बाद साहित्य जगत में जिस कवि का पदार्पण हुआ है, वह नाम है अभय परमहंस का। बहुमुखी प्रतिभा के धनी कवि की कलम से जहां प्रेमपरक व श्रृंगार की अनेक कविताएं प्रस्फुटित हुई हैं वहीं समाज के विभिन्न पहलुओं को भी बखूबी उकेरा गया है। कवि का सौंदर्य के प्रति अगाध प्रेम कई रचनाओं में मुखरित हुआ है। संयोग-वियोग के अनछुए विषयों को शब्द दिए गये हैं। देशप्रेम से ओतप्रोत रचनाएं और ज्वलंत समस्याओं को उठाती रचनाएं संग्रह में विविधता भरती हैं और सार्वग्राही बनाती हैं। आप कविता संग्रह का प्रारम्भ मुक्तकों से करते हैं और अपने प्रथम मुक्तक में अपने साहित्यिक अवतरण को कुछ इस तरह अभिव्यक्ति देते हैं।

‘जीवन के इस चौथेपन में आया युवा सोच का अंश।

मैंने कुछ भी नहीं किया बस जागा पिताश्री का वंश।

बचपन में जो भरा कूटकर पचपन में है बाहर आया।

मैं तो सिर्फ अभय हूँ मित्रों, परमहंस का हूँ अपभ्रंश।’

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संग्रह में समाहित पैंसठ से अधिक मुक्तकों में जीवन के विभिन्न पक्षों को उजागर किया गया है। कटु यथार्थ को व्यक्त करता मुक्तक देखें-

‘सीने में विष भरकर मीठा बोलना भी कला है।

ऐसे ही लोगों ने नज़दीकी रिश्तों को छला है।

आसानी से इनकी पहचान मुश्किल है यारों।

हंसके आपको ज़िंदा मार दें, ये वो बला हैं।

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कवि की मां पर असीम श्रद्धा है। मां के आशीष पर अटल विश्वास को प्रकट करता मुक्तक-

‘मुझे खज़ाना क्या करना जब माँ है मेरे पास।

उसके चरणों में बसते हैं धरती और आकाश।

मैया का जब हो आशीष दुख ना फटके पास।

काल भी आकर वापस लौटे अटल मेरा विश्वास’।

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हंस के मोती पुस्तक के लेखक: अभय परमहंस

अपने गीतों में जहां कवि ने सामाजिक चेतना, विद्रूपताओं, विडम्बनाओं को विषय बनाया है वहीं प्रेम के साथ-साथ मां की महिमा को कुछ इस तरह शब्द दिये हैं-

‘हम सब का पहला सिंहासन मां का आंचल,

इस धरती पर स्वर्ग है अपनी माँ का आँचल ’

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एक अलग तेवर का मुक्तक देखें-

‘सिर्फ लड़ना रोका है, अभी हारा नहीं हूं मैं।

ताक़त समेट रहा हूं, अभी टूटा नहीं हूं मैं।

अभी तो बहुत हिम्मत बाक़ी है, मेरे दुश्मन।

तुम्हें छोडूंगा-सोचना भी मत, भूला नहीं हूं मैं।

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जीवन की राह आसान रहे इसकी सीख देते कई मुक्तक हैं। उन्हीं में से एक पेश है-

‘सम्मान उसी का करो जो उसके लायक हो।

अपमान किसी का न करो भले ही नालायक हो।

कुछ काम ऊपर वाले पर भी छोड़ दिया करो।

क्या पता नालायक भी कभी जीवनदायक हो।’

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आतंकवाद, भ्रष्टाचार, बेरोज़गारी, महंगाई, हिंसा, साम्प्रदायिकता सहित तमाम विषयों के साथ अंतर्राष्ट्रीय विषयों पर भी आपने बहुत ही अधिकार के साथ कलम चलायी है। जीवन में संघर्ष के साथ निरंतर आगे बढ़ने का सन्देश देती कुछ रचनाएं देखिये -

‘जीवन है अनमोल इसे तुम चलने दो।

खुशियों का है जाम और भी भरने दो।

दर्द व दुश्मन भी आएंगे इसके आड़े।

इनसे डरकर कदमों को, न रुकने दो’।

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इस संग्रह में कवि का जो सबसे प्रबल पक्ष उभरकर सामने आता है वह है प्रेम। कुछ मुक्तक पेश हैं-

‘तू मेरे इश्क़ को इक अच्छी कहानी दे दे।

मैं गुज़र जाऊंगा तू इसको रवानी दे दे।

मैं तेरे प्यार में मर जाऊंगा, मालूम मुझे।

पर अभी ज़िंदा हूं, तू एक निशानी दे दे’।

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या.

‘जबसे तुम्हें देखा है मैंने।

बस तू ही तू दिल में दिखती है।

तू ही बता की मेरे दिल में कौन सी बस्ती है।

कि तू मेरे दिल में बसती है’।

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प्यार क्या है कुछ इस तरह देखिये-

प्यार तो रूठने मनाने का खेल है।

ये धन दौलत नहीं दो दिलों का मेल है।

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बात ही बात में बहुत ही सहजता से कितना बड़ा सन्देश देते हैं दृष्टव्य है-

ग़रीब की बेटी लाओ, सुख कम नहीं।

उसकी दुआएं भी दहेज़ से कम नहीं’।

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कवि का अपने देश से असीम अनुराग है और पूरब से और भी अधिक। संकलन में यह अनुराग बिखरा पड़ा है। एक बानगी-

‘सारे भारत में बजता है पुरबियों का डंका’

या

‘पूवार्ंचली पावन माटी में बड़े बड़े हैं शेर’

संग्रह में कई रचनाएं भोजपुरी में भी हैं।

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कवि अभय परमहंस ने इस संग्रह में कई गज़लें लिखीं हैं। खास बात है कि आपने शिल्प से कहीं अधिक भावाभिव्यक्ति को अहमियत दी है। जैसे-

‘हम दोनों अनजाने, फिर भी दिल ना माने।

आंखों-आंखों में ही देखो छलक रहे पैमाने’।

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कवि को जहां देश के गौरवशाली अतीत के प्रति असीम अनुराग है वहीँ राष्ट्रपिता व देशभक्तों के बलिदान के लिए कृतज्ञता है। वहीं देश के लोगों से आग्रह भी है की वह देश पर मर मिटने वालों के प्रति नतमस्तक हों, उन्हें श्रद्धा से विनत प्रणाम करें। कवि की कई रचनाओं में विसंगतियों, विकृतियों, विडम्बनाओं व आडम्बरों को लेकर क्षोभ व विद्वेलन हैं। तमाम जगह उनका आक्रोश सामने आता है।

आप की भाषा-शैली सहज है। खड़ी बोली के साथ-साथ कहीं-कहीं देशज, अवधी, भोजपुरी व बृज भाषा के शब्दों का प्रयोग भी देखने को मिलता है। अंग्रेजी के भी शब्द सहज रूप से आये हैं।

‘हंस के मोती’ एक विविध आयामी कृति है। जहां इसमें काव्य की विभिन्न विधाओं का समावेश है वहीं प्रकृति- चित्रण, प्रेम-गीत, देशभक्ति के गीत, लोकगीत व समसामयिक तमाम विषयों को भाव प्रवणता व शिल्प शौष्ठव के साथ व्यक्त करने का कौशल भी दृष्टिगोचर होता है।

यह संग्रह पाठकों/साहित्य प्रेमियों के मानस पर चिरकालिक प्रभाव छोड़ने में सफल होगा ऐसा विश्वास है।

पुस्तक: हंस के मोती

प्रकाशक: प्रखर गूंज पब्लिकेशन, दिल्ली

लेखक: अभय परमहंस

मूल्य: रुपया-250 मात्र

पुस्तक समीक्षक: हरि मोहन बाजपेई 'माधव' (वरिष्ठ साहित्यकार व पत्रकार)

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