PM मोदी ने सुनाई पिता के अलीगढ़ ताले वाले दोस्त की कहानी, क्या मुसलमानों के दिल में बन पाई जगह

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने पिता के अलीगढ़ वाले दोस्त का किस्सा सुनाया तो इसकी गूंज अल्पसंख्यक परिवारों के घर तक सुनी गई। मुस्लिमों को प्रधानमंत्री का यह अंदाज खासा पसंद आया है।

Written By :  Akhilesh Tiwari
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Published By :  Ashiki
Update:2021-09-14 20:49 IST

नरेंद्र मोदी (फोटो- @BJP4India Twitter)

PM Modi Father Aligarh Lock Story: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का अलीगढ़ का दौरा तो राजा महेंद्र प्रताप सिंह के सम्मान में बनने वाले विश्वविद्यालय के उद्घाटन से संबंधित था, लेकिन इस मौके पर उन्होंने अपने पिता के अलीगढ़ वाले मुस्लिम दोस्त के बारे में जो किस्सा सुनाया उसकी चर्चा चारों ओर है। इसे मुस्लिम समाज ने सकारात्मक तरीके से लिया है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अलीगढ़ के भाषण में सभी वर्ग व समाज के लिए कुछ न कुछ मौजूद था। उन्होंने राजा महेंद्र प्रताप सिंह और भाजपा नेता कल्याण सिंह का स्मरण किया तो ​हिन्दू मन वाले भाजपा कार्यकर्ताओं ने जमकर तालियां बजायीं। लेकिन जब उन्होंने अपने पिता के अलीगढ़ वाले दोस्त का किस्सा सुनाया तो इसकी गूंज अल्पसंख्यक परिवारों के घर तक सुनी गई। मुस्लिमों को प्रधानमंत्री का यह अंदाज खासा पसंद आया है।

आगरा के कारोबारी परिवार से वास्ता रखने वाले रेस्टोरेंट संचालक वहीद ने कहा कि प्रधानमंत्री ने जो बात कही है उस पर भरोसा होता है। अलीगढ़ के ताले को बेचने के लिए आस-पास के जिलों में रहने वाले परिवारों के लोग पूरे देश में घूमा करते थे। मेरे एक रिश्तेदार भी गुजरात, आंध्रप्रदेश और महाराष्ट्र जाया करते थे। दूसरे प्रदेश में उन्हें स्थानीय लोगों से ही मदद मिला करती थी। पहले लोग हिन्दू-मुस्लिम में इतना भेदभाव नहीं करते थे। प्रधानमंत्री ने जो किस्सा सुनाया है वैसा ही पहले होता रहा है।


दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रोफेसर अकील अहमद ने प्रधानमंत्री के भाषण पर अपनी प्रतिक्रिया में कहा कि प्रधानमंत्री ने अलीगढ़ में जो किस्सा सुनाया, वह उनके पिता जी और अलीगढ़ के मुस्लिम के बीच के प्रगाढ़ रिश्तों की गवाही देता है। मोदी जी ने यह किस्सा इसलिए सुनाया है कि वह चाहते हैं कि हिंदुस्तान में अलग-अलग मजहब के लोग मिल-जुलकर रहें। किसी भी तरह का भेदभाव अपने अंदर नहीं रखें ​क्योंकि हर इंसान ईश्वर का बनाया हुआ है। ईश्वर दुनिया के तमाम इंसानों से मोहब्बत करता है। वह यह समझता है कि यह हमारे अपने रचनाएं हैं। इस लिहाज से दुनिया के हर इंसान आपस में भाई हैं।

भारत का जो ​वसुधैव कुटुंबकम का दर्शन है। इस लिहाज से हिंदुस्तान में रहने वाला हर शख्स आपस में भाई है। एक-दूसरे से सहयोग व प्रेम करता है तो हिंदुस्तान दुनिया के तमाम विकसित देशों में सबसे आगे होगा। मोदी के इस बयान को सुनकर मुस्लिम समाज को भरोसा बढ़ा है कि प्रधानमंत्री सभी को साथ लेकर चलना चाहते हैं।

समाज के लोगों को समझ में आ रहा है कि अल्पसंख्यक के नाम पर उन्हें जो सब्जबाग दिखाया जाता था उसकी हकीकत क्या थी। अब कोई सब्जबाग नहीं दिखाया जा रहा है बल्कि जीवन की वह हकीकत बताई जा रही है जो आम हिंदुस्तानी जैसी है। मेरे भी अब्बा के रिश्ते भी अपने गांव-समाज में हिंदुओं के साथ इसी तरह मजबूत बने रहे हैं।


मु​सलमानों के दिल पर मरहम

प्रधानमंत्री के बयान को मुसलमानों के दिल पर मरहम माना जा रहा है। दिल्ली एनसीआर के पत्रकार शोएब ने कहा कि प्रधानमंत्री का यह बयान ऐसे समय में आया है जब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हर रोज मुसलमानों को घायल करने वाला अब्बाजान वाला बयान दे रहे हैं। हर मुसलमान अपने पिता को अब्बा कहता है। उसका सम्मान उसी तरह से है जैसे मोदी जी के पिता का या योगी आदित्यनाथ के पिता का है। लेकिन योगी आदित्यनाथ ने अब्बाजान को नकारात्मक तरीके से पेश किया है। ऐसे में जब मोदी जी अपने पिता के मुस्लिम दोस्त का जिक्र करते हैं तो यह बात आम मुसलमानों के दिल पर लगी चोट पर मरहम की तरह महसूस होती है। उम्मीद की जानी चाहिए कि यूपी के मुख्यमंत्री की मौजूदगी में जिस तरह मोदी जी ने यह किस्सा सुनाया है उसे सुनकर योगी जी का भी मन बदलेगा।

अलीगढ़ में प्रधानमंत्री मोदी ने क्या कहा ?

मुझे आज बचपन की एक बात करने का मन कर रहा है करीब 55 -60 साल पुरानी एक बात है, हम बच्चे थे। अलीगढ़ से यह ताले के जो सेल्समैन होते थे। एक मुस्लिम मेहरबान थे। वह हर 3 महीने हमारे गांव आते थे। अभी मुझे याद है कि वह काली जैकेट पहनते थे और सेल्समैन के नाते दुकानों में अपना ताला रखकर जाते थे और 3 महीने बाद लौट कर अपना पैसा लेते थे। गांव के अगल बगल के गांव में भी व्यापारियों के पास जाते थे। उनको भी ताले देते थे और मेरे पिताजी से उनकी बड़ी अच्छी दोस्ती थी और वह आते थे तो चार- छह दिन हमारे गांव में रुकते थे और दिन भर जो पैसे वह वसूल कर लाते थे तो मेरे पिताजी के पास छोड़ देते थे और मेरे पिताजी उनके पैसों को संभालते थे और चार - छह दिन बाद जब वह मेरा गांव छोड़कर जाते थे तो मेरे पिताजी के पास रखे पैसे लेकर ट्रेन से निकल जाते थे।

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