Jhansi News: भारतीय साहित्य पूरी दुनिया में उत्कृष्ट: प्रो. त्रिभुवन नाथ शुक्ल
Jhansi News: प्रो. त्रिभुवन नाथ शुक्ला ने कहा कि एक हजार कवि पर एक आलोचक पैदा होगा। गिरोहबंद लोग प्राध्यापकीय आलोचना पर अनर्गल टिप्पणी किया करते हैं। सभी को वीर सावरकर की पुस्तक 1857 पढ़नी चाहिए। उन्होंने कहा कि जब कोई विदेशी विद्वानों का उदाहरण देता है, तो मुझे अफसोस होता है।
Jhansi News: प्रो. त्रिभुवन नाथ शुक्ला ने कहा कि हम शास्त्रार्थ की परंपरा के लोग हैं। हमारा साहित्य दुनिया के साहित्य से उत्कृष्ट है। यह बात उन्होंने बुंदेलखंड विश्वविद्यालय में आयोजित दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय सृजनात्मक लेखन कार्यशाला में कहीं। उन्होंने कहा कि एक हजार कवि पर एक आलोचक पैदा होगा। गिरोहबंद लोग प्राध्यापकीय आलोचना पर अनर्गल टिप्पणी किया करते हैं। सभी को वीर सावरकर की पुस्तक 1857 पढ़नी चाहिए। उन्होंने कहा कि जब कोई विदेशी विद्वानों का उदाहरण देता है, तो मुझे अफसोस होता है। दुनिया की किस संस्कृति में श्रीरामचरितमानस, रामायण और शाकुन्तलम जैसा साहित्य है। उन्होंने कहा कि भारत ने अग्निधर्मा साहित्य का प्रवर्तन किया है। रचना के तह में निहित सृजनात्मकता ही आलोचना है। आलोचक किसी का नहीं होता है, आलोचना में तीन खेमे एक परंपरावादी, दूसरे प्रगतिवादी और तीसरे तलाशवादी हैं।
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लेखक, पाठक और आलोचक सभी एक दूसरे से गुथे हुएः डॉ. उमेश कुमार
कार्यक्रम के इस सत्र में मारिशस से आए डा. उमेश कुमार सिंह ने कार्यशाला के आयोजकों को बधाई दी। उन्होंने उम्मीद जताई कि निकट भविष्य में हिंदी यूएनओ की आधिकारिक भाषा बन जाएगी। उन्होंने कहा कि लेखक, पाठक और आलोचक सभी एक दूसरे से गुथे हुए हैं। आलोचना सकारात्मक होनी चाहिए नकारात्मक नहीं। सकारात्मक आलोचना से हम देश में अच्छे लेखक पैदा कर सकते हैं।
प्राध्यापकीय आलोचना से बाहर निकलें: रजनी गुप्ता
लखनऊ से आई लेखिका रजनी गुप्ता ने कहा कि एकेडमिक्स के लोगों ने आलोचना का कबाड़ा किया है, वो प्राध्यापकीय आलोचना से बाहर निकलें, आंख खोलकर साहित्य पढ़ें। उन्होंने लेखकों को युवाओं और समाज की जटिल समस्याओं से जुड़ने की सलाह दी। हैदराबाद से आए प्रो. आलोक पाण्डेय ने कहा कि वह एक सजग पाठक हैं। हम प्रतिष्ठित लोगों की समीक्षा देखकर फिल्में देख सकते हैं। आज हिंदी में नामवर आलोचक नहीं हैं, आज के साहित्य आलोचक भ्रष्ट हो गए हैं।
आज अधिकांश लोग आत्ममुग्ध दुनिया में जी रहेः प्रो. सिद्धार्थ शंकर
प्रो. सिद्धार्थ शंकर ने कहा कि वर्तमान में समाज और संस्कृति की आलोचना होने लगी है। जिस बहस में ‘मैं’ की अवधारणा होगी, वहां संघर्ष होगा। उन्होंने कहा कि विभिन्न युगों में वरिष्ठ साहित्यकारों को भी आलोचना को लेकर गहन चिंतन-मनन करना पड़ा है। आज का समय आलोचना के लिए संकटभरा है। आज अधिकांश लोग आत्ममुग्ध दुनिया में जी रहे हैं। लोग आलोचना को स्वीकार नहीं करते हैं।
कार्यक्रम में यह लोग रहे मौजूद
कार्यक्रम की शुरुआत में संयोजक प्रो. मुन्ना तिवारी ने सभी अतिथियों का स्वागत किया। इस सत्र में डा. प्रशांत मिश्रा, डा. श्वेता पाण्डेय, डा. श्रीहरि त्रिपाठी, डा. नवीन चंद्र पटेल, डा. सुनीता वर्मा, डा. द्युति मालिनी, डा. प्रेमलता श्रीवास्तव, डा. सुधा दीक्षित, डा. पुनीत श्रीवास्तव, डा. संतोष पाण्डेय, डा. विनम्र सेन सिंह, प्रो. गोपेश्वर दत्त, उमेश शुक्ल, डा. भुवनेश्वर मस्तानिया, डा. श्वेता दीप्ति, डा. मंचला झा, प्रो. संजीता वर्मा, प्रो. डिल्ली राम शर्मा समेत अनेक लोग उपस्थित रहे। संचालन डा. राम पाण्डेय ने किया।