झांसी/पन्ना: बुंदेलखंड के अधिकांश गांवों में युवा बहुत कम नजर आते हैं। अगर यह कहा जाए कि ये गांव अब पूरी तरह बुजुर्गों और बच्चों के हवाले हैं तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। ज्यादातर जवान बेटा-बहू रोजी-रोटी की तलाश में गांव छोडक़र परदेस निकल गए हैं।
बुंदेलखंड के पन्ना से झांसी तक के लगभग 200 किलोमीटर के सडक़ मार्ग से गुजरने पर यहां के हालात समझे जा सकते हैं। बड़ी संख्या में खाली पड़े खेत मैदान जैसे नजर आते हैं। आलम यह है कि यह नजारा वहां तक होता है, जहां तक आपकी नजर देख सकती है। हां, कहीं-कहीं जरूर खेतों में हरियाली है। ये वे किसान हैं, जिन्होंने अपने खेत में ट्यूबवेल लगा रखे हैं और थोड़ा पानी मिल गया है।
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पन्ना जिले के बराछ गांव के रामनरेश साहू और उनकी पत्नी नीता को अपना घर छोडक़र दिल्ली जाना पड़ रहा है। नीता बताती है, गांव में पानी बचा नहीं, खेती हो नहीं सकती, मजदूरी भी करना चाहें तो काम नहीं है। इसलिए हम पति-पत्नी अपने सास-ससुर और बच्चों को देवर के जिम्मे छोडक़र जा रहे हैं। परिवार में किसी एक जिम्मेदार का होना आवश्यक है, लिहाजा हम दोनों ने गांव छोड़ दिया।
हालात का जिक्र करते हुए नीता की आंखें नम हो जाती हैं और गुस्सा भी चेहरे पर साफ पढ़ा जा सकता है। उसने कहा, अपना और बच्चों का पेट तो भरना ही है, साथ में उनकी पढ़ाई भी जरूरी है। किसी तरह पेट भरने का तो इंतजाम हो जाएगा, मगर बच्चों की पढ़ाई के लिए तो पैसा चाहिए ही। वरना घर के बुजुर्गों व बच्चों को छोडक़र जाने का मन किसका करता है।
रामनरेश कहता है, आदमी तो छोडि़ए, आने वाले दिनों में जानवरों के लिए पीने का पानी मिल जाए तो बहुत है। गांव के कुएं लगभग सूखने के कगार पर हैं, तालाबों में नाम मात्र का पानी बचा है, जो सक्षम लोग हैं वे तो अपनी जरूरतों का इंतजाम कर लेते हैं, मगर गरीब क्या करें। सरकार, प्रशासन सुनता नहीं, ऐसे में अच्छा यही है कि बाहर जाकर कुछ काम तलाशा जाए।
पूर्व सांसद और बुदेलखंड विकास प्राधिकारण के अध्यक्ष रामकृष्ण कुसमारिया ने पलायन की बात स्वीकार की। उन्होंने कहा, लोग काम की तलाश में बाहर जा रहे हैं, जहां तक गांव में काम उपलब्ध कराने की बात है तो यह जिम्मेदारी पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्रालय की है। गांव में ही काम मिल जाए, इसके प्रयास हो रहे हैं।
बुंदेलखंड में कुल 13 जिले आते हैं, जिनमें मध्यप्रदेश के छह जिले छतरपुर, टीकमगढ़, पन्ना, दमोह, सागर व दतिया और उत्तर प्रदेश के सात जिले झांसी, ललितपुर, जालौन, हमीरपुर, बांदा, महोबा, कर्वी (चित्रकूट) शामिल हैं। यहां के मजदूर अमूमन हर साल दिल्ली, गुरुग्राम, गाजियाबाद, पंजाब, हरियाणा और जम्मू एवं कश्मीर तक काम की तलाश में जाते हैं। इस बार पलायन का औसत बीते वर्षों से कहीं ज्यादा है।
महोबा में बीते कई वर्षों से भूखों का पेट भरने के लिए ‘रोटी बैंक’ संचालित करने वाले तारा पाटकर का कहना है, पलायन तो यहां की नियति बन चुका है। जवान तो काम की तलाश में बाहर चले जाते हैं, मगर सबसे बुरा हाल बुजुर्गों व बच्चों का होता है, जो यहां रह जाते हैं। काम की तलाश के लिए जाने वालों के सामने भी समस्या होती है कि इन्हें ले जाकर करेंगे क्या।
बुंदेलखंड के जानकारों का मानना है कि आगे भी पलायन का यही दौर चला और युवा अपने बुजुर्ग मां-बाप तथा बच्चों का छोडक़र जाते रहे तो आने वाले दिनों में गांव का नजारा ही बदल जाएगा। हर तरफ असहाय बुजुर्ग और बच्चे ही नजर आएंगे। ऐसे में एक सवाल उठता है कि क्या इन असहायों को पानी और रोटी मिल पाएगी।
जख्मों पर गीत-संगीत का नमक
खजुराहो में सात दिन तक अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव की चकाचौंध रही। खजुराहो के राकेश अनुरागी (25) को खजुराहो महोत्सव से ज्यादा अपनी रोजी रोटी की चिंता है। उसने यह जरूर देखा है कि कई जगह सजावट है और गाडिय़ों की कतारें लगी हैं और कुछ संगीत की धुनें सुनाई देती हैं, मगर इससे हमारा क्या होगा, हमें तो रोजगार चाहिए, वह सरकार कर नहीं रही है, जो हो रहा है वह सब बड़े लोगों के लिए है। सात दिन तक चले तीसरे खजुराहो अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में दुनिया और देश के कई बड़े कलाकार जिनमें फ्रेंच अभिनेत्री मैरीने बरोजे, बॉॅलीवुड के जैकी श्राफ, शेखर कपूर, रमेश सिप्पी, मनमोहन शेट्टी, गोविंद निहलानी, रंजीत, प्रेम चोपड़ा, राकेश बेदी, सुष्मिता मुखर्जी सहित कई अन्य कलाकारों ने हिस्सा लिया। साथ ही विभिन्न देशों से आए कलाकारों ने अपनी प्रस्तुतियां दीं।
यह समारेाह मध्य प्रदेश के संस्कृति, पर्यटन, शहरी विकास, जनसंपर्क विभाग ने मिलकर आयोजित किया था। स्थानीय बुद्धिजीवी रवींद्र व्यास कहते हैं, राज्य में तो किसान हितैषी सरकार है, फिर यह आयोजन कैसे हुआ यह बड़ा सवाल है। खजुराहो से निजामुद्दीन जाने वाली गाड़ी में हर रोज एक से डेढ़ हजार मजदूर पलायन कर रहे हैं, जो हालात को बताने के लिए काफी हैं। आखिर यह आयोजन किसके लाभ के लिए और किसकी मर्जी से हुआ? सागर संभाग के आयुक्त आशुतोष अवस्थी ने बताया, मजदूरों को काम दिलाने के प्रयास हो रहे हैं, वहीं पानी को किस तरह रोका जाए ताकि आने वाले दिनों में इस समस्या को कम किया जा सके इसके लिए किसानों की कार्यशाला आयोजित की जा रही है। इस कार्यशाला में किसानों को विशेषज्ञ प्रशिक्षित करेंगे। विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह का कहना है कि शिवराज सिंह चौहान सरकार को किसान मजदूर की चिंता नहीं है तभी तो लगभग पांच लाख लोग काम की तलाश में राज्य से पलायन कर गए हैं।
रोजाना 5,000 से ज्यादा लोग कर रहे पलायन
बुंदेलखंड के किसी भी रेलवे स्टेशन और बस स्टैंड का नजारा इन दिनों कुछ बदला हुआ है। हर तरफ सिर पर गठरी, कंधे पर बैग और महिलाओं की गोद में बच्चे नजर आते हैं। ये वे परिवार हैं, जो रोजी-रोटी की तलाश में गांव छोड़ चले हैं। बुंदेलखंड से हर रोज 5000 से ज्यादा लोग पलायन कर रहे हैं।
देश में बुंदेलखंड की पहचान सूखा, पलायन, भुखमरी, बेरोजगारी और गरीब इलाके के तौर पर बन गई है। यहां से रोजगार की तलाश में पलायन आम बात हो गई है, मगर इस बार के हालात पिछले सालों की तुलना में बहुत बुरे हैं। सरकारी नौकरी, खेती, मजदूरी के अलावा आय का कोई अन्य जरिया यहां के लोगों के पास है नहीं। खेती होने से रही, मजदूरी मिल नहीं रही, उद्योग है नहीं, ऐसे में सिर्फ एक ही रास्ता है पलायन।
पन्ना जिले बराछ गांव से दिल्ली मजदूरी के लिए जा रहे बसंत लाल (24) ने कहा, खेती की जमीन है, मगर पानी नहीं है। काम भी नहीं मिलता, नहीं तो मजदूरी के लिए गांव में ही रुक जाते। घर तो मजबूरी में छोड़ रहे हैं, किसे अच्छा लगता है अपना घर छोडऩा। बसंत के साथी पवन बताते हैं कि उनके गांव में एक हजार मतदाता हैं। इनमें से चार सौ से ज्यादा काम की तलाश में गांव छोड़ गए हैं। यही हाल लगभग हर गांव का है। सरकार, प्रशासन को किसी की चिंता नहीं है। चुनाव आ जाएंगे तो सब गांव के चक्कर लगाएंगे, इस समय वे समस्या में हैं, तो कोई सुनवाई नहीं है।
खजुराहो रेलवे स्टेशन के कुली राजकुमार पांडे बताते हैं, खजुराहो से निजामुद्दीन जाने वाली गाड़ी में हर रोज कम से कम हजार लोग काम की तलाश में जाते हैं, यह सिलसिला दिवाली के बाद से ही चल रहा है। लगभग दो माह में सिर्फ इस एक गाड़ी से लगभग 60,000 से ज्यादा लोग अपना घर छोडक़र चले गए हैं।
जल-जन जोड़ो अभियान के राष्ट्रीय संयोजक संजय सिंह ने कहा, बुंदेलखंड आजादी से पहले एक-दो दफा अकाल के संकट से जूझा है, मगर बीते तीन दशकों में तो हालात बद से बदतर होते गए। औसतन हर तीसरे साल में सूखा पड़ा, वर्तमान में तो लगातार तीन साल से सूखा पड़ रहा है। इसकी वजह जल संरचनाओं तालाब, कुएं, बाबड़ी, चौपरा आदि पर कब्जे हो जाना या उनका ठीक तरह से रखरखाव न होना है। इस इलाके में 700 मिलीमीटर बारिश हुई, पानी रोका नहीं गया और दिसंबर में हाल यह है कि लोगों को पीने के पानी के संकट से जूझना पड़ रहा है। सिंह का कहना है कि इस इलाके के रेलवे स्टेशन हों या बस स्टैंड, यहां पर आपको रोजी-रोटी की तलाश में पलायन करने वाले मजदूरों के समूह साफ नजर आ जाते हैं। आलम यह है कि रोजाना लगभग 5000 मजदूर यहां से पलायन कर रहे हैं। कई गांव तो ऐसे हैं, जहां से 25 से 30 फीसदी लोग पलायन कर गए हैं।
मध्य प्रदेश सरकार ने बुंदेलखंड के सभी छह जिलों की तहसीलों को सूखाग्रस्त घोषित कर दिया है, और आपदा पीडि़तों के लिए राशि भी मंजूर की है, मगर उन लोगों के लिए राहत कार्य शुरू नहीं हुए हैं, जिनकी जिंदगी मजदूरी से चलती है।