इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा-'गिरफ्तारी से पहले भी दे सकते हैं अग्रिम जमानत, चाहे आरोप पत्र दाखिल क्यों न किया गया हो'

Allahabad HC: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने बड़ा बयान दिया है। अदालत ने कहा, 'अग्रिम जमानत याचिका को इस आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता कि चार्जशीट दायर की जा चुकी है या कोर्ट ने अपराध का संज्ञान लिया है।'

Update:2023-06-19 17:13 IST
इलाहाबाद हाईकोर्ट (Social Media)

Prayagraj News : इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) का अग्रिम जमानत पर बड़ा फैसला आया है। हाईकोर्ट का कहना है कि, अभियुक्त की गिरफ्तारी से पहले भी अग्रिम जमानत (Anticipatory bail) दी जा सकती है।
चाहे आरोप पत्र ही दाखिल क्यों न कर दिया गया हो। जब तक आवेदक को गिरफ्तार नहीं किया जाता है, तब तक किसी भी समय अग्रिम जमानत दी जा सकती है।'

आपको बता दें, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने हाल ही में कहा है कि, 'एक अभियुक्त द्वारा दायर अग्रिम जमानत आवेदन (Anticipatory Bail Application) को इस आधार पर कभी भी खारिज नहीं किया जा सकता कि, इस मामले में आरोप पत्र दायर किया जा चुका है या संबंधित अदालत ने इसका संज्ञान लिया है।'

अग्रिम जमानत पर क्या कहा हाईकोर्ट ने?

जस्टिस नलिन कुमार श्रीवास्तव (Justice Nalin Kumar Srivastava) की खंडपीठ ने इस बात पर जोर देते हुए कि, 'जब तक आवेदक को गिरफ्तार नहीं किया जाता, तब तक किसी भी समय अग्रिम जमानत दी जा सकती है। जस्टिस श्रीवास्तव ने कहा, 'भले ही चार्जशीट दायर की जा चुकी हो और अभियुक्त के खिलाफ अदालत द्वारा संज्ञान लिया गया हो, जिसे जांच के दौरान गिरफ्तार होने से छूट मिली हुई है या किसी सक्षम अदालत के आदेश के माध्यम से उसे अग्रिम जमानत देकर उसे सुरक्षा दी गई हो या सीआरपीसी की धारा 41-ए (CRPC Section 41-A) के तहत जांच अधिकारी द्वारा नोटिस दिया गया हो। उसके द्वारा दी गई अग्रिम जमानत याचिका कानूनी रूप से सुनवाई योग्य है।'

क्या है मामला?

बेंच ने कहा, IPC और दहेज निषेध अधिनियम (Dowry Prohibition Act) की विभिन्न धाराओं के तहत दर्ज 3 आरोपियों (शिकायतकर्ता के पति, ससुर और सास) की ओर से दायर अग्रिम जमानत याचिका को स्वीकार करते हुए ये व्यवस्था दी। आवेदकों (Petitioner) के खिलाफ चार्जशीट दाखिल होने के बाद सत्र न्यायालय (Sessions Court) ने उन्हें इस आधार पर अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया था कि, उनके खिलाफ चार्जशीट दायर की जा चुकी है। साथ ही, संबंधित कोर्ट ने इसका संज्ञान लिया है। सेशन कोर्ट के इस आदेश के खिलाफ आवेदक हाईकोर्ट चले गए।

आवेदक पढ़े-लिखे हैं, कभी नहीं मांगा दहेज़

दरअसल, आवेदकों ने मुख्यतः ये तर्क दिया था कि, वे सभी पेशे से पढ़े-लिखे व्यक्ति और डॉक्टर हैं। उनके द्वारा कभी भी दहेज की मांग नहीं की गई, जैसा उन पर आरोप लगाया गया है। शिकायतकर्ता के साथ कभी भी कोई क्रूरता या उत्पीड़न नहीं किया। दूसरी तरफ, राज्य के वकील ने ये तर्क दिया कि जांच के दौरान आरोपी आवेदकों के खिलाफ पर्याप्त सबूत एकत्र किए गए हैं।
जमानत नहीं देने का ये तर्क

आगे ये प्रस्तुत किया गया कि चार्जशीट दाखिल करने के बाद, जब उन्हें समन करने की प्रक्रिया जारी की गई तो वे कोर्ट के सामने पेश नहीं हुए। तब अदालत ने उनके खिलाफ गैर-जमानती वारंट जारी किया। बाद में CRPC की धारा- 82 के तहत प्रक्रिया शुरू की, जिसका अर्थ है कि उन्हें कोर्ट द्वारा फरार अपराधी घोषित किया गया। इसलिए, प्रेम शंकर प्रसाद बनाम बिहार राज्य (Prem Shankar Prasad Vs. State of Bihar) और अन्य एलएल 2021 एससी 579 के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार उन्हें अग्रिम जमानत नहीं दी जा सकती।

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