Chitrakoot News: बुन्देलखण्ड में नहीं है कोई केन्द्रीय विश्वविद्यालय या डीम्ड यूनिवर्सिटी, जानें वजह

Chitrakoot News: विकास के मूल आधार शिक्षा से ही बुन्देलखण्ड (Bundelkhand) प्रदेश में बहुत पिछड़ा है।

Report :  Zioul Haq
Published By :  Chitra Singh
Update: 2021-06-23 10:04 GMT

बुन्देलखण्ड (डिजाइन फोटो- सोशल मीडिया) 

चित्रकूट: विकास के मूल आधार शिक्षा से ही बुन्देलखण्ड (Bundelkhand) प्रदेश में बहुत पिछड़ा है। प्राइमरी से लेकर उच्च शिक्षा तक यहां सरकारों की उपेक्षापूर्ण नीति (Neglectful Policy) का खामियाज़ा नवयुवकों को भुगतना पड़ रहा है। शायद यही मजबूरी है कि न चाहते हुए भी युवा अपराध की ओर अग्रसर हो जाता है और जन्म होता है दुर्दान्त डकैतों का।

आजादी के बाद से बुन्देलखण्ड के साथ हमेशा सौतेला व्यवहार हुआ है। शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क, बिजली, पानी जैसी मूलभूत समस्याओं से घिरे रहने वाले इस क्षेत्र में शिक्षा की हालत सबसे ज्यादा दयनीय है। बेरोजगारी, गरीबी से त्रस्त इस क्षेत्र के सात जिलों चित्रूकट, बांदा, महोबा, हमीरपुर, झांसी, जालौन और ललितपुर में कुल 8960 प्राइमरी व पूर्व माध्यमिक विद्यालय है। जिनमें 25900 शिक्षकों पर शिक्षण का भार है।

कितने है बुन्देलखण्ड में विश्वविद्यालय

उच्च शिक्षा के लिए बुन्देलखण्ड में महज दो विश्वविद्यालय पहला बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय झांसी (राज्य वि.वि.) (Bundelkhand University Jhansi) और दूसरा जगद्गुरु रामभद्राचार्य विश्वविद्यालय चित्रकूट धाम (प्राइवेट वि.वि.) (Jagadguru Rambhadracharya University Chitrakootdham) ही संचालित है। सात जिलों में न तो कोई केन्द्रीय विश्वविद्यालय है और न ही डीम्ड यूनिवर्सिटी। अगर राष्ट्रीय महत्व वाले संस्थानों की बात करें, तो आईआईटी कानपुर व मोतीलाल नेहरु इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलाजी इलाहाबाद नामक दो ही संस्थान उत्तर प्रदेश में हैं। बुन्देलखण्ड इन संस्थानों की भी वर्षों से प्रतीक्षा में बांट जोह रहा है।

सामाजिक संस्था अखिल भारतीय बुन्देलखण्ड विकास मंच के राष्ट्रीय महासचिव नसीर अहमद सिद्दीकी की विश्वविद्यालय अनुदान आयोग नई दिल्ली के उपसचिव एससी चड्ढा ने आरटीआई के जवाब में दी गई सूचना के आधार पर बताया है। इसमें बताया गया है कि राज्य विधायिका अधिनियम द्वारा संचालित संस्थानों में संजय गांधी पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस केवल लखनऊ में है। जबकि पूरे देश में इस स्तर के महज़ 5 संस्थान हैं। कारण चाहे जो रहे हों, आजादी के बाद बुन्देलखण्ड के शिक्षा स्तर को सुधारने के लिए किसी राजनेता और सरकारों ने कोई पहल नहीं की। अन्यथा यहां के विश्वविद्यालयों की संख्या का प्रतिशत राष्ट्रीय व प्रदेश स्तर पर आधे प्रतिशत से भी कम न होता।

विश्वविद्यालयों का अभाव 

मेडिकल, इन्जीनियरिंग, प्रबंधन विश्वविद्यालयों का यहां अभी भी अभाव है। यहां इन विषयों के जो कॉलेज हैं भी, वहां स्टाफ और लैब सुविधाओं की वजह से विद्यार्थियों को कोई लाभ नहीं मिल पाता और प्रतिभावान होते हुए भी छात्र उन्नति नहीं कर पाते। बुन्देलखण्ड के प्राइमरी एवं जूनियर छात्रों की संख्या को यदि आधार माना जाये तो यहां 13445 विद्यालय और 41208 शिक्षक होने चाहिए थे। लेकिन विद्यालय यहां 8960 और अध्यापक महज़ 25900 ही हैं।

एबीबीएम के राष्ट्रीय महसचिव नसीर अहमद के सर्वे को माने, तो अभी भी बुन्देलखण्ड में तकरीबन 2.5 लाख बच्चे स्कूल जाने से वंचित हैं। सरकारी मशीनरी के लाख प्रयासों के बावजूद बाल मजदूरों की संख्या में तेजी से इज़ाफा हो रहा है। चाय, पान की दुकानों, बस अड्डा आदि में नवनिहाल आज भी गुटखे आदि बेचते नज़र आएंगे। बालश्रम कानून और शत्-प्रतिशत बच्चों का विद्यालय में नामांकन करने जैसी योजनाएं यहां शायद कागजों में ही संचालित होती है।

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