Chitrakoot: Rashtriye Ramayan Mela का हुआ समापन, जगदगुरु स्वामी रामस्वरूपाचार्य रहे मौजूद

Rashtriye Ramayan Mela Chitrakoot: समापन पर मंगलवार को कामदगिरि प्रमुख द्वार के महंत जगदगुरु स्वामी रामस्वरूपाचार्य ने पूजा अर्चना करते हुए कहा कि ऐसा मेला देश में कहीं नहीं होता।

Update:2024-03-12 20:58 IST

रामायण मेला में उपस्थित लोग। (Pic: Newstrack)

Chitrakoot: राष्ट्रीय रामायण मेले के समापन पर मंगलवार को कामदगिरि प्रमुख द्वार के महंत जगदगुरु स्वामी रामस्वरूपाचार्य ने पूजा अर्चना करते हुए कहा कि ऐसा मेला देश में कहीं नहीं होता। यह मेला अंतर्राष्ट्रीय स्तर का है। जिसकी सराहना कई देशों में होती है। उन्होंने चित्रकूट की भूमि को प्रेम की भूमि बताया। कहा कि अहंकार जीवन में आया तो उसे कोपभाजन का शिकार होना पडे़गा। चित्रकूट धाम की भूमि प्रभु श्रीराम का मन व उनके सभी अंग यहां की रज से जुडे हुए हैं।


चित्रकूट है विनम्रता की भूमि

इस भूमि को विनम्रता की भूमि बताया। यहां के निवासियों को विनम्र बनना पडेगा। श्रीराम ने कोल किरातों को पुत्र के रूप में स्वीकार किया था। भक्त मेंं जिज्ञासा की भूमि होना चाहिए। यह समर्पण की भूमि है। कहा कि मृत्यु के पूर्व जीवन की सारी गलतियां याद आती है। अयोध्या के लोग कैकेई को कालरात्रि बताते थे, लेकिन श्रीराम ने कैकेई को चित्रकूट आने पर राम वनवास के लिए दोषमुक्त किया। कामदगिरि पर्वत की महत्ता पर कहा कि जीवन के सारे दोष दर्शन मात्र से दूर होते हैं। श्रीराम ने चित्रकूट के कामदगिरि में तप किया था। जिसके चलते मात्र दर्शन से मानव के सब विषाद समाप्त होते हैं। राम और भरत मिलन के समय जहां चारो भाई पूर्व में बिछडे थे उनका सबका मिलन हुआ। वहीं विद्धत गोष्ठी में चेन्नई के डीजी वैष्णव कालेज के प्राध्यापक डा अशोक कुमार द्विवेदी ने कहा कि श्रीराम पर संदेह करना अपनी स्मिता पर संदेह करने के बराबर है। श्रीराम ने हर क्षेत्रीय संस्कृतियों व अधिकारों का सम्मान किया है। जिसे आज के समाज को सीखना है। श्रीराम ने किसी की संप्रभुता का हनन नहीं किया है। किसी के अधिकारों का हनन नहीं किया है। उन्होंने निषाद को सम्मान दिया। चाहते तो लक्ष्मण को आदेश देते और निषाद को पीछे हटना पड़ता, लेकिन निषाद के अधिकारों का अपमान होता। उनहोंने उनको पूरा सम्मान दिया। केवट का निहोरा लेते हैं। गंगा नदी को पार करना उनके लिए कोई मुश्किल काम नहीं था पर केवट के सम्मान को ठुकराना मुश्किल काम था। शबरी को मातृ तुल्य सम्मान दिया। यह सच है कि शबरी कौशिल्या जैसे राजशाही सुख राम को नहीं दे सकती थी पर उसे माता से बड़ा सम्मान दिया।

सूर्पनखा को मीनाक्षी संबोधित उपन्यास का विमोचन

रामायण मेला समारोह के समापन पर हैदराबाद की दूरदर्शन की पूर्व निदेशिका डा पुट्टपर्ति नागपदमिनी के उपन्यास मै मीनाक्षी हूं का विमोचन प्रख्यात साहित्यकार अनुसंधानकर्ता डा च्द्रिरका प्रसाद दीक्षित ललित ने किया। डा ललित ने कहा कि सूर्पनखा को लेकर लिखा गया यह पहला उपन्यास है। इस उपनयास में सूर्पनखा को मीनाक्षी कहा गया है। उसके ऊपर लगे हुए लांछनों को दूर कर नारी का सौन्दर्य और प्रेम की मनोभावना का मनोवैज्ञानिक चित्रण किया गया है। मुजफ्फर नगर के डा संजय पंकज ने कहा कि मनोवैज्ञानिक दृष्टि से विचार कर नए संदर्भो में प्रस्तुत करने की आवश्यकता होती है।


राजा जनक के विलाप पर बहने लगी अश्रुधारा

राष्ट्रीय रामायण मेला के समापन पर सांस्कृतिक कार्यक्रमों में श्रीकृष्ण रामलीला संस्था के कलाकारों ने धनुष यज्ञ लीला का मनोहारी मंचन किया। राजा जनक का विलाप सुन दर्शकों की आंखे भर आई। धनुष टूटते ही दर्शकों ने जय श्रीराम के जयघोष किए। परशुराम और लक्ष्मण संवाद देख दर्शक रोमांचित हो उठे। सुजाता केसरी प्रयागराज ने रामोत्सव पर नृत्य, कजली नृत्य, डेढ़िया नृत्य की प्रस्तुतिया दी। मेनका मिश्रा लखनऊ ने मनमोहक लोक गीत प्रस्तुत किए। बांदा से आई उभरती कथक नृत्यांगना अनुपमा त्रिपाठी अपनी प्रस्तुति से शमां बांध दिया।

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