Veer Savarkar Jayanti: वीर सावरकर पर बोले सीएम योगी, कांग्रेस ने बात मानी होती तो देश का नहीं होता बंटवारा

Veer Savarkar Jayanti: मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Chief Minister Yogi Adityanath) ने वीर सावरकर की जयंती पर आज उनके जीवन पर लिखी पुस्तक का विमोचन (Book Released) किया।

Update:2022-05-28 22:07 IST

लखनऊ: सीएम योगी ने वीर सावरकर की जयंती पर पुस्तक का विमोचन किया: Photo- Ashutosh Tripathi- Newstrack

Lucknow: मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Chief Minister Yogi Adityanath) ने वीर सावरकर की जयंती (Veer Savarkar's birth anniversary) पर आज उनके जीवन पर लिखी पुस्तक का विमोचन (Book Released) किया। राजधानी लखनऊ के इंदिरा गांधी प्रतिष्ठान में आयोजित कार्यक्रम में पुस्तक का विमोचन कर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सावरकर की प्रतिभा का वर्णन करते हुए कांग्रेस पर निशाना भी साधा।

सीएम योगी ने कहा कि वीर सावरकर की प्रतिभा को छिपाने के पहले अंग्रेजों ने कोशिश की, आजादी के बाद जिनके हाथों में सत्ता रही उन्होंने भी वही कार्य किया। सावरकर का गुणगान करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि अगर उनकी बातों को तत्कालीन कांग्रेस हुकूमत ने माना होता तो देश का बंटवारा नहीं होता। वीर सावरकर पर यह पुस्तक उदय महुरकर और चिरायु पंडित ने लिखी है।

Photo- Ashutosh Tripathi- Newstrack


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पोर्ट ब्लेयर की सेल्यूलर जेल में सावरकर की प्रतिमा

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई का जिक्र करते हुए कहा कि उन्होंने पोर्ट ब्लेयर की सेल्यूलर जेल में सावरकर की प्रतिमा लगवाई थी। जिसे कांग्रेस शासन आने के बाद हटा दिया गया। सावरकर बीसवीं सदी के महानायक थे। उनसे बड़ा क्रांतिकारी लेखक कवि कोई नहीं हुआ। वह सामान्य व्यक्ति नहीं थे लेकिन कांग्रेस की हुकूमत ने उनकी प्रतिभा और देश के लिए समर्पण को छुपाने का हर संभव प्रयास किया।

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सीएम योगी ने सावरकर की तारीफ करते हुए कहा कि उन्हें जो सम्मान मिलना चाहिए था वह नहीं मिला जेल की कालकोठरी में उनके पास लेखनी कागज ना होते हुए भी उन्होंने जेल की दीवारों पर नाखूनों से लिखने का कार्य किया था अंग्रेज उनसे सबसे ज्यादा भयभीत थे इसीलिए उन्हें कोठरी में रखा गया था।

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सीएम योगी ने कहा कि सावरकर ने हिंदू सनातन धर्मावलंबियों को उनकी पहचान की परिभाषा दी थी। लेकिन उनकी तुलना जिन्ना से कुछ लोगों ने की। जिन्ना की सोच संकुचित है, संकीर्ण है राष्ट्र को तोड़ने वाली है, जिन्ना भारत के विभाजन का कारक है, जबकि वीर सावरकर ने देश के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर कर दिया था।

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वीर सावरकर को जानिए?

विनायक दामोदर सावरकर का जन्म 28 मई 1883 को महाराष्ट्र (उस समय, 'बॉम्बे प्रेसिडेन्सी') में नासिक के निकट भागुर गांव में हुआ था। उनकी माता जी का नाम राधाबाई तथा पिता जी का नाम दामोदर पन्त सावरकर था। इनके दो भाई गणेश (बाबाराव) व नारायण दामोदर सावरकर तथा एक बहन नैनाबाई थीं। जब वे केवल नौ वर्ष के थे तभी हैजे की महामारी में उनकी माता जी का देहान्त हो गया। इसके सात वर्ष बाद सन् 1899 में प्लेग की महामारी में उनके पिता जी भी स्वर्ग सिधारे। इसके बाद विनायक के बड़े भाई गणेश ने परिवार के पालन-पोषण का कार्य संभाला। दुःख और कठिनाई की इस घड़ी में गणेश के व्यक्तित्व का विनायक पर गहरा प्रभाव पड़ा।

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विनायक की शिक्षा

विनायक ने शिवाजी हाईस्कूल नासिक से 1901 में मैट्रिक की परीक्षा पास की। बचपन से ही वे पढ़ाकू तो थे ही अपितु उन दिनों उन्होंने कुछ कविताएं भी लिखी थीं। आर्थिक संकट के बावजूद बाबाराव ने विनायक की उच्च शिक्षा की इच्छा का समर्थन किया। इस अवधि में विनायक ने स्थानीय नवयुवकों को संगठित करके मित्र मेलों का आयोजन किया। शीघ्र ही इन नवयुवकों में राष्ट्रीयता की भावना के साथ क्रान्ति की ज्वाला जाग उठी। सन् 1901 में रामचन्द्र त्रयम्बक चिपलूणकर की पुत्री यमुनाबाई के साथ उनका विवाह हुआ। उनके ससुर जी ने उनकी विश्वविद्यालय की शिक्षा का भार उठाया। 1902 में मैट्रिक की पढाई पूरी करके उन्होंने पुणे के फर्ग्युसन कालेज से बीए किया। इनके पुत्र विश्वास सावरकर एवं पुत्री प्रभात चिपलूनकर थी।

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वे भारत के महान क्रांतिकारी, स्वतंत्रता सेनानी, समाजसुधारक, इतिहासकार, राष्ट्रवादी नेता तथा विचारक थे। उन्हें प्रायः स्वातन्त्र्यवीर और वीर सावरकर के नाम से सम्बोधित किया जाता है। हिन्दू राष्ट्रवाद की राजनीतिक विचारधारा 'हिन्दुत्व' को विकसित करने का बहुत बड़ा श्रेय सावरकर को जाता है। वे एक वकील, राजनीतिज्ञ, कवि, लेखक और नाटककार भी थे।

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सावरकर ने हिन्दुत्व का शब्द गढ़ा

उन्होंने परिवर्तित हिन्दुओं के हिन्दू धर्म को वापस लौटाने हेतु सतत प्रयास किये एवं इसके लिए आन्दोलन चलाये। उन्होंने भारत की एक सामूहिक हिन्दू पहचान बनाने के लिए हिन्दुत्व का शब्द गढ़ा। उनके राजनीतिक दर्शन में उपयोगितावाद, तर्कवाद, प्रत्यक्षवाद मानवतावाद, सार्वभौमिकता, व्यावहारिकता और यथार्थवाद के तत्व थे। सावरकर एक कट्टर तर्कबुद्धिवादी व्यक्ति थे जो सभी धर्मों के रूढ़िवादी विश्वासों का विरोध करते थे। उनका निधन 26 फरवरी 1966 को हुआ था।

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