Loksabha 2024: अमेठी में राहुल गांधी ने बिना लड़े ही अपना किला छोड़ दिया, कांग्रेस का आत्मसमर्पण घातक साबित होगा

Loksabha Election 2024: 2004 से 2019 तक राहुल गांधी ने यहां की जिम्मेदारी संभाली। 2019 में अप्रत्याशित रूप से बीजेपी नेता स्मृति ईरानी ने अपराजेय समझे जाने वाले राहुल गांधी को शिकस्त देकर इतिहास रच दिया।

Written By :  Raj Kumar Singh
Update: 2024-05-03 06:59 GMT

Rahul Gandhi in Loksabha Election 2024 (Photo: Social Media)

Loksabha Election 2024: अंतत: अमेठी में कांग्रेस ने हथियार डाल ही दिए। वह भी बिना लड़े। भारतीय राजनीतिक इतिहास में ऐसे उदाहरण बहुत कम हैं जब किसी राजनीतिक दल ने इतनी आसानी से अपना दशकों पुराना दुर्ग किसी विपक्षी दल को सौंप दिया हो। वह भी लड़े बगैर। लगता यह है कि 2019 में चुनाव हारने के बाद राहुल गांधी का आत्मविश्वास काफी डगमगा गया है और बहुत सोचने विचारने के बाद उन्होंने यहां से हट जाने में ही भलाई समझी है।

बीजेपी इसे राहुल के पलायनवाद से जोड़ेगी

हालांकि अपेक्षा यह थी कि राहुल गांधी स्मृति ईरानी को फिर से चुनौती देंगे। लेकिन उनके हट जाने से बीजेपी बहुत उत्साहित है और वह राहुल गांधी को रणछोड़दास बताने से नहीं चूकेगी। बीजेपी इसे राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस के पलायन और हार मानने से जोड़ेगी।

कांग्रेसी कार्यकर्ता मायूस

राहुल के अमेठी से ना लड़ने से स्थानीय कांग्रेसी नेताओं, कार्यकर्ताओं और पार्टी के समर्पित मतदाताओं के हौसले भी टूटेंगे और भविष्य में इसके दुष्परिणाम कांग्रेस को झेलने होंगे। अमेठी अब आगे कांग्रेस का किला नहीं रह जाएगा, इसमें कोई शक नहीं है। राहुल गांधी के अमेठी से ना लड़ने से आईएनडीआई (INDIA Alliance) गठबंधन भी कमजोर हुआ है।

अखिलेश यादव से सीखना चाहिए था

राहुल गांधी को सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव से सीखना चाहिए था। 2019 में अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल याद कन्नौज से हार गई थीं और इस बार बदला चुकाने को अखिलेश खुद कन्नौज से मैदान में हैं।

1998 और 2019 को छोड़कर 1980 से लगातार कांग्रेस का अजेय किला था अमेठी

2019 के पहले की बात करें तो अमेठी एक ऐसा दुर्ग है जो 1980 से लगातार कांग्रेस के पास रहा। सिर्फ 1998 को छोड़कर। 1980 में संजय गांधी यहां से चुने गए थे। इसी साल उनकी वायु दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी। 1981 में यहां हुए उपचुनाव में संजय गांधी के बड़े भाई और इंदिरा गांधी के बड़े बेटे राजीव गांधी यहां से चुने गए। राजीव गांधी 1981 तक लगातार यहां से सांसद रहे। लेकिन 1991 में जब लिबरेशन टाइगर्स आफ तमिल ईलम (एलटीटीई) ने राजीव गांधी की हत्या कर दी तब इसी साल हुए उपचुनाव में गांधी नेहरू परिवार के खास सतीश शर्मा यहां से सांसद बने। 1996 के आम चुनाव में भी शर्मा ही चुने गए। लेकिन 1998 में भारतीय जनता पार्टी की ओर से चुनाव लड़े संजय सिंह ने सतीश शर्मा को हरा दिया। इसके बाद सोनिया गांधी 1999 से 2004 तक लगातार यहां से सांसद रहीं। 2004 से 2019 तक राहुल गांधी ने यहां की जिम्मेदारी संभाली। 2019 में अप्रत्याशित रूप से बीजेपी नेता स्मृति ईरानी ने अपराजेय समझे जाने वाले राहुल गांधी को शिकस्त देकर इतिहास रच दिया।

गांधी नेहरू परिवार के करीबी हैं किशोरी लाल शर्मा

इस बार 2024 के लोकसभा चुनाव में माना जा रहा था कि राहुल गांधी वायनाड के साथ साथ अमेठी से भी चुनाव लड़ेंगे। माना जा रहा था कि पांच साल बाद अमेठी की जनता फिर से उन्हें चुन सकती है। कांग्रेस और स्थानीय लोगों द्वारा राहुल गांधी से चुनाव लड़ने की मांग भी की जा रही थी। लेकिन कई दिनों की पशोपेश के बाद ऐन मौके पर राहुल गांधी की जगह किशोरी लाल शर्मा को अमेठी से मैदान में उतार दिया गया। किशोरी लाल शर्मा गांधी नेहरू परिवार के काफी करीबी हैं और अमेठी और रायबरेली में वह राहुल गांधी और सोनिया गांधी के चुनाव की कमान कई वर्षों से संभालते आ रहे हैं।

यूपी में कांग्रेस को धार देने में असफल रही है लीडरशिप

राहुल गांधी के अमेठी से न लड़ने के फैसले से उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की हालत समझी जा सकती है। पार्टी पूरी तरह से कनफ्यूजन का शिकार है। बतौर लीडर कांग्रेसी नेता जनता को आश्वस्त करने और लड़ाई के लिए तैयार करने में असफल रहे हैं। एक ऐसे प्रदेश में जहां कांग्रेस हाशिए पर है और अपने अस्तित्व के संकट से जूझ रही है वहां राहुल गांधी का अमेठी से पलायन इस संकट को और गहरा ही करेगा।

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