विवादों के अखाड़े में सियासत का तड़का, स्वयं निर्णय लेने में सक्षम है परिषद : नरेंद्र गिरि
लखनऊ: अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि 14 संतों को फर्जी घोषित करने के अखाड़ा परिषद के फैसले पर अडिग हैं। उनका कहना है कि अगर ऐसा कोई और संत सनातन धर्म के विरुद्ध आचरण करता पाया जाएगा तो कार्रवाई की जाएगी। शंकराचार्य स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती को उन्होंने शंकराचार्य ही मानने से इनकार कर दिया। कहा, उनका विवाद अदालत में है। वह क्या कहते हैं, वह जानें।
अब तो अखाड़ों के अपने आचार्य हैं। हम उनका आदेश मानते हैं। जब उनसे यह पूछा गया कि क्या किसी आचार्य ने आपको किसी को फर्जी संत घोषित करने को कहा था तो इस पर वह कुछ नहीं कह पाए। यह जरूर कहा कि अखाड़ा परिषद अपने निर्णय लेने के लिए समर्थ है। इस सवाल पर कि अखाड़े तो शंकराचार्य की सेना के रूप में हैं और सेनापति के आदेश के बिना कोई फैसला कैसे कर सकते हैं, महंत नरेंद्र गिरि ने कहा कि हम सक्षम हैं।
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शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के बाबत नरेंद्र गिरि का कहना था कि उन्होंने तो एक कुंभ मेले में खुद अखाड़ा परिषद को बुलाकर अनुरोध किया था वह उनके साथ शाही स्नान करना चाहते हैं। इस पर अखाड़ा परिषद ने उन्हें अवसर दिया था। यह पूछने पर ओम नम: शिवाय वाले बाबा ने कहा है कि अपने लिए गनर-शैडो बढ़वाने के चक्कर में नरेंद्र गिरि यह सब नाटक कर रहे हैं तो उनका कहना था कि यह आरोप निराधार है। जिन लोगों पर कार्रवाई होगी, वह तो अपने बचाव में कुछ न कुछ तो कहेंगे ही।
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आचार्य कुशमुनि के आरोपों पर उनका कहना था कि वह मनमुखी महात्मा हैं। पहले खुद को उदासी बताया, जब उदासियों ने खारिज किया तो अब दूसरी जगह का संत बताने लगे। रही बात गंगा के लिए काम करने की तो हम क्या सारे संत गंगा प्रदूषण के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे हैं। हरिचैतन्य जी के बाद हम लोग भी हाईकोर्ट गए।
अखाड़ा परिषद पर सवालों की बौछार
अखाड़ा परिषद ने जिन संतों को संत मानने से इनकार किया है, उनमें से कुछ ने अखाड़ा परिषद पर पलटवार करते हुए सवालों की बौछार की है और समाज के प्रति उनके योगदान के बारे में भी पूछा है। अखिल भारतीय दंडी संन्यासी प्रबंधन समिति के राष्ट्रीय प्रवक्ता आचार्य कुशमुनि अखाड़ा परिषद की कार्रवाई से न केवल खफा हैं बल्कि उन्होंने परिषद के अध्यक्ष नरेंद्र गिरि को घेरने की कोशिश की है। उन्होंने कहा कि नरेंद्र गिरि निजी तौर पर उनसे खुन्नस रखते हैं। उन्होंने अखाड़ा परिषद से कई सवाल पूछे हैं, जिनका जवाब आना बाकी है। सवाल इस प्रकार हैं-
हर कुंभ और अर्ध कुंभ में आप शाही स्नान करते हैं। शाही स्नान पर सरकार करोड़ों रुपये खर्च करती है। कुंभ चाहे, नासिक का हो, प्रयाग का हो, उज्जैन का हो या हरिद्वार का, आप अपने अखाड़ों की भरपूर ब्रांडिंग करते हैं, लेकिन जिस मां गंगा में शाही स्नान के नाम पर आप शासन-प्रशासन को ब्लैकमेल करते हैं उस मां गंगा को अविरल और निर्मल बनाये रखने के लिए परिषद की स्थापना के समय से अब तक क्या किया। किसी कुंभ मेले में कोई कार्यक्रम किया?
गंगा प्रदूषण के विरुद्ध जनहित याचिका प्रयाग के प्रतिष्ठित संत श्री हरिचैतन्य ब्रह्मचारी ने दाखिल की। उनकी याचिका के कारण इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गंगा प्रदूषण पर अनेक महत्वपूर्ण आदेश दिये हैं। यह याचिका २००३ में दायर हुई थी। श्री हरिचैतन्य ब्रह्मचारी दंडी संन्यासी प्रबंधन समिति की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में भी हैं। गंगा की अविरलता और निर्मलता को लेकर अनेक बार दंडी संन्यासियों ने आमरण अनशन किया। अखाड़ा परिषद ने अब तक क्या किया?
शंकराचार्य पीठों पर भी विवाद
अखाड़े विवादों से परे कभी नहीं रहे। हर काल में कुछ न कुछ विवाद होते रहे हैं, बस स्वरूप बदलता रहा है। पहले वैष्णवों और शैवों के बीच संघर्ष होता था, लेकिन अखाड़ा परिषद के गठन के बाद यह थम गया तो पदों को लेकर संघर्ष होने लगा। शायद ही कोई ऐसा कोई कुंभ मेला रहा हो जब अखाड़ों में किसी न किसी बात पर विवाद न हुआ हो। कभी शाही स्नान को लेकर तो कभी महामंडलेश्वरों की पदवी को लेकर।
कभी महंत और श्रीमहंत बनाने के लिए। कई बार नए अखाड़ों के गठन पर विवाद हुए तो अब परी अखाड़ा और किन्नर अखाड़ों के गठन को लेकर झगड़ा है। १९९५-९६ के प्रयाग के अर्धकुंभ मेले में स्वामी अखिलेश्वरानंद उर्फ अंगद जी ने चारों वर्णों के शंकराचार्यों को दीक्षा देने और सप्तपुरियों की महिला आचार्यों की पदवी देने को लेकर कदम उठाया तो बहुत विवाद हुआ था। शंकराचार्यों के पदों को लेकर तो मुकदमेबाजी चल ही रही है।
बदरिकाश्रम, द्वारिकापुरी , जगन्नाथपुरी और श्रृंगेरीपीठ ही आदि शंकराचार्य द्वारा गठित की गई पीठें हैं। लेकिन श्रृंगेरी को छोडक़र कोई भी ऐसी पीठ नहीं है। जहां दो से तीन संत अपने को वहां का शंकराचार्य बताने में चूकते हों। इसके अलावा कांचीकामकोटिपीठम, काशी सुमेरुपीठ, प्रयागपीठ आदि पीठें भी साधुओं ने स्वयं गठित कर ली हैं। और उनमें कई-कई शंकराचार्य विराजमान हैं। जानकारों की माने तो अब तक ६०-६५ संत अपने को कहीं न कहीं का शंकराचार्य होने का दावा करते हैं।
महंत ज्ञानदास
क्या समाज या सरकार ने परिषद से इस बात का अनुरोध किया कि आप किसी को असली या नकली बताने लगें। क्या किसी शंकराचार्य ने अखाड़ा परिषद को आदेश दिया है कि आप अमुक व्यक्ति को दंडित करें। अगर ऐसा नहीं है तो फिर अखाड़ा परिषद किस अधिकार से किसी को असली या नकली साबित कर रहा है।
महंत विमल देव आश्रम
भगवा चोले में कोई अपराध कर रहा है तो उसके लिए शासन और अदालत है जो उसे दंडित करेगी। फर्जी और असली होने की परिभाषा अखाड़ा परिषद कैसे तय सकता है। जिसे शासन ने पकड़ लिया है,अदालत ने अपराधी घोषित कर दिया है उसे कोई और कौन दंड दे सकता है। हम इस फैसले से असहमत हैं।
लाल महेन्द्र प्रताप
ओम नम: शिवाय समूह के संस्थापक लाल महेंद्र प्रताप भी अखाड़ा परिषद की सूची को लेकर खासे नाराज हैं। वे कहते हैं कि हम अपने को बाबा तो कहते नहीं। हम सेवा करते हैं। संत कौन है, कौन नहीं, यह अखाड़ा परिषद कैसे तय करेगा। नरेंद्र गिरि अपने शैडो-गनर बढ़ाने के लिए यह सब नाटक कर रहे हैं।
किन्नर अखाड़ा प्रमुख लक्ष्मी नारायण
लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी किन्नर अखाड़े के महामंडलेश्वर हैं। उन्होंने भी २०१६ में किन्नर अखाड़े के गठन की घोषणा कर दी थी। दावा यह किया कि उज्जैन महाकाल की नगरी है। शिव स्वयं अर्धनारीश्वर रूप में हैं इसलिए वह इस अखाड़े के महामंडलेश्वर हैं। इसके लिए उन्हें किसी से मान्यता की जरूरत नहीं है।
परी अखाड़ा प्रमुख त्रिकाल भवंता
उज्जैन के सिंहस्थ कुंभ 2016 में महिला संत त्रिकाल भवंता ने परी अखाड़े के गठन की घोषणा कर दी और खुद को उसका महामंडलेश्वर घोषित कर दिया। त्रिकाल भवंता ने महिला अधिकारों की बात उठाते हुए देश के शीर्ष पदों पर बैठे नेताओं को पत्र भी लिखे, लेकिन अखाड़ा परिषद ने इसे मान्यता नहीं दी।