सरकारी वकीलों की अपॉइंटमेंट में विसंगति का आरेाप, नियुक्ति संबधी रिकॉर्ड तलब

इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने कुछ राज्य विधि अधिकारियों की नियुक्तियों में विसंगतियों की शिकायत पर उनके नियुक्ति संबंधी रिकॉर्ड तलब किए हैं।

Update: 2017-11-21 13:51 GMT
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लखनऊ : इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने कुछ राज्य विधि अधिकारियों की नियुक्तियों में विसंगतियों की शिकायत पर उनके नियुक्ति संबंधी रिकॉर्ड तलब किए हैं। इसके साथ ही कोर्ट ने लिस्ट में महिलाओं को उचित प्रतिनिधित्व की शिकायत पर भी सरकार से उसका पक्ष जानना चाहा है। मामले की अगली सुनवाई 05 दिसंबर को होगी। यह आदेश जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस अब्दुल मोईन की बेंच ने स्थानीय वकील महेंद्र सिंह पवार की ओर से दायर जनहित याचिका पर पारित किया।

याची ने पूर्व में राज्य सरकार द्वारा गत 7 जुलाई को लखनऊ बेंच के लिए जारी 201 सरकारी वकीलों की लिस्ट को चुनौती दी थी। याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने 21 जुलाई को पाया था कि लिस्ट को तैयार करने में प्रकियात्मक खामियां थीं। जिसके बाद कोर्ट ने सरकार को उक्त लिस्ट को रिव्यू करने का आदेश दिया था।

रिव्यू करने के लिए राज्य सरकार ने महाधिवक्ता राघवेंद्र सिंह की अध्यक्षता में एक चार सदस्यीय कमेटी बनाई। लंबी कवायद के बाद 23 अक्टूबर को राज्य सरकार की ओर से इलाहाबाद और लखनऊ बेंच के लिए रिवाइज्ड लिस्ट सूची जारी की गई। लखनऊ बेंच के लिए इस बार 234 सरकारी वकीलों की लिस्ट जारी की गई है।

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याचिका में कुछ महिला वकीलों ने हस्तक्षेप अर्जी दाखिल कर सरकार पर आरेाप लगाया कि न तो 07 जुलाई की लिस्ट में और न ही 23 अक्टूबर की लिस्ट में महिला वकीलों को उचित प्रतिनिधित्व दिया गया। वहीं 23 अक्टूबर को जारी लिस्ट को भी चुनौती दी गई है।

याची की ओर से सरकार पर आरोप लगाया गया है कि लिस्ट बनाने मे चहेतों को वरीयता दी गई है। जिससे दो ऐसे लोगों विशाल अग्रवाल और अमर चौधरी को स्टैंडिग कौंसिल बना दिया गया है। जिनकी योग्यता भी उस पद के लिए पूरी नहीं थी। कहा गया कि चार सदस्यीय कमेटी ने लिस्ट बनाने के लिए कोई निश्चित प्रकिया तय नहीं की।

दरअसल, योगी सरकार बनने के बाद से ही इलाहाबाद और इसकी लखनऊ बेंच में करीब 800 सरकारी वकीलों को 07 जुलाई को हटा दिया गया था। इसके साथ ही करीब 500 नए वकीलों की नियुक्ति कर दी गई थी। आश्चर्यजनक रूप से एक ओर समाजवादी पार्टी (सपा) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के शासन काल के सरकारी वकीलों को हटाया गया।

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वहीं दूसरी ओर कई को फिर से नई लिस्ट में वापस ले आया गया। इसके चलते भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) में काफी घमासान मचा रहा।

07 जुलाई को जारी लिस्ट को रिव्यू कर 23 अक्टूबर को जो लिस्ट जारी की गई, उसमें भी बड़ी संख्या में सपा और बसपा काल के ही सरकारी वकीलों को बड़े पदों पर बहाल रखा गया और कुछ को बड़े प्रमेाशन भी दिए गए। हांलाकि, क्रिमिनल साइड के सरकारी वकीलों की लिस्ट सरकार बनने के करीब आठ महीने बाद भी नहीं जारी हो पाई है। शासकीय अधिवक्ता जैसे अति महत्वपूर्ण पद भी एक अपर महाधिवक्ता को चार्ज देकर काम चलाया जा रहा है।

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