गोरखपुर: गायों को लेकर भले ही सियासत हो मगर जमीन पर गोवंश का पुरसाहाल नहीं है। जबकि प्रदेश सरकार इनके संरक्षण पर करोड़ों रुपये खर्च कर रही है। शराब, टोल प्लाजा से लेकर मंडी शुल्क में गायों की देखरेख के लिए अतिरिक्त टैक्स लगाकर सरकार ने आम लोगों की जेब पर बोझ डाला है, लेकिन अफसरों ने इसे लूट-खसोट साधन बना रखा है। महराजगंज में गायों की मौत के बाद भी जिस प्रकार गायों के चारे पर लाखों खर्च हो रहे थे, वह गोवंश के संरक्षण की हकीकत को बयां करने के लिए पर्याप्त है।
दरअसल, अफसर गायों के चारे और शेड आदि सुविधाओं के नाम पर मिल रहे करोड़ों रुपये में अपना हिस्सा तलाश रहे हैं। गायों के चरने की जमीन को कारोबारियों को औने-पौने दामों पर देकर उपकृत कर रहे हैं। पूर्वांचल के सबसे बड़े गो-सदन मधवलिया में संदिग्ध हालात में गायब हुए 1584 गोवंश को लेकर सरकार की घेरेबंदी की जा रही है। सवाल यह उठ रहा है कि महराजगंज के जिलाधिकारी समेत छह अफसरों के निलंबन के बाद प्रदेश के बदहाल अन्य गो-सदनों के हालात में सुधार आएगा। बीते 14 अक्टूबर को मुख्य सचिव राजेन्द्र कुमार तिवारी ने मधवलिया गो-सदन में गोलमाल को लेकर डीएम महराजगंज अमरनाथ उपाध्याय, पूर्व एसडीएम देवेन्द्र कुमार, एसडीएम सत्यम मिश्रा, सीवीओ डॉक्टर राजीव उपाध्याय, डिप्टी सीवीओ डॉक्टर वीके मौर्य को संस्पेंड करने का ऐलान किया तो हडक़ंप मच गया। वहीं 15 अक्टूबर को निचलौल के बीडीओ रविन्द्र वीर यादव को भी संस्पेंड कर दिया गया।
सीएम की मंशा पर पानी फेर रहे अफसर
छह अधिकारियों के निलंबन से पूरे प्रदेश में यह संदेश देने की कोशिश की गई कि योगी सरकार गायों के संरक्षण को लेकर संजीदा है। इसमें कोई संदेह नहीं कि खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ गायों को लेकर प्रदेश की सत्ता पर आसीन होने के साथ संजीदगी दिखा रहे हैं। उनका पहला आदेश ही अवैध स्लाटर हाउस को लेकर था। योगी सरकार ने गायों की बेहतरी के लिए रोज नये-नये फरमान जारी कर रही है, लेकिन अफसर अपने ही मुख्यमंत्री की मंशा को कब्रगाह में दफन करने पर अमादा है। मंडलीय से लेकर जिला स्तर के अधिकारी गायों को लेकर सिर्फ कागजों में कवायद करते दिख रहे हैं। मधवलिया गो-सदन में गायों की संख्या को लेकर अफसरों का पाप शायद उजागर भी नहीं होता यदि सियासी अदावत में शिकायती लेटर बम का खेल नहीं होता।
गो सदन को लेकर खूब हुई सियासत
दरअसल, महराजगंज भाजपा दो खेमों में बंटी हुई है। सिसवा के विधायक प्रेम सागर पटेल और महराजगंज सांसद पंकज चौधरी के बीच खटास किसी से छिपा नहीं है। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में पंकज चौधरी के विरोध के बाद भी प्रेम सागर पटेल सिसवा के विधायक बने तो मधवलिया गो-सदन पर अपना आदमी बिठाने को लेकर सियासत शुरू हो गई। जिला प्रशासन के हस्तक्षेप के बाद प्रेम सागर पटेल को पसंद न आने वाले गो-सदन के मुखिया विमल पांडेय को दिसम्बर 2017 में हटा दिया गया। उनकी जगह विधायक ने अपने करीबी जितेन्द्र पाल को गो-सदन का चार्ज दिला दिया। जितेन्द्र के चार्ज लेते हुए गो-सदन की दुर्दशा की खबरें अखबारों में सुर्खियां बनने लगीं। दिसम्बर 2018 से लेकर जनवरी 2019 के बीच 100 से अधिक गायें ठंड से मर गईं जिसके बाद जनवरी 2019 में जिलाधिकारी अमरनाथ उपाध्याय ने जितेन्द्र पॉल को गो-सदन के अध्यक्ष पद से हटा दिया।
गो-सदन की जिम्मेदारी खुद डीएम की अध्यक्षता वाली कमेटी ने संभाली, लेकिन गायों के मौतों का सिलसिला नहीं थमा। बीते जून महीने में सात दिन के अंदर 57 गायों की मौत की खबरें स्थानीय मीडिया में छपीं तो जिलाधिकारी आगबबूला हो गए थे। डीएम ने गो-सदन की सुविधाओं को बेहतर करने के बजाय सूचनाओं पर ही सेंसरसिप से सबकुछ अच्छा दिखाने की कोशिशों में जुटे दिखे। जून महीने में हुई मौतों के बाद गोसदन का निरीक्षण करने पहुंचे सीडीओ पवन अग्रवाल ने उस रजिस्टर को ही हटवा दिया जिसमें मौतों का आकड़ा दर्ज होता था। बाद में रजिस्टर तत्कालीन एसडीएम देवेन्द्र कुमार ने अपने कब्जे में ले लिया। मौतों को लेकर पत्रकारों को भयभीत करने की कोशिशों के क्रम में जिला प्रशासन ने कुछ छोटे अखबारों के रिपोर्टरों के खिलाफ मुकदमा भी दर्ज कराया। जिलाधिकारी ने मुख्यमंत्री की नजरों में सबकुछ बेहतर दिखाने के लिए कुछ पत्रकारों को गो-सदन का निरीक्षण भी कराया था।
100 एकड़ जमीन देने से बिगड़ी बात
मधवलिया का गोलमाल शायद बाहर नहीं आता यदि जिलाधिकारी अमरनाथ उपाध्याय ने नियमों को ताक पर रखकर गो-सदन की 100 एकड़ से अधिक जमीन बड़ी डेयरी चलाने वाले गौतम पोद्दार को नहीं दी होती। जिला प्रशासन ने गौतम से जो एग्रीमेंट किया है उसके मुताबिक उन्हें 10 हजार रुपये प्रति एकड़ सालाना की दर से गो-सदन को भुगतान करना है। अपने करीबी जितेन्द्र पाल को हटाए जाने से नाराज चल रहे सिसवा विधायक प्रेम सागर पटेल ने इस मुद्दों को मुख्यमंत्री से लेकर विधानसभा तक में उछाला। इसके बाद कमिश्नर जयंत नार्लीकर के निर्देश पर अपर आयुक्त अजय कांत सैनी ने 12 अक्टूबर को गो-सदन की व्यवस्था की जांच की तो चौंकाने वाले तथ्य प्रकाश में आए। अपर आयुक्त की जांच में खुलासा हुआ कि गो-सदन के रजिस्टर पर 2534 गो-वंश की एंट्री हुई है, जबकि दस लेखपालों और अन्य कर्मचारियों की मौजूदगी में हुई गिनती में सिर्फ 954 गो वंश ही मिले। अपर आयुक्त अजय कांत सैनी का कहना है कि गो-सदन के जिम्मेदारों ने बताया कि अप्रैल से लेकर 12 अक्टूबर के बीच 884 गोवंश की मौत हो गई। इसे सच भी मान लिया जाए तो शेष गायें कहां गईं। प्रशासनिक अफसरों ने मौतों और कमियों को छुपाने के लिए गोलमाल किया है। मामले में चारा घोटाले से भी इनकार नहीं किया जा सकता है।
पशुओं का चारा खा गए अफसर
मधवलिया गो-सदन में जिस प्रकार चारे के नाम पर करोड़ों की बंदरबांट हुई है उसे देखते हुए यहां भी बड़ा चारा घोटाला होता हुआ नजर आ रहा है। गोरखपुर से मधवलिया भेजे गए पशुओं के चारे के लिए नगर निगम गोरखपुर पिछले आठ महीने में 1.51 करोड़ रुपये का भुगतान कर चुका है। वहीं गो-सदन में शेड के नाम पर भी 2.80 करोड़ का भुगतान हुआ है। आसपास के जिलों से भेजे गए पशुओं और खुद महराजगंज की गायों के नाम पर करोड़ों रुपये का भुगतान गो-सदन प्रशासन को हुआ है। ऐसे में सवाल उठता है कि जब मधवलिया में कागज पर दिखाए जा रहे पशुओं के सापेक्ष तिहाई पशु भी हकीकत में नहीं हैं तो उनके हिस्से का चारा कौन खा रहा था? गोसदन में कम मिली गायों पर प्रति महीने करीब 15 लाख रुपये खर्च हो रहे थे, ऐसे में सवाल उठ रहा है कि आखिर यह रकम किसकी जेब में पहुंच रही थी? पूर्व सांसद और सपा नेता अखिलेश सिंह का कहना है कि गो-सदन में व्यापारी, नेताओं और अफसरों की मिलीभगत से जो पाप हुआ है उसकी हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज से उच्चस्तरीय जांच होनी चाहिए। मुख्यमंत्री को गोसदन का निरीक्षण कर हकीकत से रूबरू होना चाहिए। मामले की उच्चस्तरीय जांच होगी तभी पता चलेगा कि गायों की तस्करी हुई या फिर उन्हें जमीन में दफन किया गया है।
नगर निगम नहीं करा रहा पशुओं की गणना
नगर निगम गोरखपुर की देखरेख में संचालित होने वाले कान्हा उपवन में भी गायों की संख्या को लेकर गोलमाल की आहट मिल रही है। नगर निगम प्रशासन के मुताबिक कान्हा उपवन में करीब 750 गोवंश हैं। वहीं कमिश्नर के कड़े रुख के बाद पशुपालन विभाग ने पिछले दिनों पशुओं की गणना की थी कि तो संख्या 650 से भी कम मिली थी। हालांकि प्रशानिक अफसरों के दबाव में इसे सार्वजनिक नहीं किया जा रहा है। गायों को सूखा भूसा देने का मामला उजागर हुआ है। हालांकि चारे के नाम पर रोज नये-नये फरमान जारी करने वाला निगम प्रशासन पशुओं की मौत पर अंकुश नहीं लगा पा रहा है। पिछले एक महीने में 30 से अधिक पशुओं की मौत व्यवस्था पर सवाल खड़े कर रही है।
कहां गए गोरखपुर से भेजे गए 2778 गोवंश
अपर आयुक्त की जांच में जो खुलासे हुए हैं उससे गोरखपुर नगर निगम प्रशासन भी कटघरे में खड़ा नजर आ रहा है। नगर निगम के जिम्मेदारों के मुताबिक पिछले 18 महीने में गोरखपुर से 2778 गोवंश को मधवलिया पहुंचाया गया है। जब गोरखपुर नगर निगम द्वारा ही 2778 गोवंश पहुंचाए गए तो गो-सदन प्रशासन सिर्फ 2534 गोवंश होने की बात क्यों कर रहा है। नगर निगम प्रशासन के पास फिलहाल ऐसी कोई रिसीविंग नहीं है जिससे साबित हो सके कि उन्होंने 2778 गाय और सांड़ों को मधवलिया भेजा है। अब सवाल उठ रहा है कि क्या निगम के अफसरों ने गायों को पकडऩे से लेकर उन्हें मधवलिया पहुंचाने में लाखों रुपये का बंदरबांट किया है। नगर निगम ने पिछले डेढ़ साल में 3500 से अधिक गोवंश को सडक़ों से पकड़ा है। छुट्टा पशुओं को पकडऩे के लिए नगर निगम प्रशासन मोटी रकम खर्च करता है। शहर में खतरनाक सांड़ों को पकडऩे के लिए नगर निगम ने प्राइवेट फर्म को जिम्मेदारी दी है।
नगर निगम साल में छुट्टा पशुओं को पकडऩे वाले आउटसोर्सिंग के कर्मचारियों को 18 लाख रुपये भुगतान करता है। वहीं एक अलग टीम भी गो-वंश को पकड़ती है, जिसे प्रति गाय और सांड़ के हिसाब से लाखों रुपये का भुगतान किया गया है। सवाल यह है कि नगर निगम ने जब लाखों रुपये खर्च कर गो-वंश को पकड़ा, उन्हें मधवलिया भेजने पर लाखों रुपये खर्च किया तो आखिर गो-वंश गए कहां? क्या जांच की आंच नगर निगम के अधिकारियों तक नहीं पहुंचनी चाहिए? महराजगंज लोकसभा सीट से कांग्रेस की प्रत्याशी रहीं और राष्ट्रीय प्रवक्ता कांग्रेस सुप्रिया श्रीनेत का कहना है कि मुख्यमंत्री आदित्यनाथ की नाक के नीचे गाय माता में नाम पर घोटाला हुआ है। गायें भूख से मर रहीं हैं। मुख्यमंत्री अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकते हैं। सिर्फ अधिकारियों के निलंबन से गोवंश की हत्या का पाप नहीं घुलने वाला है। स्थानीय सांसद और विधायक की भी जवाबदेही तय होनी चाहिए। 501 एकड़ वाले गो सदन की 300 एकड़ जमीन नियमों को ताक पर रखकर गोरखपुर के व्यापारी को दी गई। सवाल यह है कि कैसे सरकारी जमीन बिना किसी प्रतिस्पर्धी बोली (कम्पेटिटिव बिडिंग) के एक ही व्यक्ति को किराए पर दे दी गई? आखिरकार इसे लीज पर देने का हक किसका था, कौन सी प्रक्रिया अपनायी गयी?