जौनपुरः सही कौन, श्मसान में लाशें या स्वास्थ्य विभाग के आंकड़े

बड़ी संख्या में लाशों का फायदा उठाने वाले शमशान व्यापारी आपदा में अवसर तलाशते हुए शव दाह करने वालों का शोषण कर रहे हैं।

Reporter :  Kapil Dev Maurya
Published By :  Shraddha
Update: 2021-04-20 12:52 GMT

श्मसान घाटों में जल रही लाशे  

जौनपुर : कोविड 19 (covid - 19 ) के बढ़ते संक्रमण काल में जनपद में हो रही मौतों को लेकर सरकारी स्तर (Government level) से जारी आंकड़ों एवं भौतिक धरातल पर श्मसान घाटों (Crematorium) पर लाशों का आगमन सरकारी आंकड़ों को सिरे से खारिज करते हैं। कोरोना संक्रमण (Corona infection) काल में लाशों की भीड़ से श्मसान घाटों पर लकड़ियों का संकट भी बना हुआ है। साथ श्मसान घाटों के व्यापारी आपदा में अवसर की तलाश करते हुए लकड़ी से लेकर हर एक सामानों का दो से तीन गुना अधिक मूल्य वसूला जा रहा है।

परिजनों के मौत से दुखी लोग शोषण के शिकार हो रहे हैं। सरकारी तंत्र इस दिशा से बेखबर नजर आ रहा है। यहां बता दें कि जिले के स्वास्थ्य विभाग (health Department) द्वारा 19 अप्रैल तक जारी आंकड़े में बताया गया है कि अब तक कोरोना संक्रमण (Corona infection) के चलते पूरे जिले में 113 मौते हुई हैं। स्वास्थ्य विभाग के जिम्मेदारों के अनुसार सर्दी, जुकाम, खांसी एवं सांस लेने में संकट होने पर कोरोना संक्रमण माना जाता है। ऐसे मरीजों का उपचार एल टू अस्पताल में होना चाहिए। लेकिन श्मसान घाट पर आने वाली लाशों के संख्या की बात करें तो प्रतिदिन शहर स्थित रामघाट पर सुबह से शाम तक लगभग 100 के आस पास लाशें आ रही हैं। यह तो जिले के एक श्मसान घाट की स्थिति है जनपद के अन्य घाटों की समीक्षा हो तो संख्या भयावह नजर आयेगी।

24 घंटे की बीमारी में हो रही मौत

लाश लेकर आने वालों से मृत्यु का कारण जानने का प्रयास किया गया तो सच सामने आ गया और सरकारी स्तर से जारी आंकड़ों पर सवाल खड़ा होने लगा है। लगभग 80 प्रतिशत लोगों ने बताया कि मृतक को पहले बुखार आया फिर खांसी शुरू हो गयी सांस लेने में भारी कठिनाई हो रही थी। उपचार के लिए सरकारी अथवा प्राइवेट अस्पताल गये वहां पर आक्सीजन की व्यवस्था न होने के कारण महज 24 घंटे की बीमारी में मौत हो गयी है।

श्मसान घाटों पर लकड़ियों का संकट 

सरकार मौत के आंकड़े कम दिखा रही

स्वास्थ्य विभाग ने बताया कि जब मृत्यु के लक्षण कोरोना संक्रमण से संक्रमित होने के संकेत दे रहे हैं तो ऐसे मरीजों की मौतों को सरकारी आंकड़े में क्यों नहीं जोड़ा गया है। इसके पीछे का रहस्य क्या है। आंकड़े कम दिखाने से क्या कोरोना संक्रमण का खतरा कम हो जायेगा ? अथवा इसके पीछे कोई उपर का आदेश है कि मौत की संख्या को कम दिखाया जाये। यहां यह भी बता दें कि जनपद में लगातार हो रही बड़ी संख्या में मौतों से जन मानस के बीच में हाहाकार मचा हुआ है। हर कोई घबराया हुआ संक्रमण से बचने के लिए घरों में दुबकने को मजबूर हैं। वहीं पर जिन परिवारो में कोरोना मौत का तांडव कर रहा है वहां लोग करीब से मौत का मंज़र असहाय होकर देखते रह जा रहे हैं और सरकारी तंत्र पर इसका कोई असर नहीं दिख रहा है। हां आंकड़े कम करने में मशगूल हैं।

अस्पतालों में इतनी मारा मारी क्यों चल रही

आपको बता दें कि श्मसान घाटों पर बड़ी संख्या में आ रही लाशों का फायदा उठाने में श्मसान घाट के व्यापारी भी आपदा में अवसर तलाशते हुए शव दाह करने वालों का जम कर शोषण कर रहे हैं। शवों को जलाने के लिए लकड़ियों को दो से तीन गुना तक अधिक मूल्य वसूल रहे हैं। परिवार के सदस्य की मौत से गम जदा लोग शोषित होने के लिए मजबूर हो गए हैं। व्यापारी कहता है लकड़ियां मिल नहीं रही हैं। मंहगी लकड़ी वह भी जंगली पेड़ की ला रहे हैं तो मंहगा देना मजबूरी है। रामघाट शवदाह स्थल पर शवों को जलाने वाले बताते हैं कि इस समय प्रतिदिन एक सैकड़ा से अधिक लाशें आ रही है। इतनी बड़ी संख्या में कभी लाशें नहीं आयी थी। अब एक बार फिर से स्वास्थ्य विभाग से सवाल है कि श्मसान घाट सही है अथवा स्वास्थ्य विभाग के आंकड़े, एक बात और भी है कि अगर स्वास्थ्य विभाग के आंकड़े सही हैं तो अस्पतालों में इतनी मारा मारी क्यों हैं ?

Tags:    

Similar News