Kushinagar News: हाल -ए- मनरेगा, जनपद में कई जगहों पर दिहाड़ी मजदूरों की लगती है मंडी
Kushinagar: जनपद के विभिन्न शहरों में दिहाड़ी मजदूरों की मंडी लगती है। मनरेगा योजना तो सिर्फ चहेतों के लिए बन गई है। जरूरतमंद मजदूर आज भी काम की तलाश में भटक रहे है।
Kushinagar: कामगार मजदूरों के लिए सरकार द्वारा तमाम योजनाएं चलाई जा रही हैं, लेकिन धरातल पर यह योजना जरूरतमंदों तक नहीं पहुंच पा रही है। तभी तो कंपकंपाती ठंड में दिहाड़ी मजदूरों की जनपद के विभिन्न शहरों में मंडी लगती है और काम पाने के लिए बोली लगती है। मनरेगा योजना तो सिर्फ चहेतों के लिए बन गई है। जरूरतमंद मजदूर आज भी काम की तलाश में भटक रहे है। नगरों में मजदूरों की जहां मंडी लगती है वहां काम सभी को नहीं मिल पाता है। अधिकतर मजदूर काम नहीं मिलने से निराश होकर घर लौट आते हैं।
इन नगरों के चौराहों पर काम की तलाश में खड़े रहते हैं दिहाड़ी मजदूर
जनपद की सेवरही, पडरौना, रामकोला तिराहा, कप्तानगंज, कसया सहित कई नगरों में चौराहों पर काम की तलाश में दिहाड़ी मजदूर खड़े रहते हैं ।मजदूर की तलाश में यदि कोई व्यक्ति पहुंचता है तो उसके पास दर्जनों मजदूर काम के लिए पहुंच जाते हैं। कई मजदूरों ने बताया कि काम के सिलसिले में रोज नगर में आते हैं कभी कभार का मिल जाता है। इन मजदूरों कि कपकपाती ठंड में परिवार चलाना मुश्किल हो गया है ।
मनरेगा में नहीं मिल पाता है मजदूरों को पूरा काम।
जनपद के ग्रामीण मजदूरों को जाब देने के लिए जॉब कार्ड बना है ।जब कार्डो मे धाधली हुई है। जानकार बताते हैं कि प्रधान 50% ऐसे लोगों का जॉब कार्ड बनवाते हैं जो दिहाड़ी मजदूर का काम नहीं करते और उनके चहेते होते हैं। इन्हीं लोगों की जॉब कार्ड को मस्टररोल में भरकर मजदूरी इनके खातों में भेजी जाती है और प्रधान तथा उक्त जॉब कार्ड धारक धनराशि निकाल कर बंटरबाट करते हैं । जरूरतमंद मजदूर बेचारा यहां भी फेल हो जाता है और मजबूर होकर नगर की राह देखता है ।चौराहों पर खड़े मजदूरों ने बताया कि मनरेगा में योजनाओं का लाभ प्रधान के खास लोगों को मिलता है और जो मजदूर काम करते हैं उनको बहुत देर से पेमेंट भी मिलता है ।
मनरेगा से मजदूरों का हो रहा है मोह भांग
जनपद में मनरेगा के सिस्टम और प्रधानों के पक्षपात रवैया से जरूरतमंद कामगारों का मनरेगा से मोहभंग हो रहा है। दिहाडी़ मजदूर को प्रतिदिन शाम को मजदूरी नकद के रूप में चाहिए। दिन भर काम करने के बाद शाम को उसी मजदूरी से अपनी दैनिक दिनचर्या की सामानों की खरीदारी करते हैं। मनरेगा में मजदूरों द्वारा की गई मजदूरी देर से मिलती है जो इन मजदूरों का दैनिक जीवन चलाने के लिए कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।