Dalit Politics in UP: दलितों साथ धोखाधड़ी

Kaushal Vridhi Yojana: दलित हितों का दावा करने वाली मायावती सरकार के कार्यकाल में अनुसूचित जाति के 41 लाख छात्रों को छात्रवृत्ति से वंचित होना पड़ा।

Written By :  Yogesh Mishra
Update:2022-12-01 21:09 IST

Mayawati (Photo: Social Media)

Dalit Politics: मायावती राज में भी दलितों के साथ लगातार धोखा धड़ी जारी है। और तो और, दलित बच्चों को कंप्यूटर शिक्षा देने की कौशल वृद्धि योजना (Kaushal Vridhi Scheme) के तहत तकरीबन दस हजार बच्चों को लाभ पहुंचाने का दावा सरकार कर रही जबकि सच्चाई यह है कि अनेक तरह की विसंगतियों से घिरी यह योजना शुरू भी नहीं हो पाई है।

चार साल पहले शुरू हुई थी योजना

दलित बच्चों को कंप्यूटर एवं अन्य शिक्षा प्रदान करने के लिए बनी यह योजना वस्तुतः कल्याण सिंह के शासनकाल में चार साल पहले शुरू की गई थी। इस योजना के तहत करीब सात हजार दलित बच्चों को कंप्यूटर और मोटर ड्राइविंग, इलेक्ट्रॉनिक्स मान मरम्मत, आशुलिपिक टंकण, सिलाई कढ़ाई आदि के प्रशिक्षण दिए जाने का था। यह हुआ था कि जो भी संस्थान दलित बच्चों को इन व्यवसायिक पाठयक्रमों की शिक्षा प्रदान करेगा, उनकी फीस का भुगतान उत्तर प्रदेश अनुसूचित जाति एवं विकास निगम करेगा। इस योजना में प्रशिक्षण पाने वाले दलित बच्चों को प्रशिक्षण अवधि के दौरान वजीफा देने को व्यवस्था भी की गई है। प्रशिक्षण संस्थानों के चयन का जिम्मा निगम का था।

जब मायावती की सरकार बनी और इंद्रजीत सरोज ने समाज कल्याण विभाग का काम प्रशिक्षणार्थियों और प्रशिक्षण संस्थानों के चयन के लिए नए नियम-कानून बनाए जाने लगे। इसके तहत पिछले साल जुलाई में सबसे पहला काम यह किया गया कि वित विभाग को इन पाठ्यक्रमों के लिए निर्धारित धनराशि बढ़ाए जाने का एक प्रस्ताव भेजा गया। लेकिन अगस्त में वित्त विभाग ने इसे नामंजूर कर दिया। इसके बाद प्रशिक्षणार्थियों की संख्या में इजाफा किए जाने का प्रस्ताव वित्त और समाज कल्याण विभाग के बीच फाइलों में घूमने लगा। लेकिन अक्टूबर में वित्त विभाग ने इस प्रस्ताव को भी आर्थिक हितों का हवाला देते हुए रद कर दिया।

समाज कल्याण विभाग की कोशिशें यहीं नहीं थमीं इस योजना के तहत पिछले सालों में जो सीटें रिक्त रह गई थीं, उनका लेखा-जोखा तैयार कराया गया। इस तरह वित्तीय वर्ष 2002-03 के नवंबर माह आते-आते 25 हजार छात्रों की सूची तैयार हुई। समाज कल्याण विभाग का तर्क यह था कि इस योजना के लिए निर्धारित छात्रों की संख्या पिछले वर्षों में पूरी नहीं हो पाई है, इसलिए सभी वर्ष का बैकलॉग इस वर्ष पूरा कर दिया जाए। सरकार के इस फैसले के बाद छात्रों की इतनी बड़ी तादाद को प्रशिक्षित करने की योजना से व्यावसायिक लाभ उठाने के लिए दिल्ली से लेकर देश के अन्य सूबों की नामी-गिरामी कंप्यूटर प्रशिक्षण कंपनियों ने उत्तर प्रदेश को ओर रुख किया। लेकिन पिछले साल 16 अक्टूबर को निगम की ओर से सभी जिलाधिकारियों को भेजे गए पत्र (संख्या - 4915/कौ.वृ.यो. 2002-03 ) में यह निर्देश दिया गया कि वे अपने जिले से कंप्यूटर में प्रशिक्षण देने वाली महत्वपूर्ण संस्थानों के नाम भेजें।ज़िलाधिकारियों ने नाम भेजने के लिए जनवरी तक का समय लिया।

इस तरह पिछले साल मई में आई मायावती सरकार को जनवरी तक संस्थानों के नाम ही उपलब्ध हुए। इसके बाद पिछले 19 अप्रैल को जारी शासनादेश (संख्या 612) में कई नामी-गिरामी कंपनियों को प्रशिक्षण देने के लिए चुना गया। अलग-अलग कंपनियों को अलग-अलग संख्या में बच्चों को तालीम देने का टेंडर मिला। टेंडर पाने वाली कुछ कंपनियों में मुख्यमंत्री सचिवालय के अधिकारी और समाज कल्याण मंत्री के रिश्तेदारों की भागीदारी का आरोप लगाते हुए एक कंपनी प्रबंधक ने ही मुख्य सचिव डी. एस. बग्गा से शिकायत की। सूत्रों के मुताबिक, शिकायत का नतीजा यह हुआ कि समाज कल्याण सचिव ने वह सूची ही रद कर दी जो 19 अप्रैल के शासनादेश के जरिये जारी की गई थी। मई के अंतिम सप्ताह में मुख्य सचिव ने इस योजना की विसंगतियों को दूर करने के लिए मैराथन बैठकें भी कीं। इस बारे में बातचीत के लिए इस संवाददाता ने निगम के अध्यक्ष मोतीलाल और महाप्रबंधक जे.पी. आर्या से कई बार संपर्क किया लेकिन वे उपलब्ध नहीं हो पाए। वे महज यह कहकर किनारा कस लेते हैं कि 'यह काम अब शासन के पास है। हमारे हाथ से ले लिया गया।'

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

शुरू होने से पहले ही योजना उपलब्धियों में दर्ज

इस तरह कौशल वृद्धि योजना अब तक शुरू भी नहीं हो पाई है। लेकिन राज्य सरकार ने मई में प्रचारित अपनी वार्षिक उपलब्धियों में साफ तौर पर दर्ज किया कि 'कौशल वृद्धि प्रशिक्षण योजना के अंतर्गत अनुसूचित जाति के 9,976 शिक्षित बेरोजगार युवक-युवतियों को कंप्यूटर, टंकण आशुलिपि, हथकरघा तथा बढ़ईगिरी का निःशुल्क प्रशिक्षण दिलवाकर उन्हें स्वरोजगार योग्य बनाने की दिशा में सफल प्रयास किया गया।

यह तो इस योजना का हाल है। दलित हितों का दावा करने वाली मायावती सरकार के कार्यकाल में अनुसूचित जाति के 41 लाख छात्रों को छात्रवृत्ति से वंचित होना पड़ा। राज्य में कुल 91,96,300 दलित छात्र-छात्राओं में से 50,85,008 छात्र-छात्राओं को ही छात्रवृत्ति का वितरण किया जा सका। यह स्थिति "तब है जब सरकार ने इन बच्चों के लिए निर्धारित रकम 40.338 लाख रुपये में से 37,719 लाख रुपये की धनराशि वितरण के लिए आवंटित कर दी थी। लेकिन दलित बच्चे वजीफा पा ही नहीं सके।)

( मूल रूप से 09.Jun,2003 को प्रकाशित।)

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