इलाहाबाद: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने नाबालिग बच्ची की रेप व हत्या के आरोपी कुशीनगर के पप्पू को फांसी की सजा को बरकरार रखा है। कोर्ट ने इस जघन्य कृत्य को रेयरेस्ट ऑफ द रेयर (विरल से विरलतम) श्रेणी का अपराध मानते हुए कहा है कि ऐसे कुकृत्य के अपराधी को फांसी की सजा देने से समाज में गहरा असर पड़ेगा और अपराधियों का मनोबल गिरेगा।
यह आदेश न्यायमूर्ति शशिकांत गुप्ता तथा न्यायमूर्ति प्रभात चन्द्र त्रिपाठी की खंडपीठ ने सत्र न्यायालय पडरौना द्वारा सुनायी गयी फांसी की सजा बहाल रखते हुए दिया है। निर्णय सुनाते हुए न्यायमूर्ति त्रिपाठी ने कहा, कि सात साल की बच्ची को बहला-फुसलाकर 35 साल के आरोपी द्वारा बलात्कार करने तथा हत्या कर लाश छिपा देना क्रूरतम कृत्य है।
क्या है मामला?
कुशीनगर के गांव सबायाखास थाना कसया अंतर्गत 4 मई 2015 को बच्ची की मां ने प्राथमिकी दर्ज करायी थी कि तीन मई की शाम पड़ोस में सहेली के साथ खेल रही सात वर्षीय बच्ची को आरोपी पप्पू ने लीची तोड़ने का लालच देकर दुराचार किया और हत्या कर लाश दूर फेंक आया। जब शाम को बच्ची घर नहीं पहुंची तो तलाश हुई। लाश बरामद हुई। सेशन कोर्ट ने इस मामले में 8 दिसंबर 2016 को आरोपी फांसी की सजा सुनायी और हाईकोर्ट को प्रेषित कर दिया।
'ऐसा अपराध मानवता के विरुद्ध'
फांसी की सजा को बरकरार रखते हुए कोर्ट ने कहा है, कि बच्चों के साथ रेप की घटना सेक्स की विकृत मानसिकता को उजागर करता है। यह मानवता के विरुद्ध अपराध है। ऐसे मामलों में कोर्ट के कंधों पर जिम्मेदारी आती है कि बच्चों की सुरक्षा के लिए काम करे। कोर्ट ने कहा, कि बच्चे देश का भविष्य हैं। देश को उनसे उम्मीद है। देश में लड़कियों की दयनीय स्थिति में रह रही है। यौन शोषण के अन्य तरीकों से उत्पीड़न हो रहा है।
अपराध रोकने के लिए कड़ा दंड जरूरी
न्यायमूर्ति पीसी.त्रिपाठी ने कहा, कि 'बच्चों के विरुद्ध अपराध पर कोर्ट को संवेदनशीलता बरतनी चाहिए। बच्चों के विरुद्ध अपराध मस्तिष्क में जीवन भर के लिए छाप छोड़ जाता है।' कोर्ट ने कहा, कि 'सेक्स अपराधी जंगली जानवरों की तरह व्यवहार कर रहे हैं। कड़े दंड से ही समाज में अपराध को रोका जा सकता है।'