ऑक्सीजन के घटते स्तर से इंसान-पेड़ों दोनों को ही होगा बड़ा खतरा, जानें पूरा मामला
मैनपुरी शहर के अंदर सड़कों के किनारे नियमित साफ सफाई न होने के कारण सड़कों पर धूलका स्तर बढ़ गया है।
मैनपुरी: मैनपुरी (Mainpuri) शहर के अंदर सड़कों के किनारे (Roadside) नियमित साफ सफाई न होने के कारण सड़कों पर धूल (Dust on the streets) का स्तर बढ़ गया है। धूल और रेत के कारण लोगों को तो बीमार कर रही रहे हैं इसके साथ ही ये पेड़ पौधों की सेहत पर भी प्रतिकूल प्रभाव डाल रहे हैं। सड़कों पर उड़ती धूल, सड़क किनारे लगे पेड़ों की पत्तियों पर जम रही है और इसके कारण इनके छिद्र बंद होते जा रहे हैं।
जानकारों की मानें तो शहर भर में सड़कों के आसपास जमा धूल और रेत के कणों के कारण धूल की परतें पौधों के पत्तों पर जम रही है, जिसके कारण इनके छिद्र (स्टोमेटा) पर यह धूल की परत जम रही है, इसके चलते पौधों में भोजन बनने की प्रक्रिया प्रभावित हो रही है। पर्यावरण के जानकारों की माने तो पत्तियों की सतह पर वायु (Wind), जल (water) एवं वाष्प (Steam) के आदान प्रदान के लिए विशेष प्रकार के अति सूक्ष्म छिद्र पाये जाते हैं (Microscopic holes) जिन्हें स्टोमेटा (stomata) कहते हैं। स्टोमेटा (stomata) के जरिए ही पत्तियों के माध्यम से पेड़ के द्वारा खुद को जीवित रखने के लिए भोजन का प्रबंध किया जाता है।
वातावरण में कार्बन डाई ऑक्साईड
जानकार बताते हैं कि इन्हीं स्टोमेटा के जरिये पेड़ों के द्वारा वातावरण की कार्बन डाई ऑक्साइड (carbon dioxide) को ग्रहण कर ऑक्सीजन को बाहर छोड़ा जाता है। इस तरह अगर पत्तों का स्टोमेटा प्रभावित होगा तो वातावरण में कार्बन डाई ऑक्साईड का स्तर बढ़ने की आशंकाओं से इंकार नहीं किया जा सकता है। इस तरह धूल के कणों के चलते मनुष्य और पौधों, दोनों के लिये खतरा बढ़ रहा है। जानकारों का कहना है कि मैनपुरी में कभी भी धूल के कणों के संबंध में पीएम (कणिका तत्व या पार्टिकुलेट मैटर) की जाँच शायद ही कभी करवायी गयी हो। मैनपुरी की आबोहवा में प्रति क्यूबिक मीटर पीएम क्या है, यह बात प्रशासन का कोई अधिकारी शायद ही बता पाये। देखा जाये तो इसका स्तर 60 क्यूबिक मीटर होना चाहिये। जानकारों ने यह भी बताया कि धूल के कणों के द्वारा विभिन्न प्रकार के गैसीय कणों और हानिकारक गैसों के साथ मिलकर एयर क्वॉलिटी इंडेक्स (एक्यूआई) बनाया जाता है। एक्यूआई की मात्रा जितनी ज्यादा होगी उस क्षेत्र की हवा उतनी ही प्रदूषित मानी जाती है।
प्रदूषण नियंत्रण मण्डल के उच्च पदस्थ सूत्रों ने बताया कि मैनपुरी में एक्यूआई की जाँच शायद कागजों पर ही की जाकर मुख्यालय को इसकी जानकारी दे दी जाती है। कम से कम साल में दो बार तो एक्यूआई की जाँच होनी चाहिए जिससे ये पता चले कि मैनपुरी की हवा कितनी प्रदूषित है।
क्या कहते हैं इस बारे ड़ाॅक्टर्स
डाॅक्टर्स का कहना है कि वाहनों से निकलने वाले धुएं में और सड़कों पर उड़ने वाली धूल में कार्बनमोनोक्साइड की मात्रा सर्वाधिक होने से सीधा फेफड़ों को नुकसान पहुंचता है। इतना ही नहीं, यह तत्व हड्डियों की कमजोरी के लिए भी जिम्मेदार होता है। यही वजह है कि लगातार प्रदूषित वातावरण में रहने के कारण लोगों को लो बोन डेंसिटी की समस्या से जूझना पड़ रहा है। यदि प्रदूषण के स्तर को कम करने के प्रयास न किए गए, तो निश्चित ही इसका खामियाजा भुगतना होगा।