Bhadohi News: तमाम बाधाओं के बावजूद, 39 साल की हथनी पहुंची हाथी अस्पताल

Bhadohi News: यूपी के भदोही वन विभाग द्वारा राज्य की सीमा पर अवैध रूप से ले जाई जा रही 39 वर्षीय भीख मांगने वाली हथनी "रोज़ी" (Rosy) को जब्त किया गया था। उसको गंभीर बीमारियां है।

Report :  Rahul Singh
Update: 2022-06-30 09:41 GMT

 भदोही में तमाम बाधाओं के बावजूद, हथनी पहुंची हाथी अस्पताल: Photo - Newstrack

Bhadohi News: उत्तर प्रदेश के भदोही वन विभाग (Bhadohi Forest Department) द्वारा राज्य की सीमा पर अवैध रूप से ले जाई जा रही 39 वर्षीय भीख मांगने वाली हथनी "रोज़ी" (Rosy) को जब्त किया गया था। हथनी के शरीर पर भारी, दर्दनाक नुकीली जंजीरें थीं वर्षों की उपेक्षा और पशु चिकित्सा देखभाल की कमी के कारण उसको गंभीर बीमारियां (Elephant has serious diseases) है। रोज़ी को अवैध रूप से रखने वाले उसके मालिकों द्वारा तमाम कानूनी बाधाओं के बावजूद, उसे वाइल्डलाइफ एसओएस के मथुरा स्थित हाथी अस्पताल में लाया गया, जहां रोज़ी को विशेष चिकित्सा उपचार और पौष्टिक भोजन दिया जा रहा है।

उत्तर प्रदेश वन विभाग (Uttar Pradesh Forest Department) ने इस महीने की शुरुआत में वन्यजीव संरक्षण संस्था (wildlife conservation organization) वाइल्डलाइफ एसओएस से मिली खुफिया जानकारी के बाद भदोही में रोज़ी (Rosy) हथनी को जब्त किया था। रोज़ी के मालिक बारातों और भीख मांगने के लिए अवैध रूप से उसका इस्तमाल करते थे, जिसके कारण उसने अपना अधिकांश जीवन कष्टदायी दर्द में बिताया, उसके आगे और पीछे के पैरों के चारों ओर दर्दनाक नुकीली जंजीरें भी बंधी हुई थी।


अदालत से रोजी के पुनर्वास की अनुमति मिलने के बाद हाथी अस्पताल पहुंची हथिनी

रोज़ी को वाइल्डलाइफ एसओएस के हाथी अस्पताल में लाने से रोकने के लिए उसके मालिकों ने तमाम बाधाएं उत्पन करने की कोशिश की जिसके कारण काफी विलंब भी हुआ। पिछले हफ्ते, अदालत से रोजी के पुनर्वास की अनुमति मिलते ही, वाइल्डलाइफ एसओएस के पशु चिकित्सकों और हाथी देखभाल कर्मचारियों की एक टीम विशेष हाथी एम्बुलेंस के साथ भदोही, उत्तर प्रदेश पहुंची और उत्तर प्रदेश वन विभाग की सहायता से हथनी को सकुशल मथुरा स्थित वाइल्डलाइफ एसओएस के हाथी अस्पताल ले आई।


संस्था के पशु चिकित्सकों द्वारा किये गए गहन चिकित्सा जांच से पता चला कि हथनी लगभग 39 साल की है और पक्की सड़कों एवं अन्य अनुपयुक्त सतहों पर चलने के परिणामस्वरूप उसके पैरों के तलवे और नाखून कटी -फटी हालत में है। इसके अतिरिक्त, उसके शरीर पर कई दर्दनाक फोड़े और चोटें भी हैं। यात्रा के दौरान रोज़ी को दर्द से तत्काल राहत प्रदान करने के लिए पशु चिकित्सकों की टीम अपने साथ चिकित्सा उपकरण भी लेकर गई थी।


रोज़ी को कष्ट भरे जीवन से आज़ादी मिली

तमाम चुनौतियों के बावजूद, रोज़ी को आखिरकार अपने कष्ट भरे जीवन से आज़ादी मिली और उसे वाइल्डलाइफ़ एसओएस की एक्सपर्ट देखरेख में लाया गया। रोज़ी को उत्तर प्रदेश वन विभाग के सहयोग से वाइल्डलाइफ एसओएस द्वारा स्थापित भारत के पहले और एकमात्र हाथी अस्पताल परिसर में विशेषज्ञों के हाथों लेजर थेरेपी, डिजिटल वायरलेस रेडियोलॉजी और थर्मल इमेजिंग जैसी विशेष चिकित्सा सुविधायें मिलेंगी।


रोज़ी के साथ हो रहा था दुर्व्यवहार

वाइल्डलाइफ एसओएस की पशु चिकित्सा सेवाओं के उप-निदेशक, डॉ इलियाराजा, ने बताया कि "वर्षों की उपेक्षा और दुर्व्यवहार ने रोज़ी के स्वास्थ्य पर गहरा असर डाला है। उसके पैर बहुत खराब स्थिति में हैं और उसके शरीर पर कई चोटों के निशान भी हैं। हम उसके स्वास्थ्य की स्पष्ट तस्वीर प्राप्त करने और उसे आवश्यक देखभाल प्रदान करने के लिए विस्तृत चिकित्सा जांच कर रहे हैं।"

बैजूराज एम.वी, डायरेक्टर कंज़रवेशन प्रोजेक्ट्स, वाइल्डलाइफ एसओएस ने कहा, "हम इस हथनी को संकट से बचाने के लिए उत्तर प्रदेश वन विभाग के आभारी हैं। भीख मांगने वाले हाथी का जीवन दर्द से भरा होता है और वे गंभीर मानसिक तनाव से पीड़ित होते हैं जिसे ठीक होने में वर्षों लग जाते हैं। अब जब रोज़ी हाथी अस्पताल में सुरक्षित पहुंच गई है, तो हम यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि उसे वह चिकित्सा उपचार और देखभाल मिले, जिसकी वह हकदार है।"



रोजी विभिन्न स्वास्थ्य समस्याओं से पीड़ित है

नीरज कुमार आर्य, डीएफओ, भदोही उत्तर प्रदेश ने कहा कि "रोजी विभिन्न स्वास्थ्य समस्याओं से पीड़ित है। उसके बिगड़ते स्वास्थ्य के कारण, यह निर्णय लिया गया कि हथनी को तत्काल हाथी अस्पताल में स्थानांतरित किया जाए।"

हाथियों के लिए नुकीली जंजीरों का उपयोग अवैध है

वाइल्डलाइफ एसओएस की सह-संस्थापक और सचिव, गीता शेषमणि ने कहा, "नुकीली जंजीरों का उपयोग अवैध है। खींचने पर, यह नुकीले कांटे मांस को फाड़ देते हैं जिससे हाथी को असहनीय दर्द होता हैं और इस तरह उनके मालिक उन्हें दर्द और भय का उपयोग करके नियंत्रित करते हैं। घाव अक्सर ठीक नहीं होते हैं और समय के साथ संक्रमित हो जाते हैं।"

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