हौसले की उड़ान: 11 दिव्यांगों ने शुरू की जैविक खेती, इनको देख किसान भी कर रहे है रुख

जिले में कुछ दिव्यांगों ने अपने मेहनत और लगन की दम पर एक शानदार मिसाल पेश की है । जिले के 11 दिव्यांगों ने साथ मिलकर अंश लघु कृषक उत्पादक कंपनी लिमिटेड की स्थापना की। इसमें अपने जैसे 450 किसानों को जोड़ा।

Update: 2017-12-29 08:39 GMT

गोरखपुर/महाराजगंज: जिले में कुछ दिव्यांगों ने अपने मेहनत और लगन की दम पर एक शानदार मिसाल पेश की है। जिले के 11 दिव्यांगों ने साथ मिलकर अंश लघु कृषक उत्पादक कंपनी लिमिटेड की स्थापना की। इसमें अपने जैसे 450 किसानों को जोड़ा।

जैविक कृषि को आधार बनाकर इन्होंने कृषि उत्पाद तैयार करना शुरू कर दिया। जहां से जैविक कृषि उत्पादों, आटा, मसाले, चावल को सुव्यवस्थित पैकेजिंग के बाद बाजार में उतार दिया जाता है। जैविक खेती के माध्यम से ये दिवयांग जहां एक तरफ आर्थिक मजबूती पा रहे हैं। वहीं इनको देखकर जिले के अन्य किसान अब जैविक खेती की तरफ अपना रुख करने लगे हैं।

जहां चाह वहां राह...

किसी ने सच ही कहा है कि जहां चाह वहां राह। इस बात को जमाने के सामने लाए ये दिव्यांग भले ही लोग शारीरिक रूप से सामान्य न हों लेकिन इनकी इच्छाशक्ति ने समाज के अन्य लोगों को प्रेरणा देने का काम किया है। इन दिव्यांगों में दिव्यांग महिलाएं बराबरी की हिस्सेदारी कर रही हैं।

शुरू की जैविक खेती

इन 11 दिव्यांगों ने मिलकर कुछ अलग करने का सपना पाले हुए जैविक खेती शुरू की और आज इनके उत्पाद की मांग जोरों पर है। इन उत्पादों में गेंहूं, धान, हल्दी और धनिया समेत अन्य मसाले शामिल हैं। इन फसली उत्पादों की कीमत अन्य रासायनिक खादों से पैदा फसल की अपेक्षा ज्यादा होने के नाते दिव्यांगों को मुनाफा भी ज्यादा हो रहा है। प्रति एकड़ फसल का कुल उत्पादन जैविक विधि से करने से ज्यादा और मानव स्वास्थ्य के लिए लाभकारी माना जाता है। इस तरह ये दिव्यांग लोग प्राकृतिक खेती के साथ-साथ मानव स्वास्थ्य के लिए नजीर बनते जा रहे हैं।

कई किसान जुड़े

रामप्रीत (दिव्यांग) ने बताया कि यहां पर कार्य करने वाले हम लोग 11 हैं, सब दिव्यांग है। जैविक खेती से उत्पन्न चावल गेहूं धनिया हल्दी मसाला की पिसाई करने के बाद पैकिंग किया जाता है उसे मार्केट में बेचा जाता है। इससे हम बहुत खुश हैं। उन्होंने बताया कि पहले हम कुछ काम नहीं कर पाते थे आज के समय हम 400 से 500 रुपए कमा लेते हैं और अपने परिवार का खर्चा भी चला लेते हैं। पहले हम लोग घर पर रहकर कुछ नहीं कर पाते थे और हमारे साथ किसान भी जुड़े हुए हैं।

अच्छा मिला रिस्पांस

वही संजय (दिव्यांग) का कहना है कि पहले हम घर पर रहकर कुछ नहीं कर पाते थे कुछ लोग हमारे पास आए और जैविक खेती के बारे में बताया उसके बाद हमने गांव से धान हल्दी धनिया गेहूं मसाला खरीद कर लाए और साफ सुथरा करके उसे मार्केट में बेचा जिसका रिस्पांस बहुत अच्छा मिला। हमें जैविक खेती से फायदा मिल रहा है इससे लोगों को बीमारियां नहीं होती और यह शुद्ध होता है। उन्होंने कहा कि हम लोग जैविक खेती के वाले सामान को मार्केट में दो रुपए महंगा भी भेजते हैं। हमारे पास इस समय बहुत अच्छा ऑर्डर भी आया है और लोगों को पसंद भी आ रहे हैं। संजय ने बताया कि इसे हम और बड़ा करने की सोच रहे हैं। हम बहुत खुश हैं इस कार्य से पहले हम अपने को बोझ समझते थे, लेकिन अब हमें एक मुकाम मिल गया है जिससे हमें और बढ़ाना है।

दिव्यांगों ने किया नाम रोशन

इस तरह से इन 11 दिव्यांग महिला और पुरूषों ने एक कंपनी भी बना ली है। इनकी कंपनी को बाजार से अच्छा आर्डर मिल रहा है। इनकी लगन से प्रभावित होकर कुछ अन्य सामाजिक संगठनों ने भी हौसला आफजाई के लिए हाथ बढ़ाया है। इस तरह ये 11 दिव्यांग महराजगंज जैसे अति पिछड़े जिले का नाम रौशन करने का काम किया है।​

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