Lucknow News: इस बार कुंभकर्ण और मेघनाद को नहीं दी जाएगी अग्नि, रामलीला में जलेगा सिर्फ रावण का पुतला

Dussehra in Lucknow: ऐशबाग की ऐतिहासिक रामलीला करीब 300 वर्षों के स्वर्णिम आयोजन के बाद नई परंपरा की मिसाल कायम करने जा रही है।

Report :  Jyotsna Singh
Update:2022-09-30 14:09 IST

और मेघनाद को नहीं दी जाएगी अग्नि (photo: social media )

2022 Dussehra in Lucknow: दीपावली के आने से पहले ही इस देश की धरती पर रामलीला का मंचन होता चला आया है। बात अगर उत्तर प्रदेश की करें तो यहां राम लीला के मंचन और उसके दर्शकों के बीच उत्साह देखते ही बनता है। यहां विविध क्षेत्रीय बोली भाषाओं में छोटी, बड़ी हर तरह की रामलीला आयोजन का अपना अलग ही उत्साह है। इसी तरह ऐशबाग की ऐतिहासिक रामलीला करीब 300 वर्षों के स्वर्णिम आयोजन के बाद नई परंपरा की मिसाल कायम करने जा रही है। रामलीला कमेटी ने रामायण के कुछ महत्वपूर्ण प्रसंगों व तर्कों के आधार पर फैसला लिया है कि अब यह सिर्फ रावण के पुतले का ही दहन करेगी। रावण के दो भाई मेघनाथ और कुम्हकरण का दहन नहीं करेगी।

समिति के सचिव आदित्य द्विवेदी व अध्यक्ष हरीशचंद्र अग्रवाल ने बताया कि कुंभकर्ण मेघनाद को मोक्ष मिलने जा रहा है। आयोजक आदित्य द्विवेदी कहते हैं कि रावण के भाई कुंभकरण को जब युद्ध करने के लिए जगाया गया तभी उसने रावण को चेताया था कि तुम सीधे जगदंबा को उठा लाए हो और जिनके खिलाफ युद्ध को भेज रहे हो और खुद लड़ रहे हो, वे स्वयं नारायण है। ऐसा ही कुछ मेघनाद के बारे में भी लिखा गया है, कि युद्ध भूमि में जब सारे अस्त्र-शस्त्र व दिव्यास्त्र बेअसर हो रहे थे, तभी उसने रावण को राम के नारायण होने की बात कहकर चेताया था।

आदित्य कहते है कि कुंभकर्ण मे भाई के कर्तव्य से मेघनाद ने पुत्र के कर्तव्य से बंधे होने के कारण युद्ध भूमि नहीं छोड़ी। राम के स्वरूप की पहचान ही उनके पापों की सजा को कम कर देता है। ऐसे में अब उनका दहन बंद कर देना उन्हें भी मुक्ति मिले।

पर्यावरण संरक्षण के चलते नहीं बनेगा प्लाई वुड का रावण

हरीशचंद्र अग्रवाल ने बताया कि दीपावली, दशहरे पर आतिशबाजी और धुवें से पर्यावरण को नुकसान पहुंचता है, को कि हम सब के लिए ठीक नहीं है। इसलिए इस बात को ध्यान में रखते हुए आतिश बाजी का न के बराबर प्रयोग करते हुए इस बार प्लाईवुड से बनने वाला भीम आधारित रावण नहीं बनाया जाएगा। इस बार बांस और तांत से ही रावण को तैयार किया जा रहा है। आदित्य द्विवेदी और हरीश चंद्र अग्रवाल कहते हैं कि 16वीं सदी के पूर्व ही रामलीला की शुरुआत हुई थी अपनी पीढ़ियों और फकीरा की पीढ़ियों के इससे जुड़े होने से आकलन करें तो लगभग -300 वर्षों से लगातार ये परंपरा चली आ रही है।

लखनऊ शहर में रामलीला का मंचन जारी है। ऐशबाग की वेजिटेबल ग्राउंड, राजाजीपुरम में, खदरा और मौसमबाग में रामलीला का मंचन पहले दिन से ही शुरू हो गया था। वहीं श्री जीवन सुधार रामायणी सभा के तत्वधान में चिनहट बाजार रामलीला भवन में चल रही फुलवारी लीला का मंचन रामलीला मे किया गया।

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