Power Privatisation News: इस खेल से निजीकरण की चाल सफल नहीं होने देंगे, भ्रामक और फर्जी आंकड़ों पर बिजलीकर्मियों का कड़ा रुख
Power Privatisation News: संघर्ष समिति ने खुलासा किया कि वर्ष 2023- 24 में टोरेंट पावर को आगरा में सस्ती दरों पर बिजली आपूर्ति करने के कारण मात्र एक वर्ष में पावर कारपोरेशन को 274.01 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है।
Power Privatisation News: कर्नाटक, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश और छत्तीसगढ़ के बिजली अभियंता संघों ने भी उत्तर प्रदेश के बिजली कर्मचारियों को समर्थन दिया है। बिजली कर्मचारियों का सवाल है कि पॉवर कारपोरेशन बताए कि आगरा में टोरेंट पॉवर को सस्ती बिजली देने से एक साल में 274 करोड़ रुपये के नुकसान का मॉडल वितरण निगमों पर थोपने से किसका भला होगा।
विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति उत्तर प्रदेश ने कहा है कि फर्जी आंकड़े देकर विद्युत वितरण निगमों के निजीकरण की चाल को बिजली कर्मचारी सफल नहीं होने देंगे। संघर्ष समिति ने कहा कि निजीकरण का विफल प्रयोग उत्तर प्रदेश में थोपने की कोशिश हो रही है जिसकी असलियत पिछले 14 साल में आगरा में खुल चुकी है। आंकड़े देते हुए संघर्ष समिति ने कहा कि वर्ष 2023 - 2024 में दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम में बिजली की औसत लागत और औसत राजस्व वसूली के बीच रु0 03.99 प्रति यूनिट नहीं अपितु रु0 2.66 प्रति यूनिट का अंतर है।
उल्लेखनीय है कि पावर कारपोरेशन के चेयरमैन यह अंतर 03.99 रुपये बता कर निजीकरण की वकालत कर रहे हैं। संघर्ष समिति ने कहा की दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम के ऑडिटेड अकाउंट के अनुसार वर्ष 2023 - 24 में बिजली की लागत 7 रुपए 13 पैसे प्रति यूनिट थी जबकि औसत राजस्व वसूली रु0 04.47 प्रति यूनिट थी जिसमें सब्सिडी की धनराशि सम्मिलित नहीं है। यह अंतर मात्र 2.66 रुपए प्रति यूनिट का है।उन्होंने कहा कि इसी प्रकार पॉवर कॉरपोरेशन द्वारा दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम में 34% लाइन हानियां बताई गई जबकि ऑडिटेड अकाउंट के अनुसार लाइन हानियां 20.23% है। उन्होंने कहा कि इसी प्रकार पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम के फर्जी आंकड़े जारी किए गए हैं जिनका खुलासा कल किया जाएगा।
संघर्ष समिति ने खुलासा किया कि वर्ष 2023- 24 में टोरेंट पावर को आगरा में सस्ती दरों पर बिजली आपूर्ति करने के कारण मात्र एक वर्ष में पावर कारपोरेशन को 274.01 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है। वर्ष 2023- 24 में पावर कॉरपोरेशन ने टोरेंट पावर को 2301.70 मिलियन यूनिट बिजली की आपूर्ति की। यह आपूर्ति रु0 4.36 प्रति यूनिट की दर से की गई जबकि पावर कॉरपोरेशन की बिजली खरीद की लागत 5.50 प्रति यूनिट थी। इस प्रकार केवल एक वर्ष में पॉवर कारपोरेशन को 274.01 करोड़ रुपए की क्षति हुई है।
संघर्ष समिति ने सवाल किया कि टोरेंट कंपनी न किसान है और न ही बी पी एल उपभोक्ता, तो उसे खरीद से कम दाम पर बिजली क्यों दी जा रही है। यहां यह उल्लेखनीय है कि आगरा एक औद्योगिक शहर है जो चमड़े की राजधानी कही जाती है। देश का सबसे बड़ा चमड़ा उद्योग आगरा में इसके बावजूद टोरेंट कंपनी से पावर कारपोरेशन को मात्र 4.36 रुपए प्रति यूनिट मिला जबकि दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम जिसमें बुंदेलखंड समेत बहुत अधिक ग्रामीण क्षेत्र है, से रुपया 4.47 प्रति यूनिट मिला है। इससे स्पष्ट होता है कि निजीकरण केवल घाटे का सौदा है।
संघर्ष समिति ने सवाल किया की दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण के बाद टोरेंट पॉवर का उदाहरण सामने रखें तो और कम पैसा मिलने वाला है। इस घोटाले में कौन सा रिफॉर्म है और किसकी सांठगांठ है ?
संघर्ष समिति ने बताया की टोरेंट पावर को आगरा के साथ केस्को की विद्युत आपूर्ति दी जा रही थी। कर्मचारियों के प्रबल विरोध के कारण केस्को को हैंड ओवर नहीं किया जा सका। आज 14 साल के बाद जहां पावर पॉवर कॉरपोरेशन को आगरा में टोरेंट पावर से मात्र रु0 4 .36 प्रति मिनट मिलता है, वहीं कानपुर में केस्को से प्रति यूनिट छह रुपए 80 पैसे मिल रहा है। यह उदाहरण अपने आप में पर्याप्त है की प्रबंधन सही हो, कर्मचारियों को विश्वास में लेकर कार्य योजना बनाई जाए तो निजी क्षेत्र की तुलना में कहीं अधिक सुधार किया जा सकता है।
उप्र के बिजली कर्मियों के निजीकरण के विरोध में चल रहे आन्दोलन को प्रतिदिन देश के विभिन्न प्रान्तों के बिजली इंजीनियरों का समर्थन मिल रहा है। पंजाब, उत्तराखण्ड और जम्मू कश्मीर, झारखण्ड, महाराष्ट्र और हरियाणा के बिजली अभियन्ता संघों ने समर्थन दिया था तो आज कर्नाटक, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश और हिमांचल प्रदेश के बिजली अभियन्ता संघों ने उप्र के मुख्यमंत्री को पत्र भेजकर मांग की है कि निजीकरण का प्रस्ताव तत्काल वापस लिया जाये अन्यथा की स्थिति में इन प्रान्तों के बिजली कर्मी उप्र के बिजली कर्मियों का पुरजोर समर्थन करेंगे। संघर्ष समिति ने आज फिर दोहराया की रोज वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए पर कार्पोरेशन प्रबंधन अभियंताओं को धमकी दे रहा है और निजीकरण थोपने की कोशिश कर रहा है। संघर्ष समिति ने कहा कि झूठे आंकड़े और भय का वातावरण बनाकर प्रदेश के ऊर्जा क्षेत्र का निजीकरण नहीं किया जा सकता। निजीकरण के विरोध में निर्णायक संघर्ष के लिए बिजली कर्मी संकल्पबद्ध हैं।
विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति के पदाधिकारियों राजीव सिंह, जितेन्द्र सिंह गुर्जर, गिरीश पांडेय, महेन्द्र राय, सुहैल आबिद, पी.के.दीक्षित, राजेंद्र घिल्डियाल, चंद्र भूषण उपाध्याय, आर वाई शुक्ला, छोटेलाल दीक्षित, देवेन्द्र पाण्डेय, आर बी सिंह, राम कृपाल यादव, मो वसीम, मायाशंकर तिवारी, राम चरण सिंह, मो0 इलियास, श्री चन्द, सरयू त्रिवेदी, योगेन्द्र कुमार, ए.के. श्रीवास्तव, के.एस. रावत, रफीक अहमद, पी एस बाजपेई, जी.पी. सिंह, राम सहारे वर्मा, प्रेम नाथ राय एवं विशम्भर सिंह ने आज भी लखनऊ के कई कार्यालय में और आम उपभोक्ताओं से मिलकर व्यापक जनसंपर्क अभियान चलाया और निजीकरण से होने वाले नुकसान से अवगत कराया।