लखनऊ: सोवियत संघ का विघटन नहीं हुआ था। एक इंडियन वहां की एक दुकान में विदेशी घड़ी खरीदने गया तो उसे एचएमटी वाॅच दिखाई गई। इंडियन ने कहा ये तो मेरे देश की घड़ी है, लेकिन मैं विदेशी घड़ी खरीदना चाहता हूं। दुकानदार का कहना था ये यहां विदेशी है और इससे अच्छी घड़ी पूरी दुनिया में दूसरी कोई नहीं।
कलाई पर बंधी रहने वाली इस घड़ी की टिक-टिक अब हमेशा के लिए बंद हो गई है। पचास साल से भी ज्यादा समय तक कलाई की शोभा बढ़ाने वाली ये घड़ी भारत की शान रही है जिसने देश की न सिर्फ परंपरा बनाए रखी, बल्कि विदेशों में भारत की शान को भी परवान चढ़ाया।
नेहरू ने दी थी सौगात
इसका निर्माण हिंदुस्तान मशीन टूल (एचएमटी) कंपनी कर रही थी।
कंपनी के नाम पर इसका नाम एचएमटी पड़ा।
देश के पहले पीएम जवाहर लाल नेहरू ने देश को इस घड़ी की सौगात दी थी।
घड़ीसाज नहीं देख पाते थे शक्ल
-संभवत पूरी तरह देशी कल पुर्जे से बनने वाली ये पहली भारतीय घड़ी थी।
-इसे बस एक बार कलाई में बांध लो। सालों साल चलती थी।
-घड़ीसाज (घड़ी बनाने वाला) तो इसकी शक्ल देखने को तरस जाते थे क्योंकि ये जल्दी खराब ही नहीं होती थी।
घाटे के चलते बंद हुई कंपनी
-शुरुआती दौर में इसकी कीमत कुछ जयादा थी इसलिए इसे स्टेटस सिम्बल भी समझा जाता था।
-लेकिन कुछ सालों से लगातार हो रहे घाटे की वजह से इसे बंद करने का निर्णय लिया गया।
-हालात यहां तक खराब हो गए थे कि कर्मचारियों के वेतन के लाले पड़ गए थे।
-इसका कुल घाटा जब 242 करोड़ 47 लाख तक पहुंच गया तो इसे बंद करना ही मुनासिब समझा गया।
एचएमटी की पूरी कहानी
-एचएमटी लिमिटेड कंपनी 1961 में अस्तित्व में आई।
-एचएमटी की पहली निर्माण यूनिट बंगलुरू में लगी।
-कंपनी का टैग लाइन था टाईमकीपर आफ द नेशन।
-80 और 90 के दशक में दफ्तर जाने वाले हर व्यक्ति की कलाई में एचएमटी होती थी।
जनता मॉडल था सबसे ज्यादा लोकप्रिय
-शानदार डिजाइन के कारण एचएमटी जनता माॅडल काफी लोकप्रिय था।
-इंदिरा गांधी तो जनता माॅडल की दीवानी थीं।
-अभिनेता धर्मेन्द्र और उनके दोनों बेटे भी इस माॅडल को काफी पसंद करते थे।
-इसके अलावा कंचन,सोना,विजय और पायलट इसके पाॅपुलर माॅडल थे।
नई तकनीक की घडि़यों के चलते कम हुआ व्यापार
-90 के दशक के अंत तक एचएमटी का मुनाफा और कमाई अच्छी थी।
-बाद में बाजार में नई तकनीक की घडि़यां आनी शुरू हो गईं। धीरे धीरे एचएमटी की मांग कम होने लगी।
-कंपनी ने श्रीनगर इकाई को बंद कर दिया। वित्तीय साल 2012 -13 में एचएमटी का घाटा 250 करोड़ पहुंच गया।
-जापान की सिटीजन वाच कंपनी के सहयोग से एचएमटी का निर्माण शुरू हुआ।
-लंबे घाटे के बाद सरकार ने एचएमटी को बंद करने की घोषणा कर दी।