जैविक खाद से लागत शून्य उपज पा सकते हैं किसान, होंगे खुशहाल

कृषि में निरंतर बढती लागत और जिंसों की निरंतर कम होती कीमत से लागत को कम करने की दिशा में शुरू की गयी पहल का तेजी से स्वागत हो रहा

Update:2017-12-13 20:30 IST
जैविक खाद से लागत शून्य उपज पा सकते हैं किसान, होंगे खुशहाल

योगेश मिश्र

लखनऊ: कृषि में निरंतर बढती लागत और जिंसों की निरंतर कम होती कीमत से लागत को कम करने की दिशा में शुरू की गयी पहल का तेजी से स्वागत हो रहा है। क्योकि मूल्य तो मांग व आपूर्ति के आर्थिक सिद्धांत पर निर्भर करता है। यही नहीं , रासायनिक खादों से तैयार खाद्य पदार्थो से जिंदगी में घुलते जहर ने जैविक खेती और लागत शून्य खेती की तरफ किसानों का ध्यान खींचना आरम्भ कर दिया है। जैविक खेती ( बर्मी कम्पोस्ट , कम्पोस्ट बायो डायनामिक्स) भी किसानों को बाज़ार निर्भर बनाती है जबकि लागत शून्य खेती में किसान की बाज़ार पर निर्भरता कम होती है , उत्पादन बढ़ता है। रासायनिक

उर्वरकों , हानिकारक कीटनाशकों तथा हाइब्रिड बीजों के उपयोग ने उर्वरा शक्ति कम करने के साथ ही साथ भूजल स्तर तथा मनोस्वास्थ्य के गिरावट की इबारत लिखी है। लागत शून्य खेती किसान को इन सबसे मुक्त कराती है।

इसमें एक तरफ जहा जानवरों के गोबर , विशेषतः देसी गाय के गोबर का प्रयोग करते हुए खाद बनाने की क्रिया विधि बतायी जाती है वही दूसरी और बीजामृत , जीवामृत , घनजीवामृत का उपयोग कर के मुख्य फसल और सह फसलों के उत्पादन को आसान बनाया जाता है। सह फसलों के विक्रय से किसान अपनी मुख्य फसल को लागत शून्य बना लेता है। पौधों के पोषण के लिए आवश्यक सभी 16तत्व प्रकृति में उपलब्ध हैं। एक देसी गाय के गोबर में 300 से 500 करोड़ सूक्ष्म जीवाणु पाए जाते हैं जो जमीन की उर्वरा शक्ति को बढ़ाते हैं। गाय के गोबर में गुड़ और अन्य पदार्थ डाल कर किण्वन(फरमेंटशन) से सूक्ष्म जीवाणु बढ़ा कर उपज को कई गुना किया जा सकता है।

जैविक खाद से लागत शून्य उपज पा सकते हैं किसान, होंगे खुशहाल

गोबर , गोमूत्र और चूना को एक निश्चित मात्रा में मिलाकर पानी में रखने के बाद बीजों को बोना चाहिए। जबकि जीवामृत सूक्ष्म जीवाणुओं का महासागर है जो पेड़ पौधों के लिए कच्चे तत्वों को पका कर भोजन तैयार करता है। शून्य लागत खेती के तहत भूमि की नमी बनाये रखने के लिए उसे ढका जाता है ताकि हवा का तापमान 25 डिग्री से 32 डिग्री नमी 65 से 72 प्रतिशत तक रहे। भूमि को लकड़ी या अन्य प्रकार से आच्छादित करते हैं तो सूक्ष्म पर्यावरण में देशी केचुओं और सूक्ष्म जीवाणुओं को अनुकूल वातावरण मिलता है और भूमि की नमी का वाष्पन नहीं हो पाता। कीट नियंत्रको की आवश्यकता नहीं पड़ती। देसी गोवंश की गाय होनी चाहिए। जर्सी या होलस्टीन नस्ल की गाये हानिकारक हैं। वर्मी कम्पोस्ट बनाने में आइसीनिया , फोटिडा नमक जंतु का प्रयोग होता है, केंचुआ नहीं। पौधों का भोजन जड़ के निकट बनाया जाना चाहिए। दूसरे स्थानों से लेकर कम्पोस्ट खेतों में डाली जाएगी तो मिटटी में पाए जाने वाले जीवाणु निष्क्रिय हो जायेंगे। इस प्राकृतिक खेती में देसी बीजों का प्रयोग करना चाहिए। हाइब्रिड बीजों से अच्छे परिणाम नहीं मिलते।

इस खेती की क्रिया विधि को बहुत से किसानों ने अपनाया है जो काफी लाभ कमा रहे हैं। गाय और गाय आधारित कृषि पर थानाभवन विधान सभा के निवासी और भारतीय किसान संघ के प्रदेश अध्यक्ष ठाकुर धरमपाल सिंह के शोध अनुसार जैविक खेती में रासायनिक खेती की तुलना में अधिक पैदावार व अधिक फायदा है। ठाकुर धर्मपाल सिंह बताते हैं कि हमने प्राकृतिक चक्र के अनुसार ही कार्य किया। जैसे हम आक्सीजन लेते है और कार्बनडाईआक्साईड छोडते है। पेड़ पौधे आक्सीजन छोडते है और कार्बनडाईआक्साईड ग्रहण करते है जो हमारे द्वारा छोडा जाता है। वह पौधो द्वारा ग्रहण किया जाता है। इस प्रकार यह प्राकृति का चक्र है। धर्मपाल बताते हैं कि उसी को देखते हुए हमने एक चक्र बनाया। चार गाय पाली, जिससे हमें दो चीज मिलती है। एक तो दूध दूसरा गोबर व मूत्र, दूध हमारे पीने के काम मे आया और गोबर से हमने फिर एक तो गोबर गैस प्लांट बनया जिससे हमें गैस मिलती है। जो ईंधन के रूप में काम आती है। उससे निकली सलेरी को हम एक टैंक में इकट्ठा करते हैं।

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इसी तरह हमने एक टैंक बनाया जिसमे गौमूत्र स्वतः इकट्ठा हो जाता है। अब इस सलेरी व गौमूत्र को टैंकों में भर कर खेत पर ले गये। जहां हमने दो टैंक बनाये है। एक में सिलेरी डाली और दूसरे में गौमूत्र जो की दो अलग अलग कार्य में प्रयोग करते है। सिलेरी के साथ हमने थोडा गुड व बेसन मिलाकर मिश्रण कर लिया। इसके बाद पम्प से निकलने वाले पानी के साथ एक छोटा पाईप सेलेरी के टैंक में डाल दिया। जिससे पानी के साथ थोडी मात्रा में सिलेरी भी जाती रहती है। खेतों में इस क्रिया के द्वारा अधिक पैदावार होती है।

उनका अनुभव है कि गौमूत्र के टैंक में नीम के पते व लहसून सडे प्याज अरण्डी के पत्ते डालकर एक मिश्रण बनाया गया जो कीट रोधक का काम करता है। रासायनिक कीटनाशक से हमें नुकसान है। कीट दो प्रकार के होते हैं। फसल को बर्बाद करते है और दूसरे धरती की उर्वरक शक्ति को बढाने वाले। रासायनिक कीटनाशक से दोनो प्रकार के कीट नष्ट हो जाते है जिससे फसल का नुक्सान होता है। इस लिए गौमूत्र और प्राकृतिक तरीके से हमने कीट रोधक बनाया न कि कीट नाशक।

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आर्गेनिक व जैविक खाद

धर्मपाल सिह बताते हैं कि ऑर्गेनिक एक विदेशी तकनीक है जो जीव को मारकर बनाई जाती है। विदेशों में अधिक मीट मांस खाया जाता है।वहां स्लाटर हाउस बहुत ज्यादा है। उनसे निकलने वाले खून व हड्डियां चूने के पानी से साफ की जाती है। चूना एन्टी फंगस है। इसमें कैल्शियम की मात्रा भी अधिक होती है। चूने के पानी और खून एक साथ मिलने से उसमें जीवाणु पैदा हो जाते है। जीवाणुओ से धरती की उर्वरा शक्ति बढती है। उसके साथ शहरों का कचरा मिला दिया जिससे उनके कचरे का भी निवेश हो गया। वह भारत में ऑर्गेनिक खाद के नाम से भेज दिया। लेकिन जो कचरा मिलाया गया उसमें कैमिकल प्लास्टिक तेजाब आदि हानिकारक मिले होते है। इस प्रकार बनाया गया खाद पशुओं की मौत पर टिकी हुई व्यवस्था है। अगर सभी देशवासी ऑर्गेनिक खाद की व्यवस्था पर टिक जाये तो ऑर्गेनिक खाद की डिमाण्ड बढेगी। एक स्थिति ऐसी आयेगी की रॉ मैटेरियल पशु का मिलना बन्द हो जायेगा। जैविक खाद प्राकृतिक कृषि गाय के गोबर पर निर्भर हुई है। एक गाय के गोबर से पच्चीस एकड़ में खेती हो सकती है। यह जीवन पर टिकी हुई व्यवस्था है। गोबर से हमे गैस भी मिलती है। इस लिए प्राकृतिक खेती को बढावा दे। अब सरकार भी इस और ध्यान दे रही है।

घाटे की खेती ना करे

किसान आज यह नही देख रहा कि उसकी लागत क्या है। क्या उसे उसका मूल्य मिल रहा है। आज 357 रुपये कुन्तल गन्ने का लागत मूल्य आता है। 267रुपये कुन्तल समर्थन मूल्य मिल रहा है।अगर इस प्राकृतिक खेती में लागत 100 रुपये और गन्ना 150रुपये बिक जाये। आज गेहू की लागत 17सौ रुपये है। और दाम 15सौ रुपये मिल रहे है।धान की लागत 24सौ रुपये है और मिलते 15सौ रुपये है। रासायनिक व ऑर्गेनिक विधि से हम घाटे की खेती कर रहें है। अगर हम प्राकृतिक खेती करते है। तो लागत शून्य हो जायेगी। और इसमें हमें बहार से कुछ नही लेना प्राकृतिक के संसाधनों से काम चल जाएगा।

किसान ले सकता है इंजिनियर के बराबर पैकेज

रासायनिक व ऑर्गेनिक खाद की अपेक्षा पैदावार अच्छी होती है। प्राकृतिक खाद से एक गन्ने का वजन 7 से 8 किलोग्राम तक हो जाता है जबकि रासायनिक व ऑर्गेनिक खाद से पैदा हुआ गन्ना 2 से 3 किलोग्राम तक ही होता है। मिल एक वैराटी का गन्ना 5-6 साल के बाद रिजेक्ट कर देता है। गन्ना एक बार लगने के बाद 10 से 20 साल तक अच्छी पैदावार देता है। इस लिए गन्ना शुगर मिल में ना देकर हमने इसका गुड बनवाया। अगर रासायनिक उर्वरक वाले एक कुन्तल गन्ने में 8 से 10 प्रतिशत मिलता है। प्राकृतिक खाद वाले गन्ने में 12 से 14 प्रतिशत गुड़ मिलता है। धर्मपाल बताते हैं कि इसका गुड़ बनाकर दिल्ली व एन.सी.आर में भेजा जहां हमारा गुड़ 80रुपये किलो तक बिका जो कि मिल से कई गुना ज्यादा मुनाफा रहा है। प्राकृतिक खेती से किसान एक एकड मे 3 से 5 लाख तक की आमदनी ले सकता है।

धर्मपाल की कृषिनीति पर 300 केंद्र खोलेगी सरकार

जनपद शामली के थाना भवन कस्बे में जन्में किसान ठाकुर धर्मपाल सिह की शिक्षा मात्र हाई स्कूल है लेकिन अपने शोध के कारण आज कृषि जगत में एक अच्छा मुकाम पा चुके है। उनकी कृषि नीति पर सरकार आज 300 से अधिक शोध केन्द्र खोलने जा रही है। इनके शोध पर एक कृषि अनुसंधान केंद्र एक पुस्तक लिखने की तैयारी भी कर रहा है।

(साथ में शामली से श्याम वर्मा )

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